प्रेरक प्रसंग के संदेश -4
नामदेव तो भक्त थे। कई दिनों बाद सत्संग कर लौटे तो अपने घर की दशा देखकर विस्मित रह गए। खाली पड़े खाद्यान्न भंडार ठसाठस भरे हुए थे। टूटी फूटी झोंपड़ी भी सुधार दी गई थी। ऐसा कैसे हुआ राजाई?राजाई की बातों को सुनकर बड़ा दुःख हुआ, नामदेव को। हे पाण्डुरंग, यह क्या हुआ ? क्यों राजाई, मुझको समझ नहीं सकी?
परमात्मा जैसे अमूल्य हीरे के रहते यह पारस पत्थर भी तुच्छ है।भला,पत्थर के बदले हीरा कैसे फैंका जा सकता है? अभाव हैं तो परमात्मा से निकटता है, अभाव दूर हुए कि परमात्मा से विस्मरण हुआ। परीसा भागवत बनना सरल है, नामदेव बनना बड़ा मुश्किल।नामदेव जानते थे कि असली पारस तो परमात्मा है, स्वर्ण बनाने वाला पारस पत्थर तो छद्म है, नकली है। पारस पत्थर तो संसार मे उलझाने का काम करता है।इस पत्थर को तो जितनी शीघ्रता से त्याग दिया जाए,वही उत्तम है। पाण्डुरंग याद आये, नामदेव को।हम होते तो पाण्डुरंग को भूला देते,केवल पारस पत्थर को याद रखते।नामदेव ने पारस को उठाया और नदी में फेंक दिया और पुनः लग गए, पाण्डुरंग को भजने।
नामदेव पारस छोड़ सकता है परंतु परीसा भागवत भला कैसे छोड़ दे उसको। नामदेव अनन्य भक्त हैं भगवान के, उनको कैसे कुछ अनुचित कह दे।स्वयं परीसा अपने ही बाल नोचने लगा। हम भी तो ऐसा ही करते हैं, जब मिली हुई भोग की वस्तु हमसे कोई छीन कर ऐसी जगह फैंक देता है,जहां से उसे वापिस पाना असंभव लगने लगे।जब बात कुछ अधिक ही बढ़ गई तो पाण्डुरंग की कृपा नामदेव पर हुई। नदी में गोता लगाकर मुट्ठी में भरकर सैंकड़ो पारस पत्थर ला फैंके, परीसा भागवत के सामने। कितना खूबसूरत दृश्य रहा होगा उस समय, जब चारों और पारस पत्थर बिखरे पड़े हों और नामदेव की दृष्टि केवल परमात्मा पर ही टिकी हो और वे निर्विकार भाव से पाण्डुरंग को भज रहे हो।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम् ।।
नामदेव तो भक्त थे। कई दिनों बाद सत्संग कर लौटे तो अपने घर की दशा देखकर विस्मित रह गए। खाली पड़े खाद्यान्न भंडार ठसाठस भरे हुए थे। टूटी फूटी झोंपड़ी भी सुधार दी गई थी। ऐसा कैसे हुआ राजाई?राजाई की बातों को सुनकर बड़ा दुःख हुआ, नामदेव को। हे पाण्डुरंग, यह क्या हुआ ? क्यों राजाई, मुझको समझ नहीं सकी?
परमात्मा जैसे अमूल्य हीरे के रहते यह पारस पत्थर भी तुच्छ है।भला,पत्थर के बदले हीरा कैसे फैंका जा सकता है? अभाव हैं तो परमात्मा से निकटता है, अभाव दूर हुए कि परमात्मा से विस्मरण हुआ। परीसा भागवत बनना सरल है, नामदेव बनना बड़ा मुश्किल।नामदेव जानते थे कि असली पारस तो परमात्मा है, स्वर्ण बनाने वाला पारस पत्थर तो छद्म है, नकली है। पारस पत्थर तो संसार मे उलझाने का काम करता है।इस पत्थर को तो जितनी शीघ्रता से त्याग दिया जाए,वही उत्तम है। पाण्डुरंग याद आये, नामदेव को।हम होते तो पाण्डुरंग को भूला देते,केवल पारस पत्थर को याद रखते।नामदेव ने पारस को उठाया और नदी में फेंक दिया और पुनः लग गए, पाण्डुरंग को भजने।
नामदेव पारस छोड़ सकता है परंतु परीसा भागवत भला कैसे छोड़ दे उसको। नामदेव अनन्य भक्त हैं भगवान के, उनको कैसे कुछ अनुचित कह दे।स्वयं परीसा अपने ही बाल नोचने लगा। हम भी तो ऐसा ही करते हैं, जब मिली हुई भोग की वस्तु हमसे कोई छीन कर ऐसी जगह फैंक देता है,जहां से उसे वापिस पाना असंभव लगने लगे।जब बात कुछ अधिक ही बढ़ गई तो पाण्डुरंग की कृपा नामदेव पर हुई। नदी में गोता लगाकर मुट्ठी में भरकर सैंकड़ो पारस पत्थर ला फैंके, परीसा भागवत के सामने। कितना खूबसूरत दृश्य रहा होगा उस समय, जब चारों और पारस पत्थर बिखरे पड़े हों और नामदेव की दृष्टि केवल परमात्मा पर ही टिकी हो और वे निर्विकार भाव से पाण्डुरंग को भज रहे हो।
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम् ।।
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