उपरोक्त श्लोक में स्पष्ट कहा गया है कि मैं
तुम्हें वह ज्ञान कहने जा रहा हूँ जिसके जान लेने के बाद संसार में कुछ भी जानने
योग्य नहीं रहेगा | साथ ही श्री कृष्ण यह भी कह रहे हैं कि मैं तुम्हें विज्ञान
सहित तत्वज्ञान को सम्पूर्ण रूप से कहूँगा | आइये, अब हम उनकी इस बात में छुपे निहितार्थ
को समझने का प्रयास करते हैं | प्रथम बात, विज्ञान सहित तत्व ज्ञान अर्थात जिस
ज्ञान का प्रारम्भ विज्ञान होता है, वहां से कहना प्रारम्भ करेंगे और फिर धीरे
धीरे तत्वज्ञान की ओर बढ़ेंगे और कथन का समापन समस्त जानने योग्य ज्ञान को कहकर
करेंगे | दूसरी बात, इस संसार में जो कुछ भी जानने योग्य है, वह सब भगवान श्री
कृष्ण अर्जुन को आज बता ही देंगे | इस संसार में जो कुछ भी जानने योग्य है उसको जान
लेने पर फिर कुछ जानने के लिए रह ही कहाँ जाता है ?
प्रथम बात, हम आज जो कुछ भी
ज्ञान के नाम पर जानते हैं वह विज्ञान ही है | इस सिरे को पकड़ते हुए ही किसी बात
को कहने पर व्यक्ति के वह बात समझ में आती है अन्यथा नहीं | जितना वह जनता है,
वक्ता को उस स्तर पर आकर आगे की बातें समझानी पड़ती है | सीधे तत्वज्ञान की बात कहने
से उसके पल्ले कुछ भी नहीं पड़ेगा | अतः एक आदर्श वक्ता की यही विशेषता होती है कि
वह श्रोता का स्तर जांचे और फिर उसे उपदेश दे | एक किसान को अगर उपदेश देना हो तो
उपदेश का प्रारम्भ खेती बाड़ी और मवेशियों की बातों से करना होगा और अगर एक शिक्षक
को उपदेश देना हो तो उससे सम्बंधित विषय से बात प्रारम्भ करनी होगी | किसान का
विज्ञान खेत है और शिक्षक का विज्ञान उससे सम्बंधित विषय | गीता में भगवान श्री
कृष्ण अर्जुन का स्तर जांच कर ही बात प्रारम्भ कर रहे हैं | गीता में श्री कृष्ण
एक आदर्श उपदेशक है और अर्जुन एक आदर्श श्रोता, नहीं तो यह उपदेश अर्जुन के
अतिरिक्त के द्वारा भी तो सुना गया था |
क्रमशः आगे की कड़ी
6/8/2016 को |
|| हरिः शरणम् ||
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