धर्मस्य ह्याप वर्ग्यस्य नार्थोSर्थायोपकल्पते ।
नार्थस्य धर्मैकान्तस्यकामो लाभाय हि स्मृत:।।
-भागवत-1/2/9
धर्म का फल है,मोक्ष।धर्म की सार्थकता अर्थ प्राप्ति में नहीं है।अर्थ केवल धर्म के लिए है।भोगविलास उसका फल नहीं मन गया है।
धर्म मार्ग पर चलते हुए अर्थ प्राप्त कर उस अर्थ को धर्म के उपयोग में लगा देना ही अर्थ का समुचित उपयोग है।अर्थ को आप भोगविलास में भी लगा सकते हैं और उससे दान भी कर सकते हैं।अर्थ का दान करना, धर्म की सार्थकता सिद्ध करता है। अर्थ की तीन गतियां है- दान, भोग और नाश।अर्थ का केवल भोग ही न करें बल्कि उसे नाश होने से भी बचाएं और पात्रता रखने वाले स्थान और व्यक्तियों को दान करते रहना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि धर्म की सार्थकता केवल अर्थ प्राप्ति में नहीं है बल्कि प्राप्त हुए अर्थ को पुनः धर्म के लिए उपयोग में लेने में है।
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
नार्थस्य धर्मैकान्तस्यकामो लाभाय हि स्मृत:।।
-भागवत-1/2/9
धर्म का फल है,मोक्ष।धर्म की सार्थकता अर्थ प्राप्ति में नहीं है।अर्थ केवल धर्म के लिए है।भोगविलास उसका फल नहीं मन गया है।
धर्म मार्ग पर चलते हुए अर्थ प्राप्त कर उस अर्थ को धर्म के उपयोग में लगा देना ही अर्थ का समुचित उपयोग है।अर्थ को आप भोगविलास में भी लगा सकते हैं और उससे दान भी कर सकते हैं।अर्थ का दान करना, धर्म की सार्थकता सिद्ध करता है। अर्थ की तीन गतियां है- दान, भोग और नाश।अर्थ का केवल भोग ही न करें बल्कि उसे नाश होने से भी बचाएं और पात्रता रखने वाले स्थान और व्यक्तियों को दान करते रहना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि धर्म की सार्थकता केवल अर्थ प्राप्ति में नहीं है बल्कि प्राप्त हुए अर्थ को पुनः धर्म के लिए उपयोग में लेने में है।
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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