सनातन दर्शन - हिंदी/अंग्रेजी भाषा-2
द्वितीय बिंदु -
Please do not use the meaningless term "RIP" when someone dies. Use "Om Shanti", "Sadhgati" or "I wish this atma attains moksha/sadhgati /Uthama lokas". Hinduism neither has the concept of "soul" nor its "resting". The terms "Atma" and "Jeeva" are, in a way, antonyms for the word "soul".(to be understood in detail)
लेख का दूसरा बिंदु कहता है कि किसी की मृत्यु होने पर आजकल RIP कहने का प्रचलन है।RIP अर्थात rest in peace शांति में विश्राम।यह कहना कहाँ तक उचित है?हम भी अपनी भाषा में कह देते हैं कि 'परमात्मा उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे '।
ऐसा कहना भी उचित नहीं है। आत्मा का स्वभाव ही शांत है, अशांति उसमें हो ही नहीं सकती। अशांति रहती है, मन में। सब मन के खेल है।मन से बनता है जीव।इस जीव के साथ जब परमात्मा का अंश आ मिलता है, तभी जीवन प्रारम्भ होता है। शांति जीव को चाहिए न कि आत्मा को। इसलिए मृत व्यक्ति के जीव की शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए न कि आत्मा की शांति के लिए। जीवात्मा के मुक्त होने की कामना करें । जीव से आत्मा के मुक्त हो जाने का नाम ही मोक्ष है। जीव से आत्मा तभी मुक्त होगी जब जीव को शांति मिलेगी।अतः जीव की शांति और आत्मा के मुक्त होकर परमात्मा में मिलने की प्रार्थना करनी चाहिए न कि आत्मा की शांति के लिए।
एक बात और, RIP उन मृत व्यक्तियों के लिए कहा जाता है जो ऐसे समुदाय से सम्बन्ध रखते हैं जिसमें मोक्ष की धारणा को स्वीकार नहीं किया है अर्थात जो मोक्ष होने में विश्वास नहीं करते । न ही वे पुनर्जन्म ने विश्वास करते हैं।वे मानते हैं कि शरीर की मृत्यु के उपरांत जीव स्वर्ग में जाकर शांति को प्राप्त होता है और पुनः संसार के नए सृजन के साथ उसका इस धरा पर पदार्पण होता है। ऐसा मानने वाले अगर मृत व्यक्ति के लिए RIP की प्रार्थना करते हैं, तो उनके लिए ऐसा कहना उचित है।
सनातन दर्शन मोक्ष में विश्वास करता है। हम पुनर्जन्म होना मानते हैं। हम परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास रखते हैं।मन को संसार में आवागमन का कारण मानते हैं। आत्मा सच्चिदानंद स्वरूप हैं अतः हमारा स्वरूप भी वही है। इसलिए शरीर की मृत्यु हो जाने पर हमें आत्मा के मन से मुक्त होकर परमात्मा में विलीन हो जाने की कामना करनी चाहिए ।ॐ शांति, सद्गति अथवा स्वर्ग को प्राप्त हो, यह कामना भी की जा सकती है,परंतु सर्वोच्च कामना है- मोक्ष होकर परमात्मा में विलीन होने की।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
द्वितीय बिंदु -
Please do not use the meaningless term "RIP" when someone dies. Use "Om Shanti", "Sadhgati" or "I wish this atma attains moksha/sadhgati /Uthama lokas". Hinduism neither has the concept of "soul" nor its "resting". The terms "Atma" and "Jeeva" are, in a way, antonyms for the word "soul".(to be understood in detail)
लेख का दूसरा बिंदु कहता है कि किसी की मृत्यु होने पर आजकल RIP कहने का प्रचलन है।RIP अर्थात rest in peace शांति में विश्राम।यह कहना कहाँ तक उचित है?हम भी अपनी भाषा में कह देते हैं कि 'परमात्मा उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे '।
ऐसा कहना भी उचित नहीं है। आत्मा का स्वभाव ही शांत है, अशांति उसमें हो ही नहीं सकती। अशांति रहती है, मन में। सब मन के खेल है।मन से बनता है जीव।इस जीव के साथ जब परमात्मा का अंश आ मिलता है, तभी जीवन प्रारम्भ होता है। शांति जीव को चाहिए न कि आत्मा को। इसलिए मृत व्यक्ति के जीव की शांति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए न कि आत्मा की शांति के लिए। जीवात्मा के मुक्त होने की कामना करें । जीव से आत्मा के मुक्त हो जाने का नाम ही मोक्ष है। जीव से आत्मा तभी मुक्त होगी जब जीव को शांति मिलेगी।अतः जीव की शांति और आत्मा के मुक्त होकर परमात्मा में मिलने की प्रार्थना करनी चाहिए न कि आत्मा की शांति के लिए।
एक बात और, RIP उन मृत व्यक्तियों के लिए कहा जाता है जो ऐसे समुदाय से सम्बन्ध रखते हैं जिसमें मोक्ष की धारणा को स्वीकार नहीं किया है अर्थात जो मोक्ष होने में विश्वास नहीं करते । न ही वे पुनर्जन्म ने विश्वास करते हैं।वे मानते हैं कि शरीर की मृत्यु के उपरांत जीव स्वर्ग में जाकर शांति को प्राप्त होता है और पुनः संसार के नए सृजन के साथ उसका इस धरा पर पदार्पण होता है। ऐसा मानने वाले अगर मृत व्यक्ति के लिए RIP की प्रार्थना करते हैं, तो उनके लिए ऐसा कहना उचित है।
सनातन दर्शन मोक्ष में विश्वास करता है। हम पुनर्जन्म होना मानते हैं। हम परमात्मा के अस्तित्व में विश्वास रखते हैं।मन को संसार में आवागमन का कारण मानते हैं। आत्मा सच्चिदानंद स्वरूप हैं अतः हमारा स्वरूप भी वही है। इसलिए शरीर की मृत्यु हो जाने पर हमें आत्मा के मन से मुक्त होकर परमात्मा में विलीन हो जाने की कामना करनी चाहिए ।ॐ शांति, सद्गति अथवा स्वर्ग को प्राप्त हो, यह कामना भी की जा सकती है,परंतु सर्वोच्च कामना है- मोक्ष होकर परमात्मा में विलीन होने की।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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