दिनांक-21 जुलाई 1969, आज से ठीक 47
वर्ष पूर्व मनुष्य ने चन्द्रमा पर विजय पताका फहराई थी | जितना ही मनुष्य भौतिक
प्रगति करता जा रहा है, उतना ही वह आध्यात्मिक रूप से पिछड़ता जा रहा है | हमारे
शास्त्र कहते हैं कि मन का स्वामी चंद्रमा
है | अब आप ही देख लीजिये, मनुष्य ने मन के स्वामी चन्द्रमा
को तो छू लिया परन्तु अपने मन पर विजय पाने की तरफ से बेफिक्र है | चंद्रमा पर
पहुँचने से अधिक आवश्यकता है, मन के भीतर झांकने की | जब तक मन को गंभीरता से नहीं
देखोगे, परखोगे; तब तक कोई लाभ नहीं है चंद्रमा को जानने से | स्वामी को जानना है,
तो पहले दास से मिलो | राम को जानना है तो पहले हनुमान से मिलना पड़ेगा | हनुमान को
जिस दिन जान जाओगे, राम को जानने की आवश्यकता ही नहीं होगी क्योंकि फिर राम और
हनुमान का अंतर ही समाप्त हो जायेगा |
चंद्रमा पर पहुँचने के 47 साल बाद
हमें विश्लेषण करना होगा कि इससे मनुष्य को क्या प्राप्ति हुआ ? चंद्रमा अभी भी अन्तरिक्ष में पूर्व की भांति
पृथ्वी और सूर्य की परिक्रमा कर रहा है, चंद्रमा पर मनुष्य की इस उपलब्धि का कोई
प्रभाव नहीं पड़ा है | परन्तु मनुष्य का मन इस उपलब्धि से कई नयी कामनाओं से और भर
गया है | वह इस उपग्रह की खोज से आगे जाकर ग्रहों तक पहुँचने की योजना बना रहा है |
अभी कुछ दिन पूर्व ही वृहस्पति की कक्षा में उसका यान प्रवेश कर उसकी परिक्रमा कर
रहा है | इसे ही मनुष्य की कामनाओं का विस्तार होना कहा गया है |
मैं विज्ञान की इस उपलब्धि की कोई
आलोचना नहीं कर रहा हूँ | मैं कहना चाहता हूँ कि कहीं हम भौतिक प्रगति के नीचे धीरे
धीरे अपनी आध्यात्मिक सोच को दफ़न तो नहीं करते जा रहे हैं ? सत्य तो यही है | आज
आवश्यकता है, मन को नियंत्रण में रखने की | अतः उसे केवल भौतिक कामनाओं से ही न
भरें बल्कि आध्यात्मिकता की तरफ भी उन्मुख करें | आत्मोत्थान के लिए परमात्मा को
जानना ग्रहों को जानने से अधिक महत्वपूर्ण
है |
मन एव मनुष्याणां
कारणं बंधमोक्षयो: |
बन्धाय विषयासक्तं मुक्तं निर्विषयं स्मृतम्
||
मनुष्य का यह मन ही
उसके बंधन और मोक्ष का कारण है | विषय भोग और भौतिकता की चकाचौंध की ओर मन का
अग्रसर होना बंधन पैदा करता है और इनसे अप्रभावित रहकर परमात्मा की ओर उन्मुख होना
मोक्ष को उपलब्ध कराता है |
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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