आज टीवी सुनाता है,
टॉम व जेरी, डोरेमोन आदि की कहानियां, जो न तो ज्ञानवर्धक होती हैं और न ही स्वस्थ
मनोरंजन करती है | बच्चे का मस्तिष्क एक काल्पनिक संसार में भ्रमण करने लगता है और
वह धीरे धीरे वास्तविकता से दूर जाने लगता है | इन कहानियों का कथानक इतना अधिक प्रभावशाली
होता है कि सतत देखे जाने पर बच्चा कुछ ही दिनों में एक कल्पना लोक में जीने लगता
है | मैंने ऐसे बच्चे देखें हैं, जो टीवी पर ऐसे ही किसी एक कार्यक्रम को नशे की
हद तक पसंद करते हैं और इसके आदी हो चुके हैं |
कहाँ भटक गया मैं भी, बात कह रहा था
बचपन में सुने हुए किस्से - कहानियों की और पहुँच गया आज के दौर में | मैं आप से
आग्रह करता हूँ कि पुरानी सुनी गयी कहानियों
को एक बार फिर याद करें, अपने से आगे की पीढ़ी को सुनाएँ और साथ ही साथ उनके भीतर के मर्म को जानने का प्रयास भी करें | वे कहानियां
आपको एक अलग रूप से सोचने को विवश कर देंगी |
चलिए, मैं भी आपको ऐसी ही बचपन में
सुनी एक कहानी सुनाता हूँ | कहते हैं, अलादीन के पास एक चिराग था उसमें एक जिन्न
था जो चिराग को घिसने से बाहर निकल आता था | उस जिन्न में एक खूबी थी कि वह कभी भी
खाली नहीं बैठ सकता था | उससे कोई न कोई काम करवाते रहना आवश्यक था | अगर उसको कोई
काम नहीं मिलता तो वह उस चिराग को घिसने वाले को ही मार डालता था | एक बार यह
चिराग किसी एक व्यक्ति के हाथ लग गया | उसने ज्यों ही उसे घिसा, जिन्न उसके सामने
हाज़िर हो गया | बड़े होने पर इसी से मिलती जुलती एक कहानी हमारे पाठ्यक्रम में भी
होती थी | उसमें जिन्न चिराग के स्थान पर एक बोतल में बंद होता है | बोतल का ढक्कन
खोलते ही जिन्न बाहर आकर काम पूछता है | कोई अंतर नहीं है, दोनों ही कहानियों के
मूल सन्देश में | वह जिन्न बाहर निकलते ही काम बताने की कहने लगा | उस व्यक्ति ने
उसे कई काम बताये, जिन्न ने तुरंत ही वे सब काम कर डाले | जब व्यक्ति के सभी काम
हो गए और कोई काम कराने को शेष नहीं रहा तो जिन्न ने उस व्यक्ति को .............|
आगे आप इस कहानी को समझ ही गए होंगे | इसे मैं एक कहानी मात्र ही समझता रहा, जीवन
भर |
क्रमशः
|| हरिः शरणम् ||
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