क्रमश:
हमने चुम्बक के तीन प्रमुख गुणों की विवेचना की जो है-
१.चुमबकीय ध्रुवों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण और प्रतिकर्षण|
२.चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र का निर्माण|
३.चुम्बकीय क्षेत्र का विस्तार|
उपरोक्त तीन गुणों के अलावा तीन गुण और महत्त्व पूर्ण है जिन्हें जानने से हमें पुनर्जन्म की प्रक्रिया को समझने में और भी सहायता मिलेगी|इन गुणों को सरल भाषा में इस प्रकार बताया जा सकता है-
४.अगर किसी चुम्बक को तोड़कर दो भागों में विभाजित किया जाये तो उसका प्रत्येक हिस्सा एक चुम्बक की तरह व्यवहार करता है|यह नहीं है कि एक हिस्सा उत्तरी ध्रुव का बन जाये और दूसरा दक्षिणी ध्रुव|प्रत्येक टुकड़ा एक स्वतन्त्र चुम्बक की तरह व्यवहार करता है|
५.अगर एक चुम्बक के प्रभाव क्षेत्र में कोई भी लोहे का टुकड़ा या लोहे की वस्तु आ जाती है तो उसमे भी चुम्बकीय गुण आ जाते है|अगर चुम्बक का उत्तरी ध्रुव लोहे की वस्तु की तरफ है तो उस वस्तु का चुम्बक की तरफ का हिस्सा दक्षिणी ध्रुव की तरह व्यवहार करेगा| उनके बीच एक आकर्षण बल काम करेगा|अगर चुम्बक का आकर्षण बल उस लोहे की वस्तु पर लगने वाले अन्य बलों से ज्यादा हुआ तो फिर वह वस्तु चुम्बक के आकर चिपक जाती है|चिपकते ही उस वस्तु का स्वतन्त्र चुम्बकत्व समाप्त हो जाता है और उस वस्तु का दूसरा सिरा चुम्बक के दूसरे ध्रुव की तरह काम करने लगता है|अगर वह वस्तु चुम्बक की तरफ अन्य बलों के तेज होने के कारण चुम्बक के आकर चिपकती नहीं है तो चुम्बक को वहां से हटाते ही लोहे की वस्तु का चुम्बकीय व्यवहारभी समाप्त हो जाता है|
६.अगर एक चुम्बक को लोहे के टुकड़े या वस्तु पर एक ही दिशा में घिसा जाये तो वह लोहा एक स्वतन्त्र चुम्बक बन जाता है और उसमे समस्त चुम्बकीय गुण आ जाते हैं|
उपरोक्त ६ गुण चुम्बक के इतने महत्वपूर्ण है कि इनको जाने बिना पुनर्जन्म को जानना मुश्किल होगा और असंभव भी| अगर किसी भी चुम्बक को किसी ऊंचाई से गिरा दिया जाये तो उसके चुम्बकीय गुण समाप्त हो जाते हैं|
चुम्बक के इतने गुण अव्यय है अर्थात कभी भी समाप्त नहीं होते है|जब हम चुम्बक को ऊंचाई से गिराते हैं तो चुम्बकत्व नष्ट होता है, उसे वापिस विद्युत उर्जा से या दूसरे चुम्बक को उस पर एक ही दिशा में घिस कर प्राप्त किया जा सकता है|इसी प्रकार परम ब्रह्म भी अव्यय है और प्रलय के बाद चुम्बकत्व समाप्त होने की तरह उसका बल भी कृष्ण विवर यानि ब्लैक हॉल में जाकर समाप्त हो जाता है|ब्रह्माण्ड की पुनः रचना के लिए फिर से पराचुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण ब्लैक हॉल से होता है जिसे परम ब्रह्म कह सकते है|जिसके स्पंदन से उर्जा यानि शक्ति का प्रादुर्भाव होता है|इसी से आगे फिर सृष्टि का निर्माण शुरू होता है,जिसे हम पहले ही विस्तृत रूप से जान चुके हैं|
शरीर का अपना एक चुम्बकीय क्षेत्र होता है जो उसकी कोशिकाओं में उपस्थित विद्युत के कारण होता है,इसीलिए शरीर के इस चुम्बकीय क्षेत्र को जैव विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र कहा जाता है|जबकि आत्मा परमब्रह्म का यानि परमात्मा का अंश होने के कारण उसका केवल चुम्बकीय क्षेत्र हीहोता है,ठीक उसी प्रकार जैसे एक चुम्बक से उसका एक अंश अलग कर दिया जाये तो वह एक स्वतन्त्र चुम्बक की तारह व्यवहार करता है||इसी तरह परमात्मा का अंश आत्मा का अपना अस्तित्व परमात्मा के ही गुण रखते हुये स्वतन्त्र होता है|आत्मा अपने चुम्बकीय क्षेत्र को साथ लिए शरीर के जैव विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के साथ संयुक्त हो जाता है|इसके बाद ही शरीर में जीवन प्रारंभ होता है|इसी को अव्यक्त का व्यक्त होना कहते हैं|
इस स्थिति में अब शरीर और आत्मा के साथ मन ,बुद्धि और अहंकार भी होते हैं,जिनका विस्तार पूर्वक वर्णन पूर्व में किया जा चूका है|जितने भी कर्म इस शरीर के द्वारा किये जाते है वे सभी मन में चुम्बकीय तरंगों के रूप में अंकित होते जाते है|जिनका फल यानि परिणाम उसे नए जन्म की और ले जायेंगे|जब शरीर की क्षमता तेजी से कम होने लगती है तब आत्मा का शरीर को छोडना अवश्यम्भावी हो जाता है|
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
हमने चुम्बक के तीन प्रमुख गुणों की विवेचना की जो है-
१.चुमबकीय ध्रुवों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण और प्रतिकर्षण|
२.चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र का निर्माण|
३.चुम्बकीय क्षेत्र का विस्तार|
उपरोक्त तीन गुणों के अलावा तीन गुण और महत्त्व पूर्ण है जिन्हें जानने से हमें पुनर्जन्म की प्रक्रिया को समझने में और भी सहायता मिलेगी|इन गुणों को सरल भाषा में इस प्रकार बताया जा सकता है-
४.अगर किसी चुम्बक को तोड़कर दो भागों में विभाजित किया जाये तो उसका प्रत्येक हिस्सा एक चुम्बक की तरह व्यवहार करता है|यह नहीं है कि एक हिस्सा उत्तरी ध्रुव का बन जाये और दूसरा दक्षिणी ध्रुव|प्रत्येक टुकड़ा एक स्वतन्त्र चुम्बक की तरह व्यवहार करता है|
५.अगर एक चुम्बक के प्रभाव क्षेत्र में कोई भी लोहे का टुकड़ा या लोहे की वस्तु आ जाती है तो उसमे भी चुम्बकीय गुण आ जाते है|अगर चुम्बक का उत्तरी ध्रुव लोहे की वस्तु की तरफ है तो उस वस्तु का चुम्बक की तरफ का हिस्सा दक्षिणी ध्रुव की तरह व्यवहार करेगा| उनके बीच एक आकर्षण बल काम करेगा|अगर चुम्बक का आकर्षण बल उस लोहे की वस्तु पर लगने वाले अन्य बलों से ज्यादा हुआ तो फिर वह वस्तु चुम्बक के आकर चिपक जाती है|चिपकते ही उस वस्तु का स्वतन्त्र चुम्बकत्व समाप्त हो जाता है और उस वस्तु का दूसरा सिरा चुम्बक के दूसरे ध्रुव की तरह काम करने लगता है|अगर वह वस्तु चुम्बक की तरफ अन्य बलों के तेज होने के कारण चुम्बक के आकर चिपकती नहीं है तो चुम्बक को वहां से हटाते ही लोहे की वस्तु का चुम्बकीय व्यवहारभी समाप्त हो जाता है|
६.अगर एक चुम्बक को लोहे के टुकड़े या वस्तु पर एक ही दिशा में घिसा जाये तो वह लोहा एक स्वतन्त्र चुम्बक बन जाता है और उसमे समस्त चुम्बकीय गुण आ जाते हैं|
उपरोक्त ६ गुण चुम्बक के इतने महत्वपूर्ण है कि इनको जाने बिना पुनर्जन्म को जानना मुश्किल होगा और असंभव भी| अगर किसी भी चुम्बक को किसी ऊंचाई से गिरा दिया जाये तो उसके चुम्बकीय गुण समाप्त हो जाते हैं|
चुम्बक के इतने गुण अव्यय है अर्थात कभी भी समाप्त नहीं होते है|जब हम चुम्बक को ऊंचाई से गिराते हैं तो चुम्बकत्व नष्ट होता है, उसे वापिस विद्युत उर्जा से या दूसरे चुम्बक को उस पर एक ही दिशा में घिस कर प्राप्त किया जा सकता है|इसी प्रकार परम ब्रह्म भी अव्यय है और प्रलय के बाद चुम्बकत्व समाप्त होने की तरह उसका बल भी कृष्ण विवर यानि ब्लैक हॉल में जाकर समाप्त हो जाता है|ब्रह्माण्ड की पुनः रचना के लिए फिर से पराचुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण ब्लैक हॉल से होता है जिसे परम ब्रह्म कह सकते है|जिसके स्पंदन से उर्जा यानि शक्ति का प्रादुर्भाव होता है|इसी से आगे फिर सृष्टि का निर्माण शुरू होता है,जिसे हम पहले ही विस्तृत रूप से जान चुके हैं|
शरीर का अपना एक चुम्बकीय क्षेत्र होता है जो उसकी कोशिकाओं में उपस्थित विद्युत के कारण होता है,इसीलिए शरीर के इस चुम्बकीय क्षेत्र को जैव विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र कहा जाता है|जबकि आत्मा परमब्रह्म का यानि परमात्मा का अंश होने के कारण उसका केवल चुम्बकीय क्षेत्र हीहोता है,ठीक उसी प्रकार जैसे एक चुम्बक से उसका एक अंश अलग कर दिया जाये तो वह एक स्वतन्त्र चुम्बक की तारह व्यवहार करता है||इसी तरह परमात्मा का अंश आत्मा का अपना अस्तित्व परमात्मा के ही गुण रखते हुये स्वतन्त्र होता है|आत्मा अपने चुम्बकीय क्षेत्र को साथ लिए शरीर के जैव विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के साथ संयुक्त हो जाता है|इसके बाद ही शरीर में जीवन प्रारंभ होता है|इसी को अव्यक्त का व्यक्त होना कहते हैं|
इस स्थिति में अब शरीर और आत्मा के साथ मन ,बुद्धि और अहंकार भी होते हैं,जिनका विस्तार पूर्वक वर्णन पूर्व में किया जा चूका है|जितने भी कर्म इस शरीर के द्वारा किये जाते है वे सभी मन में चुम्बकीय तरंगों के रूप में अंकित होते जाते है|जिनका फल यानि परिणाम उसे नए जन्म की और ले जायेंगे|जब शरीर की क्षमता तेजी से कम होने लगती है तब आत्मा का शरीर को छोडना अवश्यम्भावी हो जाता है|
क्रमश:
|| हरि शरणम् ||
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