महाभारत से-
चलानि हिमानि षडिन्द्रियाणि
तेषां यद्यद् वर्धते यत्र यत्र |
ततस्ततः स्रवते बुद्धिरस्य
छिद्रोदकुम्भादिव नित्यमम्भः || महा./उदयोग.-36/48 ||
मन सहित छहों ज्ञानेन्द्रियाँ बड़ी चंचल है | उनमें से जो भी इन्द्रिय जिस जिस विषय में आगे बढ़कर भोग करती है, वहां वहां से मनुष्य की बुद्धि ऐसे ही क्षीण होती चली जाती है; जैसे छेद वाले जल के घड़े में से लगातार जल बहता रहता है |
महाभारत के उद्योग पर्व से उद्घृत यह श्लोक स्पष्ट करता है कि यह मन बड़ा ही चंचल है, जिस कारण से इसे नियंत्रण में रखना बहुत ही मुश्किल है | मन के कारण ही इन्द्रियां स्वच्छंद होकर भोगों में लग जाती है | सतत भोग मनुष्य के शरीर और बुद्धि दोनों का ही नाश करते हैं | प्रारम्भ में ये भोग मनुष्य को शारीरिक सुख प्रदान करते हैं, परन्तु लगातार इन इन्द्रियों के भोगों में लगे रहने से दुःख का कारण बनते हैं | यह दुःख मिलता है, शारीरिक व्याधि के रूप में, मानसिक आधि के रूप में और फिर बार बार 84 के व्यूह में फंसने के रूप में | अतः मन को जीवन के प्रारम्भ काल से ही नियंत्रण में रखने का प्रयास करे | उसके कहे अनुसार न चले, बुद्धि का उपयोग करें जो मनुष्य नाम के प्राणी को परमात्मा से आशीर्वाद स्वरुप मिली है | कबीर ने कहा भी है-
मन के मते न चालिए, मन के मते अनेक |
|| हरिः शरणम् ||
चलानि हिमानि षडिन्द्रियाणि
तेषां यद्यद् वर्धते यत्र यत्र |
ततस्ततः स्रवते बुद्धिरस्य
छिद्रोदकुम्भादिव नित्यमम्भः || महा./उदयोग.-36/48 ||
मन सहित छहों ज्ञानेन्द्रियाँ बड़ी चंचल है | उनमें से जो भी इन्द्रिय जिस जिस विषय में आगे बढ़कर भोग करती है, वहां वहां से मनुष्य की बुद्धि ऐसे ही क्षीण होती चली जाती है; जैसे छेद वाले जल के घड़े में से लगातार जल बहता रहता है |
महाभारत के उद्योग पर्व से उद्घृत यह श्लोक स्पष्ट करता है कि यह मन बड़ा ही चंचल है, जिस कारण से इसे नियंत्रण में रखना बहुत ही मुश्किल है | मन के कारण ही इन्द्रियां स्वच्छंद होकर भोगों में लग जाती है | सतत भोग मनुष्य के शरीर और बुद्धि दोनों का ही नाश करते हैं | प्रारम्भ में ये भोग मनुष्य को शारीरिक सुख प्रदान करते हैं, परन्तु लगातार इन इन्द्रियों के भोगों में लगे रहने से दुःख का कारण बनते हैं | यह दुःख मिलता है, शारीरिक व्याधि के रूप में, मानसिक आधि के रूप में और फिर बार बार 84 के व्यूह में फंसने के रूप में | अतः मन को जीवन के प्रारम्भ काल से ही नियंत्रण में रखने का प्रयास करे | उसके कहे अनुसार न चले, बुद्धि का उपयोग करें जो मनुष्य नाम के प्राणी को परमात्मा से आशीर्वाद स्वरुप मिली है | कबीर ने कहा भी है-
मन के मते न चालिए, मन के मते अनेक |
|| हरिः शरणम् ||
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