इस भारतीय संस्कृति की महानता का
कितना भी गुणगान करूँ, मुझे वह सदैव अपर्याप्त ही लगता है | जब भी मैं वैदिक
शास्त्रों के एक एक प्रसंग में गहरे से उतरता हूँ तो यह दो नेत्र मेरे अपने
पूर्वजों के प्रति श्रद्धा से भर आते हैं | कहाँ तो इस संसार में आकर जीवन के पूर्वार्ध
में आधुनिक विज्ञान में रम गया था और आज, आज जीवन के इस उतरार्ध में परमात्मा ने मुझ
पर ऐसी कृपा की है, जो एक से बढ़कर एक वैदिक शास्त्रों का साथ मिल रहा है और साथ ही
साथ ऐसे संतों का सानिध्य भी मिल रहा है जिनके आशीर्वाद से इन शास्त्रों में वर्णित एक एक बात का मर्म
स्पष्ट होता जा रहा है | विज्ञान ने मुझे वह सोच प्रदान की है, जो बाध्य करती है, प्रत्येक
बात का सूक्ष्म अन्वेषण करने को | इसी अन्वेषण ने मेरे ह्रदय में अपने शास्त्रों
के प्रति अगाध श्रद्धा पैदा कर की है | सन् 1996 से पूर्व मुझे केवल और केवल अपने
विज्ञान पर ही पूर्ण विश्वास था और् दम्भ भरता था, अपने चिकित्सकीय विज्ञान का | चिकित्सकीय
सेवा के दौरान मेरे समक्ष आये एक ही उदाहरण ने मेरी इस सोच को बदलने के लिए मुझे
विवश कर दिया | उसी दिन मैंने पहली बार श्री मद भागवत गीता को गंभीरता के साथ पढ़ना
प्रारम्भ किया और उसके बाद आज तक पीछे मुड़कर नहीं देखा |
आज उस घटना के बीस वर्ष बाद मुझे
अपने वैदिक शास्त्रों के समक्ष विज्ञान की पुस्तकें उसी प्रकार नज़र आती है, जैसे भरी दुपहरी में दीपक का प्रकाश
| जिस प्रकार दीपक की महता से इंकार नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार विज्ञान की
महता को भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता | दीपक सूर्य की अनुपस्थिति अर्थात गहन
अंधकार में हमें मार्ग दिखलाता है, उसी प्रकार विज्ञान भी हमारे प्रारम्भिक अज्ञान
को दूर रखता है | सूर्य के उदय होते ही जिस प्रकार दीपक को हम एक तरफ रख देते हैं,
उसी प्रकार विज्ञान से आवश्यक ज्ञान प्राप्त कर वास्तविक ज्ञान प्राप्त करने के
लिए उसे भी एक तरफ रख देना चाहिए |
इतनी भूमिका इसलिए आपके समक्ष प्रस्तुत की
है क्योंकि मैं जानता हूँ कि आधुनिक जीवन शैली में हमारे धर्मशास्त्र किस प्रकार
उपेक्षित होते जा रहे हैं | आज आवश्यकता महसूस हो रही है कि हमारे इन सनातन धर्म
शास्त्रों को विज्ञान की कसौटी पर परख कर आज की युवा शक्ति के सामने प्रस्तुत किया
जाये | वास्तविकता तो यह है कि आधुनिक विज्ञान को हमारे शास्त्रों से ही प्राण
मिले हैं परन्तु आज के दिग्भ्रमित साथियों और युवाओं को केवल विज्ञान से इनकी
तुलना कर के ही मार्ग दिखलाया जा सकता है | कान चाहे सीधे पकड़ें अथवा हाथ घुमाकर, दोनों
में कुछ भी अंतर नहीं है | टिहरी में गंगा पर जब बाँध बांधा गया था, तब कुछ दिनों
के लिए गंगा उलटी बहने लगी थी | इसका अर्थ यह नहीं है कि गंगा वापिस गंगोत्री
पहुंच गयी होगी | गंगा को तो सागर में समाना होता है, वह तो बाँध के भरते ही पुनः
सागर की और चल पड़ी | इसी प्रकार कुछ समय के लिए हमारा शास्त्रीय ज्ञान, सांसारिक
उपभोग के लिए विज्ञान बनकर बहने लगा है | एक न एक दिन हम पुनः हमारे शास्त्रों में
वर्णित वास्तविक ज्ञान की तरफ लौटेंगे ही, ऐसा मुझे विश्वास है |
|| हरिः शरणम् ||
बहुत ही सही तरह से आपने समझाया है कि विज्ञान से प्रारंभ करके किस तरह ज्ञान की राह पर अग्रसर होना चाहिए | आज के विद्यार्थियों को ये अवश्य सीखना चाहिए कि व्यक्त से अव्यक्त का ज्ञान पाना संभव नहीं है उसको अव्यक्त के विषय में जान कर ही पाया जा सकता है |
ReplyDeleteवास्तविक और सच्चा ज्ञान ये ही है जो गीता में वर्णित है |
यो माम पश्यति सर्वत्र , सर्वं च मयि पश्यति |
तस्याहम न प्रणस्यामी , स च में न प्रणश्यति ||
ॐ शांति