सनातन धर्म -हिंदी/अंग्रेजी भाषा-6
छठा बिंदू -
Please don't refer to our temples as prayer halls. Temples are "devalaya" (abode of god) and not "prarthanalaya" (Prayer halls).
परमात्मा से प्रार्थना कहाँ की जाती है ? सनातन दर्शन में परमात्मा की उपस्थिति प्रत्येक स्थान पर होना स्वीकार की गई है।इसलिए प्रार्थना के लिए कोई विशेष स्थान नियत नहीं है,परमात्मा की प्रार्थना सभी स्थानों पर की जा सकती है।चर्च,गुरुद्वारा, मस्जिद तथा मंदिर को प्रार्थना स्थल कहा अवश्य जाता है परंतु केवल इन्हीं स्थानों पर ही परमात्मा से की गई प्रार्थना स्वीकार होती हो,ऐसी बात नहीं है। मंदिर को देवालय कहें अथवा और कुछ, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला। हाँ, जिस मंदिर में देवता की प्रतिमा स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा की गयी हो, उस स्थान का महत्व अन्य स्थान की तुलना में अवश्य ही अधिक हो जाता है। ऐसे स्थान पर परमात्मा के विग्रह के कारण हमारी मानसिकता में परिवर्तन आ जाता है। सनातन धर्म का अनुगामी चोर भी अगर उस मंदिर में प्रवेश करता है, तो उसके भीतर का चौर्य भाव विग्रह को देखकर ही समाप्त हो जाता है। व्यभिचारी भी मंदिर में व्यभिचार करने से कतराता है।
आजकल मंदिरों की मर्यादा भी तार तार होती देख रहे हैं।इसका कारण है कि लोग विग्रह को भगवान न मानकर मात्र पत्थर ही मानने लगे हैं। मेरी बात को अन्यथा न लें, यह आज की वास्तविकता है कि विग्रह की प्रतिदिन सेवा-पूजा करने वाले व्यक्ति को भी उस मूर्ति में भगवान के होने पर विश्वास नहीं है। परमात्मा तो बहुत बड़ी बात है, मैं तो यहां तक कहता हूँ कि यह भौतिक संसार भी विश्वास पर टिका है।ऐसे में मूर्ति में भगवान होने के विश्वास को खंडित होते देखकर मन में ग्लानि अवश्य होती है। फिर भी कुछ स्थानों को अपवाद स्वरूप छोड़ दे तो अभी भी इस देश में मंदिरों के प्रति लोगों की आस्था बनी हुई है।
अनुचित कर्म करने के लिए प्रायः मंदिर का उपयोग नहीं किया जाता। मंदिर में पाप कर्म करने से बचने की सोच ही इसको प्रार्थना स्थल अथवा सभागार से कुछ अलग स्थान प्रदान करती है। जिस प्रकार चोर चोरी किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में नहीं करता, अपराधी भी अपराध छुपकर करता है किसी अन्य के सामने नही करता, उसी प्रकार देवालय में भगवान की उपस्थिति मानकर कोई भी वहां अशुभ कर्म नहीं करना चाहता।मूर्ति की उपस्थिति मंदिर में परमात्मा के वहां होने का अहसास कराती है। इसलिए मंदिर को मात्र प्रार्थना स्थल न कहकर देवालय कहना अधिक उपयुक्त होगा।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।
छठा बिंदू -
Please don't refer to our temples as prayer halls. Temples are "devalaya" (abode of god) and not "prarthanalaya" (Prayer halls).
परमात्मा से प्रार्थना कहाँ की जाती है ? सनातन दर्शन में परमात्मा की उपस्थिति प्रत्येक स्थान पर होना स्वीकार की गई है।इसलिए प्रार्थना के लिए कोई विशेष स्थान नियत नहीं है,परमात्मा की प्रार्थना सभी स्थानों पर की जा सकती है।चर्च,गुरुद्वारा, मस्जिद तथा मंदिर को प्रार्थना स्थल कहा अवश्य जाता है परंतु केवल इन्हीं स्थानों पर ही परमात्मा से की गई प्रार्थना स्वीकार होती हो,ऐसी बात नहीं है। मंदिर को देवालय कहें अथवा और कुछ, इससे कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला। हाँ, जिस मंदिर में देवता की प्रतिमा स्थापित कर प्राण प्रतिष्ठा की गयी हो, उस स्थान का महत्व अन्य स्थान की तुलना में अवश्य ही अधिक हो जाता है। ऐसे स्थान पर परमात्मा के विग्रह के कारण हमारी मानसिकता में परिवर्तन आ जाता है। सनातन धर्म का अनुगामी चोर भी अगर उस मंदिर में प्रवेश करता है, तो उसके भीतर का चौर्य भाव विग्रह को देखकर ही समाप्त हो जाता है। व्यभिचारी भी मंदिर में व्यभिचार करने से कतराता है।
आजकल मंदिरों की मर्यादा भी तार तार होती देख रहे हैं।इसका कारण है कि लोग विग्रह को भगवान न मानकर मात्र पत्थर ही मानने लगे हैं। मेरी बात को अन्यथा न लें, यह आज की वास्तविकता है कि विग्रह की प्रतिदिन सेवा-पूजा करने वाले व्यक्ति को भी उस मूर्ति में भगवान के होने पर विश्वास नहीं है। परमात्मा तो बहुत बड़ी बात है, मैं तो यहां तक कहता हूँ कि यह भौतिक संसार भी विश्वास पर टिका है।ऐसे में मूर्ति में भगवान होने के विश्वास को खंडित होते देखकर मन में ग्लानि अवश्य होती है। फिर भी कुछ स्थानों को अपवाद स्वरूप छोड़ दे तो अभी भी इस देश में मंदिरों के प्रति लोगों की आस्था बनी हुई है।
अनुचित कर्म करने के लिए प्रायः मंदिर का उपयोग नहीं किया जाता। मंदिर में पाप कर्म करने से बचने की सोच ही इसको प्रार्थना स्थल अथवा सभागार से कुछ अलग स्थान प्रदान करती है। जिस प्रकार चोर चोरी किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में नहीं करता, अपराधी भी अपराध छुपकर करता है किसी अन्य के सामने नही करता, उसी प्रकार देवालय में भगवान की उपस्थिति मानकर कोई भी वहां अशुभ कर्म नहीं करना चाहता।मूर्ति की उपस्थिति मंदिर में परमात्मा के वहां होने का अहसास कराती है। इसलिए मंदिर को मात्र प्रार्थना स्थल न कहकर देवालय कहना अधिक उपयुक्त होगा।
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ. प्रकाश काछवाल
।।हरि:शरणम्।।