Monday, November 5, 2018

पुरुषार्थ-41-मोक्ष-1


पुरुषार्थ – 41  – मोक्ष -1
मोक्ष (Liberation/Enlightenment) – Spiritual values
           मोक्ष का अर्थ है, पदार्थ से मुक्ति | पदार्थ है, हमारा भौतिक शरीर | हमारा शरीर प्रति जन्म बदल जाता है, तो फिर क्या यही मोक्ष है ?  नहीं, केवल शरीर बदल जाने का नाम ही मोक्ष नहीं है | भौतिक शरीर से मुक्ति का अर्थ है, पुनः शरीर लेकर इस संसार में कभी भी नहीं लौटना अर्थात इस संसार से सदैव के लिए आवागमन का मिट जाना | मोक्ष को ही समाधि कहा जाता है | यही ब्रह्मज्ञान है, यही आत्म-ज्ञान है और आत्म-बोध भी यही है | ऐसे मोक्ष में स्थित व्यक्ति को गीता के दूसरे अध्याय में भगवान श्री कृष्ण स्थितप्रज्ञ  कहते हैं | मोक्ष में स्थित व्यक्ति अर्थात शरीर में रहते हुए ही शरीर से मुक्त हो जाना | इसे जीवन मुक्त होना कहा जाता है | सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार मोक्ष को उपलब्ध व्यक्ति को आत्म-बोध हो जाने से वह स्वयं ही भगवान् हो जाता है | आत्मबोध हो जाना अर्थात स्वयं का ज्ञान हो जाना और स्वयं का ज्ञान हो जाने से ही व्यक्ति शरीर के रहते हुए ही शरीर से मुक्त हो जाता है | जैन धर्म में ऐसे व्यक्ति को अरिहंत कहा जाता हैं | बौद्ध धर्म में इसे संबुद्ध कहा जाता है | मोक्ष ही कैवल्य है और यही  निर्वाण और समाधि कहलाता है | 
                 भारतीय दर्शन में सांसारिक नश्वरता को दुःख का कारण बताया गया है | जो कल था वह आज नहीं है, जो आज है, वह कल नहीं रहेगा | यह परिवर्तनशील संसार का नियम है | संसार ही आवागमन अर्थात जन्म-मरण का केंद्र है | इस आवागमन से मुक्ति का नाम ही मोक्ष है | संसार में आवागमन से मुक्ति क्यों आवश्यक है ? हमें अपने प्रत्येक जीवन का ज्ञान नहीं रहता, इसलिए यह प्रश्न मन में बार-बार उठता है | वास्तविकता है कि हम अपने प्रत्येक जीवन में इस नश्वर संसार में आकर दुःखी ही हुए हैं | सुख की चाह हमें इस नश्वर संसार से भी अपेक्षाएं पैदा कर देती हैं | अपेक्षाओं के अनुरूप यह संसार हमें कुछ भी नहीं दे सकता | जब हमारी अपेक्षाएं पूरी नहीं होती तो हम दुःखी हो जाते हैं | जब दुःख असह्य हो जाता है तब हमें इस संसार की नश्वरता का भान होता है और हम इससे मुक्त होने का प्रयास करते हैं |
                        जिससे मुक्त होना है,वह है शरीर और संसार और जो मुक्त होता है वह है आत्मा अर्थात हम स्वयं | संसार और शरीर दोनों से मुक्त होने पर जो शेष बचता है वह है आत्मा अर्थात स्वयं | स्वयं को जान लेना ही आत्म बोध है और स्वयं का ज्ञान हो जाना आत्म ज्ञान | शरीर और संसार से मुक्त होना संभव भी है और असंभव भी | असंभव इस कारण से कि व्यक्ति कितना भी प्रयास कर ले मन के भीतर किसी न किसी प्रकार की एक आध आसक्ति रह ही जाती है | सभी भी प्रकार की आसक्तियों और कामनाओं से छूटना लगभग असंभव है | ऐसे में व्यक्ति के सामने एक मार्ग ही शेष रहता है- भक्ति मार्ग | परमात्मा के प्रति आसक्त हो जाना अर्थात सब कुछ परमात्मा को समर्पण कर देना यहाँ तक कि अपनी सभी प्रकार की कामनाएं भी | इसीलिए कहा जाता है कि मोक्ष से भक्ति अधिक श्रेष्ठ है | भक्ति को मोक्ष से श्रेष्ठ तभी कहा जा सकता है जब यह जान लिया जाये कि हमारी इस नश्वर संसार से मुक्ति क्यों नहीं हो सकती ? नश्वर संसार से मुक्ति के लिए भी तो कोई मार्ग होगा ? आइये ! जानने का प्रयास करते हैं कि इस संसार से मुक्ति के कौन कौन से मार्ग हैं ?
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||


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