Friday, November 9, 2018

पुरुषार्थ-45-मोक्ष-5-समापन कड़ी


पुरुषार्थ-45 -मोक्ष-5-समापन कड़ी 
             सभी दर्शन और सिद्धांतों का तुलनात्मक अध्ययन करने के बाद स्पष्ट है कि जड़ पदार्थों में आसक्ति त्याग देने से जड़ शरीर जो कि स्वयं एक पदार्थ है, की पुनः प्राप्ति नहीं होती अर्थात पुनर्जन्म नहीं होता | भले ही कोई मुक्त होकर परमात्मा को उपलब्ध हुआ हो अथवा नहीं, परन्तु यह सत्य है कि पुनर्जन्म से मुक्ति पा लेना ही मोक्ष है | पुनर्जन्म से मुक्ति तभी मिल सकती है, जब व्यक्ति को आत्म-ज्ञान हो जाये | आत्म-ज्ञान हो जाना ही संभवतः परमात्मा से मिलन है | इस बारे में गीता का ज्ञान सबसे अधिक स्पष्ट है | गीता में एक  ही सन्देश है-परमात्मा के शरणागत हो जाने का | गीता हमें कहती है-स्थितप्रज्ञ होने से (दूसरे अध्याय में ) लेकर शरणागत (अंतिम, 18 वें अध्याय में) होने को | स्थितप्रज्ञ से शरणागत होने के मध्य में कर्म, ज्ञान, ध्यान और भक्ति आदि सभी आ जाते हैं और ये सभी आत्म-ज्ञान के मार्ग हैं और आत्म-बोध हो जाना ही संसार से मुक्त हो जाना है और यही मोक्ष है |
                    जीवन में यह कामना कभी भी नहीं करनी चाहिए कि हमें मोक्ष मिले | मोक्ष का अर्थ है, स्वयं को सुख-दुःख के भाव से पूर्णतया मुक्त कर संसार से विरक्त हो जाना | इस जीवन में लक्ष्य परमात्मा का प्रेम पाना होना चाहिए, मोक्ष प्राप्त करना नहीं | हममें में से किसी ने भी इस नश्वर शरीर की मृत्यु के बाद जीवन के होने अथवा न होने को नहीं देखा है | अतः किसी भी प्रकार के मोक्ष की कल्पना किया जाना संभव ही नहीं है | एक परम पिता का आश्रय पाकर उससे प्रेम करना और उससे प्रेम पाना ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए | इस प्रकार के जीवन को जीने के लिए गीता एक आधार प्रदान करती है | कहा जाता है कि गीता भगवान् श्री कृष्ण जो कि साक्षात् परम ब्रह्म थे, के श्रीमुख से निकली हुई वाणी है | अतः इस पर विश्वास कर श्रद्धा पूर्वक ईश्वर से प्रेम करना चाहिए |
                 इस श्रृंखला का समापन करते हुए मैं भी परमात्मा से गोस्वामीजी की तरह यही कहना चाहता हूँ कि हे परम पिता ! न तो मुझे अर्थ चाहिए, न काम , न धर्म और न ही मोक्ष | मुझे केवल यही वरदान दीजिये कि प्रत्येक जन्म में आपके प्रति मेरा प्रेम कभी भी कम नहीं हो |
अरथ न धरम न काम रुचि, गति न चहउं निरबान |
जनम जनम रति राम पद, यह वरदानु न आन ||अयोध्याकाण्ड/204||
                आपको यह श्रृंखला कैसी लगी, अपने विचारों से अवगत कराएँ | “पुरुषार्थ” जैसे विषय पर लिखना और संतोषप्रद लिखना बड़ा ही मुश्किल कार्य है | इस विषय पर चाहे जितना लिख दिया जाए, संतुष्टि मिलना असंभव है | फिर भी एक क्षुद्र प्रयास किया है, आपको पसंद आया होगा | आप सभी का साथ बने रहने पर आभार |
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||

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