गीता में नवधा भक्ति-
[ 1 ] श्रवण - भगवान के प्रेमी भक्तों द्वारा कथित भगवान के नाम, रूप, गुण, प्रभाव, लीला, तत्त्व और रहस्य की अमृतमयी कथाओं का श्रद्धा और प्रेमपूर्वक श्रवण करना एवं प्रेम में मुग्ध हो जाना श्रवणभक्ति का स्वरूप है | गीता (4/34; 13/25) में भगवान कहते हैं ' हे अर्जुन ! उस ज्ञान को तू समझ; ब्रह्मनिष्ठ आचार्य के पास जाकर उनको दंडवत प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से तत्त्व को जानने वाले वे ज्ञानी - महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे |'
[ 2 ] कीर्तन - भगवान के नाम, रूप, गुण, प्रभाव, चरित्र, तत्त्व और रहस्य का श्रद्धा और प्रेमपूर्वक उच्चारण करते - करते शरीर में रोमांच, कंठावरोध, अश्रुपात, हृदय की प्रफुल्लता, मुग्धता आदि का होना कीर्तन - भक्ति का स्वरूप है | गीता (9/30-31; 18/68-69) में कीर्तन - भक्ति का महत्त्व बताया गया है |
[ 3 ] स्मरण - भगवान को स्मरण करना ही भक्ति के ' प्राण ' है | केवल स्मरण - भक्ति से सारे पाप , विघ्न , अवगुण , और दुखों का अत्यंत अभाव हो जाता है | गीता (6/30 ; 8/7-8 व 14; 9/22; 12/6-8; 18/57-58) में भगवान ने स्मरण - भक्ति का ही महत्त्व बताया है |
[ 4 ] पाद सेवन - जिनके ध्यान से पाप राशि नष्ट हो जाती है , भगवान के उन चरणकमलों का चिरकाल तक चिंतन करना चाहिए | भगवान की चरणकमल रुपी नौका ही संसार - सागर से पार उतारने वाली है |
[ 5 ] अर्चन - जो लोग इस संसार में भगवान की अर्चना - पूजा करते हैं वे भगवान के अविनाशी आनंद स्वरूप परमपद को प्राप्त हो जाते हैं | गीता (18/46 ) में बताया है की भगवान की अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परम सिद्धि को प्राप्त हो जाता है | गीता (9/26) में भगवान कहते हैं ' शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ पत्र, पुष्प, फल और जल आदि मैं सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीत सहित खाता हूँ |'
[ 6 ] वन्दन - समस्त चराचर भूतों को परमात्मा का स्वरूप समझकर शरीर या मन से प्रणाम करना और ऐसा करते हुए भगवतप्रेम में मुग्ध होना वन्दन - भक्ति है | गीता(11/40) में इसका स्वरूप बताया गया है |
[ 1 ] श्रवण - भगवान के प्रेमी भक्तों द्वारा कथित भगवान के नाम, रूप, गुण, प्रभाव, लीला, तत्त्व और रहस्य की अमृतमयी कथाओं का श्रद्धा और प्रेमपूर्वक श्रवण करना एवं प्रेम में मुग्ध हो जाना श्रवणभक्ति का स्वरूप है | गीता (4/34; 13/25) में भगवान कहते हैं ' हे अर्जुन ! उस ज्ञान को तू समझ; ब्रह्मनिष्ठ आचार्य के पास जाकर उनको दंडवत प्रणाम करने से, उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से तत्त्व को जानने वाले वे ज्ञानी - महात्मा तुझे उस तत्त्वज्ञान का उपदेश करेंगे |'
[ 2 ] कीर्तन - भगवान के नाम, रूप, गुण, प्रभाव, चरित्र, तत्त्व और रहस्य का श्रद्धा और प्रेमपूर्वक उच्चारण करते - करते शरीर में रोमांच, कंठावरोध, अश्रुपात, हृदय की प्रफुल्लता, मुग्धता आदि का होना कीर्तन - भक्ति का स्वरूप है | गीता (9/30-31; 18/68-69) में कीर्तन - भक्ति का महत्त्व बताया गया है |
[ 3 ] स्मरण - भगवान को स्मरण करना ही भक्ति के ' प्राण ' है | केवल स्मरण - भक्ति से सारे पाप , विघ्न , अवगुण , और दुखों का अत्यंत अभाव हो जाता है | गीता (6/30 ; 8/7-8 व 14; 9/22; 12/6-8; 18/57-58) में भगवान ने स्मरण - भक्ति का ही महत्त्व बताया है |
[ 4 ] पाद सेवन - जिनके ध्यान से पाप राशि नष्ट हो जाती है , भगवान के उन चरणकमलों का चिरकाल तक चिंतन करना चाहिए | भगवान की चरणकमल रुपी नौका ही संसार - सागर से पार उतारने वाली है |
[ 5 ] अर्चन - जो लोग इस संसार में भगवान की अर्चना - पूजा करते हैं वे भगवान के अविनाशी आनंद स्वरूप परमपद को प्राप्त हो जाते हैं | गीता (18/46 ) में बताया है की भगवान की अपने स्वाभाविक कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य परम सिद्धि को प्राप्त हो जाता है | गीता (9/26) में भगवान कहते हैं ' शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ पत्र, पुष्प, फल और जल आदि मैं सगुणरूप से प्रकट होकर प्रीत सहित खाता हूँ |'
[ 6 ] वन्दन - समस्त चराचर भूतों को परमात्मा का स्वरूप समझकर शरीर या मन से प्रणाम करना और ऐसा करते हुए भगवतप्रेम में मुग्ध होना वन्दन - भक्ति है | गीता(11/40) में इसका स्वरूप बताया गया है |
[ 7 ] दास्य - भगवान के गुण, तत्त्व, रहस्य
और प्रभाव को जानकर श्रद्धा - प्रेमपूर्वक उनकी सेवा करना और उनकी आज्ञा का पालन
करना दास्य -भक्ति है |
[ 8 ] सख्य - भगवान के तत्त्व , रहस्य , महिमा
को समझकर मित्र भाव से उनमें प्रेम करना और प्रसन्न रहना, [गीता (4/3; 18/64)] सख्य - भक्ति है |
[ 9 ]
आत्मनिवेदन - जिस मनुष्य ने भगवान का आश्रय लिया है उसका अंत:करण शुद्ध हो जाता है
एवं वह ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है, गीता (7/14; 9/32 व
34; 18/62 व 66 ) में शरणागति का महत्त्व
बताया गया है |
क्रमशः|| हरिः शरणम् ||
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