पुरुषार्थ – 41 – मोक्ष -1
मोक्ष
(Liberation/Enlightenment) – Spiritual values
मोक्ष का अर्थ है, पदार्थ से मुक्ति |
पदार्थ है, हमारा भौतिक शरीर | हमारा शरीर प्रति जन्म बदल जाता है, तो फिर क्या यही
मोक्ष है ? नहीं, केवल शरीर बदल जाने का
नाम ही मोक्ष नहीं है | भौतिक शरीर से मुक्ति का अर्थ है, पुनः शरीर लेकर इस संसार
में कभी भी नहीं लौटना अर्थात इस संसार से सदैव के लिए आवागमन का मिट जाना | मोक्ष
को ही समाधि कहा जाता है | यही ब्रह्मज्ञान है, यही आत्म-ज्ञान है और आत्म-बोध भी
यही है | ऐसे मोक्ष में स्थित व्यक्ति को गीता के दूसरे अध्याय में भगवान श्री
कृष्ण स्थितप्रज्ञ कहते हैं | मोक्ष में
स्थित व्यक्ति अर्थात शरीर में रहते हुए ही शरीर से मुक्त हो जाना | इसे जीवन
मुक्त होना कहा जाता है | सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार मोक्ष को उपलब्ध व्यक्ति
को आत्म-बोध हो जाने से वह स्वयं ही भगवान् हो जाता है | आत्मबोध हो जाना अर्थात
स्वयं का ज्ञान हो जाना और स्वयं का ज्ञान हो जाने से ही व्यक्ति शरीर के रहते हुए
ही शरीर से मुक्त हो जाता है | जैन धर्म में ऐसे व्यक्ति को अरिहंत कहा जाता हैं |
बौद्ध धर्म में इसे संबुद्ध कहा जाता है | मोक्ष ही कैवल्य है और यही निर्वाण और समाधि कहलाता है |
भारतीय दर्शन में सांसारिक
नश्वरता को दुःख का कारण बताया गया है | जो कल था वह आज नहीं है, जो आज है, वह कल
नहीं रहेगा | यह परिवर्तनशील संसार का नियम है | संसार ही आवागमन अर्थात जन्म-मरण
का केंद्र है | इस आवागमन से मुक्ति का नाम ही मोक्ष है | संसार में आवागमन से
मुक्ति क्यों आवश्यक है ? हमें अपने प्रत्येक जीवन का ज्ञान नहीं रहता, इसलिए यह
प्रश्न मन में बार-बार उठता है | वास्तविकता है कि हम अपने प्रत्येक जीवन में इस
नश्वर संसार में आकर दुःखी ही हुए हैं | सुख की चाह हमें इस नश्वर संसार से भी
अपेक्षाएं पैदा कर देती हैं | अपेक्षाओं के अनुरूप यह संसार हमें कुछ भी नहीं दे
सकता | जब हमारी अपेक्षाएं पूरी नहीं होती तो हम दुःखी हो जाते हैं | जब दुःख
असह्य हो जाता है तब हमें इस संसार की नश्वरता का भान होता है और हम इससे मुक्त
होने का प्रयास करते हैं |
जिससे मुक्त होना है,वह
है शरीर और संसार और जो मुक्त होता है वह है आत्मा अर्थात हम स्वयं | संसार और शरीर
दोनों से मुक्त होने पर जो शेष बचता है वह है आत्मा अर्थात स्वयं | स्वयं को जान
लेना ही आत्म बोध है और स्वयं का ज्ञान हो जाना आत्म ज्ञान | शरीर और संसार से
मुक्त होना संभव भी है और असंभव भी | असंभव इस कारण से कि व्यक्ति कितना भी प्रयास
कर ले मन के भीतर किसी न किसी प्रकार की एक आध आसक्ति रह ही जाती है | सभी भी
प्रकार की आसक्तियों और कामनाओं से छूटना लगभग असंभव है | ऐसे में व्यक्ति के
सामने एक मार्ग ही शेष रहता है- भक्ति मार्ग | परमात्मा के प्रति आसक्त हो जाना अर्थात
सब कुछ परमात्मा को समर्पण कर देना यहाँ तक कि अपनी सभी प्रकार की कामनाएं भी |
इसीलिए कहा जाता है कि मोक्ष से भक्ति अधिक श्रेष्ठ है | भक्ति को मोक्ष से
श्रेष्ठ तभी कहा जा सकता है जब यह जान लिया जाये कि हमारी इस नश्वर संसार से मुक्ति
क्यों नहीं हो सकती ? नश्वर संसार से मुक्ति के लिए भी तो कोई मार्ग होगा ? आइये !
जानने का प्रयास करते हैं कि इस संसार से मुक्ति के कौन कौन से मार्ग हैं ?
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||
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