Wednesday, September 4, 2013

पुनर्जन्म-कैसे?-प्रक्रिया-४|

क्रमश:
                     जब आत्मा शरीर से अलग हो जाती है तो कुछ समय के लिए वह मृत शरीर के आस पास ही मंडराती रहती है|आत्मा वास्तव में है क्या?एक चुम्बक का चुम्बकीय क्षेत्र मात्र ही तो है,जो चित्त के साथ साथ अभी अभी शरीर से अलग हुई है|आप आत्मा को चुम्बक का उत्तरी ध्रुव और चित्त को दक्षिणी ध्रुव कह सकते हैं,क्योंकि आत्मा का चित्त के प्रति आकर्षण ही उसे अपने साथ शरीर से ले आता है|आत्मा और चित्त अपने प्रभाव क्षेत्र लिए  चुम्बकीय तरंगों के रूप में शरीर के चुम्बकीय क्षेत्र के आस पास घूमते रहते हैं और अगर किसी व्यक्ति का अपने शरीर के साथ ज्यादा ही मोह हुआ तो आत्मा उस शरीर में जाने का प्रयत्न भी करती है|लेकिन मात्र शरीर के चुम्बकीय क्षेत्र के ही प्रभावी होने के कारण यह असंभव होता है,क्योंकि इस समय शरीर के चुम्बकीय क्षेत्र का प्रभाव धीरे धीरे कम होना शुरू हो जाता है| शरीर की कोशिकाओं में विद्युत  उर्जा के अभाव के कारण चुम्बकीय क्षेत्र ज्यादा देर तक नहीं बना रह सकता|विद्युत उर्जा में अवरोध आ जाने से शरीर में हृदय की धड़कन पूर्ण रूप से बंद हो चुकी होती है|चिकित्सक कृत्रिम रूप से हृदय को शुरू करने के लिए सीने को दबाते है ,कृत्रिम श्वास भी देते है जिसे मेडिकल भाषा में Cardiac-respiratory resuscitation  कहा जाता है|इस प्रकिया से भी अगर हृदय की धड़कन वापिस नहीं लौटती है तो सीने पर विद्युत झटके दिए जाते है जिससे कई बार हृदय की गति वापिस लौट आती है|यह विद्युत कोशिकाओं में पुनः विद्युत संचरण प्रारंभ कर देती है,जिससे शरीर का जैव चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र पुनः अस्तित्व में आ जाता है और आत्मा के चुम्बकीय क्षेत्र  को आकर्षित करता है जिससे आत्मा मय चित्त के उसी शरीर में पुनः प्रवेश पा जाती है|
                                       आये दिन समाचार पत्रों में इस तरह के समाचार प्रकाशित  होते रहते है कि व्यक्ति मरने के बाद जिन्दा हो उठा,अंतिम संस्कार में अग्नि देने से पहले मृतक जिन्दा हो उठा या दफ़नाने से पहले बच्चे के शरीर में हरकत हुयी आदि|इन सब में इसी प्रकिया से आत्मा का शरीर में पुनः प्रवेश होता है|कई उदाहरण तो ऐसे भी मिल जायेंगे जहाँ दुबारा जिन्दा होने के बाद उस व्यक्ति ने काफी अच्छी खासी जिंदगी कई वर्षों तक जियी है| ऐसी स्थिति में ज्यादातर शरीर के विद्युत उर्जा के कम होते प्रभाव के साथ ही आत्मा शरीर को त्याग देती है परन्तु संयोगवश विद्युत उर्जा की तीव्रता अचानक बढ़ जाने से आत्मा शरीर में लौट आती है|
                               आत्मा कितने दिनों तक शरीर के आस पास चक्कर लगाती रहती है यह स्पष्ट नहीं है|अलग अलग शास्त्रों की इस बारे में अलग अलग राय है| सनातन धर्म में शरीर को अग्नि में समर्पित करने का विधान इसी लिए किया गया है ,जिससे त्यागे हुये शरीर के प्रति आत्मा का आकर्षण पूर्ण रूप से समाप्त होजाये और आत्मा अपनी भावी यात्रा के लिए आगे निकल पड़े|
                  गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
                               न जायते म्रियते वा कदाचि-
                               न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः |
                               अजो नित्यः शाश्वतोSयं पुराणों
                               न  हन्यते    हन्यमाने    शरीरे ||गीता२/२०||
अर्थात्,यह आत्मा किसी काल में न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा न यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला ही है|क्योंकि यह अजन्मा,नित्य, सनातन और पुरातन है;शरीर के मारे जाने पर भी यह मारा नहीं जाता है|
                         जब आत्मा न तो जन्मती है और न ही मारी जाती है |आत्मा हमेशा के लिए है तो फिर शरीर के मर जाने के बाद पुनर्जन्म किसका होता है?यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है|इसका उत्तर पुनर्जन्म के कारण और पूरी प्रक्रिया को जानने और समझने से ही मिल सकेगा|
                                  मिस्र में पिरामिड शताब्दियों पहले निर्मित किये गए थे जिसमे मृत देह को रसायनों का लेप करके सुरक्षित रखा जाता था|उस वक्त यह विश्वास किया जाता था कि एक न एक दिन यह मृत शरीर पुनः जीवित होगा|इन मृत देह को मम्मी कहा जाता है|मृत देह के साथ जीवनोपयोगी सभी वस्तुएं भी रखी जाती थी ताकि पुनर्जीवित होने पर सम्बंधित को समस्त सामग्री तत्काल सुलभ हो सके|उस समय में शाही परिवार के महत्वपूर्ण सदस्य की मृत्यु पर उसकी मृत देह के साथ आवश्यक जीवनोपयोगी वस्तुओं के संग जीवित दास और दासियों को भी पिरामिड में रख दिया जाता था| उस समय वहां पर पुनर्जन्म के विश्वास के स्थान पर उसी देह में पुनर्जीवन पर विश्वास किया जाता था |
    क्रमश:
                                 || हरि शरणम् ||                  
                                                     

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