Tuesday, July 19, 2016

गुरु-वंदन

                  आज गुरु पूर्णिमा है | मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने में जिन महापुरुषों ने योगदान दिया है, आज उन सभी की वंदना करने का दिवस है | वैसे ये महापुरुष नित्य ही वन्दनीय है | भागवत में भगवान् श्री कृष्ण कहते हैं-
स वै सत्कर्मणां साक्षाद् द्विजातेरिह सम्भवः |
आद्योSन्ग यत्राश्रमिणां यथाहं ज्ञानदो गुरुः || भागवत-10/80/31 ||
          भगवान श्री कृष्ण अपने मित्र सुदामा को कहते हैं कि वर्ण और आश्रम व्यवस्था का पालन करने वालों के तीन गुरु होते हैं |  इस संसार में शरीर का कारण- जन्मदाता पिता प्रथम गुरु है | इसके बाद उपनयन-संस्कार करके सत्कर्मों की शिक्षा देने वाला दूसरा गुरु है, वह मेरे ही समान पूज्य है | तदनन्तर तीसरा ज्ञानोपदेश करके परमात्मा को प्राप्त कराने वाला गुरु तो मेरा स्वरुप ही है |
     इन तीनों में सबसे महत्वपूर्ण गुरु है-जो परमात्मा का ज्ञान करा दे | हालाँकि पहले दो गुरु भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बिना पिता के यह मानव देह मिलना ही असंभव है और प्रारम्भिक तथा सत्कर्मों की शिक्षा देने वाला दूसरा गुरु आपको जीवन यापन करने हेतु शिक्षा के साथ साथ सत्कर्म करने को भी प्रेरित करता है | इस दूसरे गुरु की भूमिका आपको आजीविका कमाने और परमात्मा का ज्ञान कराने के लिए आधार तैयार करने में है |
           धर्म-शास्त्रों में पढ़े हुए को आत्मसात करना बहुत ही मुश्किल है; क्योंकि व्यक्ति स्वयं के पढ़े हुए की व्याख्या अपने स्वभाव और विवेक के अनुसार ही करता है | स्वभाव पूर्वजन्म के संस्कार और वर्तमान जीवन की अभिलाषा से बनता है | आप उस पढ़े गए ज्ञान के माध्यम से सही मार्ग की तलाश कर भी सकते हैं और नहीं भी कर पाते है | सही मार्ग की पहचान करने के लिए हमें एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है, जो अपने लिए सही मार्ग तलाश कर उस पर चल रहा हो | वह व्यक्ति ही आपका गुरु होता है | पुस्तकीय ज्ञान केवल सैद्धांतिक ज्ञान ही होता है, प्रायोगिक अथवा व्यवहारिक ज्ञान नहीं | सैद्धांतिक ज्ञान से आप यह अवश्य ही जानते हैं कि हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को  मिलाने से जल बनता है परन्तु जब तक आपको जल के निर्माण का प्रायोगिक ज्ञान नहीं हो जाता तब तक व्यवहार रूप से आप जल को नहीं बना सकते | एक पंडित और कथा वाचक के पास केवल सैद्धांतिक ज्ञान ही होता है; जबकि एक गुरु के पास सैद्धांतिक ज्ञान के साथ साथ प्रायोगिक और व्यवहारिक ज्ञान भी होता है | मेरे समस्त संकलन उन्हीं महान संतो से ( जिनमें प्रमुख थे, ब्रह्मलीन स्वामी रामसुखदास जी महाराज)  मिला आशीर्वाद है, जो मेरी लेखनी के माध्यम से व्यक्त हो रहा है | इसी प्रायोगिक और व्यवहारिक ज्ञान को धार मिल्र रही है, हरिः शरणम् आश्रम के आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा से | उनका मेरे बड़े भाई से गुरु के रूप में परिवर्तित हो जाना मुझे सदैव ही आनंदित करता रहता है | उनके ज्ञान के समक्ष मेरा यह कथित ज्ञान तुच्छ है और मैं अपने जीवन में उनका सदैव ऋणी रहूँगा |
       प्रथम और द्वितीय गुरु की भूमिका आपको योग्य बनाने तक है, परन्तु तीसरे गुरु की भूमिका आपके मनुष्य जीवन को सार्थक बनाने में है | वैसे मेरे इस जीवन में तीसरे गुरु के रूप में बहुत से संत-महात्मा हैं परन्तु परमात्मा-विषयक ज्ञान में अंगुली थाम कर राह दिखाने वाले आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा की महत्वपूर्ण भूमिका है | मेरा यह परम सौभाग्य है कि उनका स्नेह और सानिध्य मुझे सतत मिल रहा है | आज गुरु पूर्णिमा के दिन मैं सादर वंदन करते हुए उन्हें साष्टांग प्रणाम करता हूँ |
                    || हरिः शरणम् ||          

   

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