भक्ति को समझने के लिए भागवत का दसवां स्कंध सबसे महत्वपूर्ण है | इसके 29 से 33 वें अध्याय में रास लीला का वर्णन आता है | भागवत के 10 वें स्कंध के इन पाँच अध्यायों को लेकर विभिन्न हिंदी और संस्कृत के लेखकों ने ‘रास पंचाध्यायी’ की रचना की है | इनमें मुख्य हैं- रहीम खानखाना, हरिराम व्यास और नवलसिंह कायस्थ | रास पंचाध्यायी का महत्त्व प्रेमाभक्ति के सन्दर्भ में उल्लेखनीय है | ‘रास पंचाध्यायी’ में प्रसंग आता है, रास लीला का | शरद पूर्णीमा की रात को बांसुरी की मधुर ध्वनि को सुनकर गोपियाँ भगवान् श्री कृष्ण के पास आती है और प्रत्येक गोपी स्वयं के साथ रास का आग्रह करती है | कृष्ण उन्हें वापिस लौट जाने का निवेदन करते हैं परन्तु गोपियाँ अपना आग्रह दोहराती रहती हैं | भगवान लीला करते हैं और लीला के मध्य यकायक अन्तर्धान हो जाते हैं | उस समय गोपियों की जो दशा हुई है, उसका बहुत ही सुन्दर चित्रण है | परमात्मा के विरह में भक्त की क्या दशा होती है, इसका वर्णन बहुत ही सुन्दर रूप से किया गया है | भागवत में गोपिका-गीत का अध्याय पठनीय है |
रास शब्द में रस महत्वपूर्ण है | ‘रासो वे सः’ अर्थात वे स्वयं रस है | रस का अर्थ होता है, प्रेम | परमात्मा स्वयं प्रेम है और प्रेम को प्रेम से ही पाया जा सकता है | मनुष्य में प्रेम पैदा होता है, सेवा से और सेवा का आधार है, भक्ति | अतः नवधा-भक्ति के नौ साधनों में से किसी भी एक साधन को अपनाकर परमात्मा को पाया जा सकता है |
भक्ति के प्रधान दो भेद हैं - एक साधनरूप, जिसको वैध और नवधा भक्ति के नाम से भी कहा है और दूसरा साध्यरूप , जिसको प्रेमा – भक्ति, प्रेमलक्षणा आदि नामों से कहा है | इनमें नवधा साधनरूप है और प्रेम साध्य है | श्रीमद्भागवत में प्रह्लादजी ने कहा है ' भगवान विष्णु के नाम, रूप, गुण और प्रभाव आदि का श्रवण, कीर्तन और स्मरण तथा भगवान की चरणसेवा, पूजन और वन्दन एवं भगवान में दासभाव, सखाभाव और अपने को समर्पण कर देना - यह नौ प्रकार की भक्ति है |' इस उपर्युक्त नवधा भक्ति में से एक का भी अच्छी प्रकार अनुष्ठान करने पर मनुष्य परम पद को प्राप्त हो जाता है; फिर जो नवों का अच्छी प्रकार से अनुष्ठान करने वाला है उसके कल्याण में तो कहना ही क्या है ?
क्रमशः
|| हरिःशरणम् ||
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