पुरुषार्थ - 44 - मोक्ष- 4
पूर्व मीमांसा में कर्म को सर्वाधिक महत्त्व
दिया गया है | इसलिए कहा गया है कि दुःख से मुक्ति और सुख की प्राप्ति के लिए धर्म
के अनुसार कर्म करें | धर्म के अनुसार कर्म करने से मनुष्य अशांत नहीं हो सकता |
व्यक्ति का शांति को उपलब्ध हो जाना ही दुःख से मुक्त हो जाना है | अद्वैत में
मोक्ष की कल्पना उपनिषदों के आधार पर की गयी है | वेदांत में भक्ति और कर्म के
स्थान पर ज्ञान को प्रधानता दी गयी है | आत्मा को ब्रह्म स्वरुप माना गया है |
“अहं ब्रह्मास्मि” का ज्ञान हो जाना ही मोक्ष है | तब आत्मा सत, चित, आनंद से
पूर्ण होकर स्वयं ही सच्चिदानंद हो जाता है | आदि गुरु शंकराचार्य इस सिद्धांत के
प्रणेता है |
विशिष्टाद्वैत में ज्ञान और कर्म पर
भक्ति को प्रधानता दी गयी है | भक्ति के माध्यम से नारायण का सानिध्य प्राप्त होता
है | नारायण के संरक्षण में ही पूर्ण मुक्ति और आनंद की प्राप्ति होती है | नारायण
अर्थात परमात्मा का सानिध्य दो साधनों से प्राप्त किया जा सकता है, भक्ति और
प्रपति | प्रपति का अर्थ है ईश्वर में पूर्ण विश्वास रखते हुए उनके प्रति पूर्ण
रूप से समर्पित हो जाना अर्थात शरणागति | रामानुज ने भक्ति की तुलना में कर्म और
ज्ञान को गौण माना है और उन्हें कम महत्त्व दिया है | उनके अनुसार भक्ति और शरणागति
के माध्यम से मोक्ष को उपलब्ध हुआ जा सकता है |
इस प्रकार हमने विभिन्न वाद और दर्शन के आधार पर
मोक्ष विषय पर चर्चा की | इस चर्चा का निष्कर्ष यही निकल कर सामने आता है कि मोक्ष
का अर्थ है- पदार्थ से मुक्ति अर्थात जो जड़ तत्वों के प्रति हमारे भीतर आसक्ति
पैदा हो जाती है, उसको समाप्त कर देना, उस आसक्ति से मुक्ति पा लेना | वर्तमान जीवन
के बाद क्या होना है, आज तक किसी ने नहीं देखा है | इस जीवन के बाद क्या होता है,
उसके बारे में कई परिकल्पनाएं है | परिकल्पना (Hypothesis) मैं इसलिए कहता हूँ क्योंकि जिसने संसार के जीवन के बाद सत्य के जीवन को
देखा है, उनमें से कोई भी इस संसार में पुनः नहीं लौटता है और जो इस भौतिक असत
संसार के जीवन में ही पुनः लौटता है उसको स्वयं के पूर्व जीवन की कोई स्मृति नहीं
रहती है | गीता भी यही कहती है कि इस जड़ शरीर की मृत्यु के बाद या तो नया शरीर को
पाकर पुनः इस संसार में आना होता है अथवा इस संसार के भिन्न-भिन्न प्रकार के
शरीरों से पूर्णतः मुक्ति मिल जाती है | पुनर्जन्म होने पर पूर्वजन्म की बातें
स्मृति में नहीं रहती और मुक्त हुआ पुरुष इस संसार में पुनः नहीं लौटता | ऐसे में
जीवन के बाद के जीवन के बारे में हमें कौन बतलाए ?
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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