Sunday, November 18, 2018

प्रेरक प्रसंग के सन्देश - 1

प्रेरक प्रसंग के संदेश - 1
पिछले दो दिनों में हमने दो प्रेरक प्रसंग पढ़े।पढ़ने और सुनने में दोनों ही प्रसंग हृदय स्पर्शी हैं। पहले प्रसंग में मलूक दास अपने जीवन के प्रारम्भ में परमात्मा में बिल्कुल भी विश्वास नहीं करते थे अर्थात नास्तिक थे परंतु सत्संग के प्रभाव से उनका जीवन ही परिवर्तित हो गया। उनके जीवन मे यह परिवर्तन यूँही नहीं आ गया। घोर नास्तिक की सबसे बड़ी विशेषता होती है कि वह बिना सबूत के, बिना आजमाए किसी बात को आसानी से स्वीकार नहीं करता ।ऐसा व्यक्ति भगवान ही क्या, किसी पर भी विश्वास नहीं करता। संतों के सानिध्य से, राम-कथा का लगातार श्रवण करते रहने से उनके मन में परमात्मा के प्रति, उसे जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई।मलूकदास ने इससे पूर्व जीवन मे कभी शायद ही सोचा होगा कि संसार का पालनहार भी मनुष्य के अतिरिक्त कोई अन्य भी हो सकता है।उन्होंने इसी बात को संतों के द्वारा कही गई बात की सत्यता परखने का आधार बनाया। इस परीक्षा से वह बड़ी सरलता से समझ सकता था कि ईश्वर का अस्तित्व है अथवा नहीं।
जीवन में सभी परिस्थितियां अचानक ही नहीं बनती।उनके बनने के पीछे भी परमात्मा की ही कृपा होती है। मलूकदास ने परीक्षा लेने से पहले सोचा भी नहीं होगा कि 24 घंटे के अंदर ही घनघोर जंगल में परिस्थिति इतनी तेज गति से परिवर्तित हो जाएगी।शेर, अपने स्वभावानुसार शिकार की तलाश में जंगल में सदैव घूमता ही रहता है।दहाड़ लगाना भी उसकी एक आदत है। परंतु राज कर्मचारियों का आना,फिर शेर की दहाड़ सुनकर पहले घोड़ों के और फिर सभी का भोजन वहीं छोड़कर भाग जाना क्या अपने आप हो सकता है ? सब कुछ पूर्वलिखित एक पटकथा सी लगती है। प्रसंग अपनी पराकाष्ठा को तब छूता है, जब डाकू स्वयं भोजन करने से पहले पेड़ पर बैठे मलूकदास को अपने हाथों से भोजन कराते हैं। अंततः मलूकदास के साथ साथ डाकुओं का भी हृदय परिवर्तन हो जाता है।
रामचरितमानस में महर्षि वाल्मिकी जी भगवान श्री राम को कहते हैं कि हे राम!आपको वही जान सकता है, जिसको आप जनाना चाहते हैं। इस प्रसंग से यह बात शतप्रतिशत सत्य सिद्ध होती है। सत्संग भी उसी को मिलता है जिस पर परमात्मा की कृपा होती है।मलूकदास के गांव में भी इस राम-कथा से पहले भी कई संत आये होंगे। परंतु जब मलूकदास जी पर परमात्मा की कृपा दृष्टि पड़ी तभी सत्संग में केवल एक प्रसंग सुनकर और परख कर ही वे नास्तिक से आस्तिक हो गए और स्वयं के जीवन को परिवर्तित करने के साथ साथ डाकुओं का जीवन भी परिवर्तित कर दिया। ऐसी होती है, परमात्मा की कृपा और सत्संग का प्रभाव।
गोस्वामीजी मानस में इसी सम्बन्ध में कहते हैं-
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई।जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाहि।।2/3/127।।
बिनु सतसंग बिबेक न होई।राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।1/3/7।।
होइ विवेकु मोह भ्रम भागा।तब रघुनाथ चरन अनुरागा।।2/93/5।।
प्रस्तुति - डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।

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