न चोराहार्यम् न च राजहार्यम्,
न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं,
विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥
भावार्थः- जिसे न चोर चुरा सकते हैं, न राजा हरण कर सकता है, न भाई बँटा सकते हैं, जो न भार स्वरुप ही है, जो नित्य खर्च करने पर भी बढ़ता है, ऐसा विद्या धन सभी धनों में प्रधान है।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि।
व्यये कृते वर्धत एव नित्यं,
विद्याधनं सर्वधनप्रधानम्॥
भावार्थः- जिसे न चोर चुरा सकते हैं, न राजा हरण कर सकता है, न भाई बँटा सकते हैं, जो न भार स्वरुप ही है, जो नित्य खर्च करने पर भी बढ़ता है, ऐसा विद्या धन सभी धनों में प्रधान है।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
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