भक्ति कोई विवेचन का विषय नहीं है; बल्कि जीवन में आत्मसात
करने का विषय है | नवधा-भक्ति के अंतर्गत बताये गए नौ साधनों में से किसी भी एक
साधन को मन लगाकर अपना लेने पर भगवत प्राप्ति हो जाती है, इसमें तनिक भी संदेह
नहीं है | इस भौतिक संसार में और विशेष रूप से इस कलियुग में एक मात्र भक्ति ही आत्म-कल्याण
का मार्ग है | पूर्वकाल में नवधा-भक्ति के एक एक साधन पर चलने वाले महापुरुषों और
योगियों ने निष्ठां पूर्वक पालन करते हुए उदाहरण प्रस्तुत किया है | प्रत्येक
भक्ति के साधन का एक एक उदाहरण आपके समक्ष प्रस्तुत है-
प्रथम भक्ति- श्रवण- महाराज
परीक्षित, जिन्होंने मन लगाकर शुकदेव से भागवत सुनी |
द्वितीय भक्ति- कीर्तन-
आचार्य शुकदेव, जिन्होंने राजा परीक्षित को भागवत सुनाई |
तृतीय भक्ति- विष्णु
स्मरण-भक्त प्रह्लाद, हिरण्यकशिपु का पुत्र, जिसने अपने जीवन में कभी श्री हरि को
विस्मृत नहीं होने दिया |
चतुर्थ भक्ति- पाद सेवन-
लक्ष्मीजी, जो सदैव विष्णु के पाँव दबाती हुई उनकी सेवा में रत रहती है |
पंचम भक्ति- अर्चन- राजा
पृथु |
षष्ठी भक्ति – वंदन-
अक्रूरजी |
सप्तम् भक्ति- दास्य-
हनुमानजी महाराज, भगवान् श्री राम के दास |
अष्टम भक्ति- सख्य- महान
धनुर्धारी अर्जुन, भगवान् श्री कृष्ण के मित्र |
नवम् भक्ति- आत्म-निवेदन-
महान राजा बलि |
इसी प्रकार आज के युग में भी कई महापुरुष मिल
जायेंगे जो इन्हीं नौ में से किसी एक साधन को अपनाकर महान भक्तों की श्रेणी में सम्मिलित
हो गए | आवश्यकता है, मन लगाकर साधन को अपनाने की | परमात्मा आपको भी किसी एक साधन
को अपनाने को प्रेरित करे |
|| हरिः शरणम् ||
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