Thursday, July 21, 2016

चंद्रमा पर विजय या मन पर विजय ?

                     दिनांक-21 जुलाई 1969, आज से ठीक 47 वर्ष पूर्व मनुष्य ने चन्द्रमा पर विजय पताका फहराई थी | जितना ही मनुष्य भौतिक प्रगति करता जा रहा है, उतना ही वह आध्यात्मिक रूप से पिछड़ता जा रहा है | हमारे शास्त्र  कहते हैं कि मन का स्वामी चंद्रमा है | अब आप ही देख लीजिये, मनुष्य ने मन के स्वामी चन्द्रमा को तो छू लिया परन्तु अपने मन पर विजय पाने की तरफ से बेफिक्र है | चंद्रमा पर पहुँचने से अधिक आवश्यकता है, मन के भीतर झांकने की | जब तक मन को गंभीरता से नहीं देखोगे, परखोगे; तब तक कोई लाभ नहीं है चंद्रमा को जानने से | स्वामी को जानना है, तो पहले दास से मिलो | राम को जानना है तो पहले हनुमान से मिलना पड़ेगा | हनुमान को जिस दिन जान जाओगे, राम को जानने की आवश्यकता ही नहीं होगी क्योंकि फिर राम और हनुमान का अंतर ही समाप्त हो जायेगा |
             चंद्रमा पर पहुँचने के 47 साल बाद हमें विश्लेषण करना होगा कि इससे मनुष्य को क्या प्राप्ति हुआ ?  चंद्रमा अभी भी अन्तरिक्ष में पूर्व की भांति पृथ्वी और सूर्य की परिक्रमा कर रहा है, चंद्रमा पर मनुष्य की इस उपलब्धि का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है | परन्तु मनुष्य का मन इस उपलब्धि से कई नयी कामनाओं से और भर गया है | वह इस उपग्रह की खोज से आगे जाकर ग्रहों तक पहुँचने की योजना बना रहा है | अभी कुछ दिन पूर्व ही वृहस्पति की कक्षा में उसका यान प्रवेश कर उसकी परिक्रमा कर रहा है | इसे ही मनुष्य की कामनाओं का विस्तार होना कहा गया है |
            मैं विज्ञान की इस उपलब्धि की कोई आलोचना नहीं कर रहा हूँ | मैं कहना चाहता हूँ कि कहीं हम भौतिक प्रगति के नीचे धीरे धीरे अपनी आध्यात्मिक सोच को दफ़न तो नहीं करते जा रहे हैं ? सत्य तो यही है | आज आवश्यकता है, मन को नियंत्रण में रखने की | अतः उसे केवल भौतिक कामनाओं से ही न भरें बल्कि आध्यात्मिकता की तरफ भी उन्मुख करें | आत्मोत्थान के लिए परमात्मा को जानना ग्रहों को जानने से अधिक  महत्वपूर्ण है |
             मन एव मनुष्याणां कारणं बंधमोक्षयो: |
            बन्धाय विषयासक्तं मुक्तं निर्विषयं स्मृतम् ||
मनुष्य का यह मन ही उसके बंधन और मोक्ष का कारण है | विषय भोग और भौतिकता की चकाचौंध की ओर मन का अग्रसर होना बंधन पैदा करता है और इनसे अप्रभावित रहकर परमात्मा की ओर उन्मुख होना मोक्ष को उपलब्ध कराता है |
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल

|| हरिः शरणम् ||

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