Thursday, November 22, 2018

प्रेरक प्रसंग के संदेश -5

प्रेरक प्रसंग के संदेश -5
नामदेव पारस पत्थर कभी के छोड़ चुके थे।नदी में से निकले सभी पत्थर उनकी दृष्टि में एक समान थे, न कोई पारस न कोई पत्थर,सब के सब पत्थर, जिनका मनुष्य के जीवन के लिए कोई अर्थ नहीं है। "ओ पारीसा, ढूंढ ले अपना पारस पत्थर।हे मेरे पाण्डुरंग ! कहाँ फंसा दिया रे मुझको।" और इधर पारीसा, जिस पत्थर को उठाकर देखे वही पारस, लोहे से छुआते ही सोना। नदी किनारे स्वर्ण का पहाड़ खड़ा हो गया।उधर नामदेव का ध्यान केवल परमात्मा पर। पारीसा दौड़ा और नामदेव के चरणों में गिर पड़ा।
भूल गया परीसा भागवत भी, पारस को।अरे! जिसके भक्त के स्पर्श मात्र से ही साधारण पत्थर भी पारस बन गए हो, उस भक्त के तो पाण्डुरंग ही महान हुए। फिर ऐसे पारस का महत्व ही क्या,जो संसार के बंधन में डाल दे।भक्ति से मिले तो फिर पाण्डुरंग को ही मांगो। वही असली पारस। सच है, जिसने सब कुछ छोड़ा, उसी ने पूरा पाया। आधा छोड़ने वाले का सब कुछ ही छूट जाता है।
      सकाम भक्त आधा छोड़ता है, उसे सिवाय पारस के कुछ भी नहीं मिलता।पारस की भी क्या कीमत,कुछ नहीं।जीवन में परमात्मा नहीं तो सब कुछ होकर भी कुछ भी नहीं है। केवल सांसारिक अभाव की पूर्ति करते रहना, आत्मा को खोखला कर देता है। रिक्त आत्मा का क्या तो होना और क्या न होना। जीवन आत्मसंतुष्टि का दूसरा नाम है और यह भी सत्य है कि आत्मसंतुष्टि जीवन में हज़ारों पारस मिल जाये तो भी नहीं आ सकती। भक्ति ही करनी है तो फिर निष्काम भक्ति ही की जाए। मिला हुआ स्वर्ण मिट्टी समान, दोनों में कोई अंतर नहीं। नामदेव शताब्दियों में कोई एक पैदा होता है, अन्यथा पारीसा भागवत जैसे तो इस संसार में करोड़ों व्यक्ति अपना जीवन व्यर्थ ही गँवा रहे हैं।न जाने हमारे जैसे करोड़ों पारीसाओं को नामदेव कब मिलेंगे जो हमारी आंखें खोल दे।
प्रस्तुति -डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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