Wednesday, September 25, 2013

पुनर्जन्म से मुक्ति अर्थात् परमात्मा की प्राप्ति |-३

क्रमश:
                                परमात्मा की प्राप्ति हेतु ध्यान,ज्ञान और कर्म योग-ये तीन मार्ग श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने बताएं है |हो सकता है कि उपरोक्त तीनों मार्गों में से किसी एक का चयन करना भी किसी किसी के लिए असंभव हो |परमात्मा ने ऐसे लोगों के लिए एक अलग ही चौथा मार्ग भी बताया है |गीता में भगवान श्री कृष्ण इस चौथे मार्ग को अर्जुन को बताते हुए कहते हैं -
                                अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वान्येभ्य उपासते |
                                तेSपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः || गीता १३/२५ ||
                 अर्थात्,परन्तु इनसे दूसरे अर्थात् जो मंद बुद्धि वाले पुरुष हैं ,वे इस प्रकार न जानते हुए दूसरों से अर्थात् तत्व को जानने वाले पुरुषों से सुनकर ही तदनुसार उपासना करते हैं और वे श्रवणपरायण पुरुष भी मृत्युसंसार सागर को निःसंदेह पार कर  जाते हैं |
                  यहाँ पर भगवान कहना चाहते है कि कुशाग्र बुद्धि वाले व्यक्ति तो ऊपर वर्णित तीनों मार्गों में से कोई एक मार्ग चुन कर उसपर अग्रसर हो जाते है परन्तु जो व्यक्ति मंद बुद्धि वाले हैं अर्थात उपरोक्त तीन मार्गों में से किसी एक का चयन नहीं कर पाते अथवा उन मार्गों पर चलने में अपने आपको समर्थ नहीं समझते है उनके लिए यह चौथा मार्ग भी है |इस मार्ग में ऐसे व्यक्ति तत्वज्ञानी पुरुषों से सुनकर और समझ कर परमात्मा की उपासना करते हैं और संसार से मुक्ति पा सकते हैं |ये व्यक्ति मंद बुद्धिवाले इस लिए माने जा सकते हैं क्योंकि वे सांसारिकता में इतने व्यस्त होते हैं की न तो उनके पास ज्ञान पाने का तथा न ही उन्हें ध्यान करने का समय होता है और वे इनके बारे में अनभिज्ञ भी होते है |मंद बुद्धि लोग कर्मयोग का मार्ग भी नहीं अपना सकते क्योंकि वे केवल सकाम कर्म ही करते रहते हैं |ऐसे व्यक्ति केवल परमात्म तत्व को जानने वाले व्यक्ति से मात्र सुनकर ही ईश्वर की उपासना कर जैसे तैसे इस संसार सागर को पार करने का प्रयास करते हैं |
                       आज इन भौतिकतावादी युग में लगभग सभी लोग इसी श्रेणी में आते हैं |संसार की गतिविधियों में इतने तल्लीन हैं कि किसी को भी अपनी इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति के लिए अर्थार्जन के अतिरिक्त अन्य किसी कार्य के लिए समय ही नहीं है |अगर किसी के पास समय है भी तो वह भोग और विलास में रत है |ऐसी परिस्थितियों में परमात्मा के बारे में सोचा भी कैसे जा सकता है ?आज के समय में तत्वज्ञानी पुरुष भी कहाँ रह गए हैं जो ऐसे व्यक्तियों को उपासना का मार्ग भी दिखला सके |अगर कोई तत्वज्ञानी पुरुष प्रयास भी करता है तो उसकी स्वीकार्यता होना भी संदिग्ध है |जो भी आजकल परमात्मा और धर्म के प्रचारक हैं ,वे भी मात्र इसे अपना व्यवसाय बना चुके हैं ,इससे ज्यादा कुछ भी नहीं |आश्रम भी केवल व्यावसायिक प्रतिष्ठान हो गए है |उपासना की पद्धतियां मूल्य चुकाकर खरीदी जा रही है |पतन की पराकाष्ठा देखिये कि उपासना करने हेतु भी व्यक्ति खरीदे या किराये पर लिए जा रहे हैं |ऐसी परिस्थितियों में यह भगवान श्री कृष्ण द्वारा सुझाया गया चौथा मार्ग कहाँ उपलब्ध है ? इस चौथे मार्ग के नाम पर केवल आडम्बर अपना प्रभाव फैला रहा है |आज आडम्बर को ही धर्म और उपासना के नाम पर परोसा जा रहा है |विडम्बना देखिये कि ये मंद बुद्धि लोग अपने हो रहे इस शोषण को समझ भी नहीं पा रहे है |
                       ऐसी परिस्थितियों से बाहर निकालने का मार्ग आज इस भौतिकतावादी युग में तत्काल दिखाई  भी नहीं दे रहा है |जब तक आम व्यक्ति इस बारे में गंभीरता से विचार करने की परिस्थिति को उपलब्ध नहीं होगा तब तक यहाँ कुछ भी परिवर्तन नहीं होने वाला है |जरुरत है कि व्यक्ति समय निकालकर इस बारे में विचार करे और इन आडम्बर फ़ैलाने वालों का विरोध करे जिससे ऐसी गतिविधियों को प्रोत्साहन मिलना बंद हो | यह प्रत्येक व्यक्ति के हित में ही होगा |
                       शास्त्रों में जो गुरु-शिष्य परम्परा का उल्लेख है,भगवान श्री कृष्ण के अनुसार यही चौथा मार्ग है |गुरु से तत्व ज्ञान को सुनकर ही शिष्य उपासना करते हुए परमात्मा को प्राप्त करता है |तत्वज्ञानी पुरुष ही गुरु की भूमिका निभा सकता है |गुरु बनने के लिए पहले वर्णित तीन मार्गों में से किसी एक मार्ग से परमात्मा तक पहुंचा पुरुष ही योग्य व्यक्ति हो सकता है |क्योंकि जिस व्यक्ति को परमात्मा प्राप्ति का अनुभव होगा ,वही किसी अन्य के साथ अपना अनुभव बाँट सकता है | परमात्मा प्राप्त होने का अर्थ है परमात्मा को जान लेना|परमात्मा को जान लेना ही तात्विक ज्ञान है और जानने वाला पुरुष तत्वज्ञानी |
क्रमश:
                                 || हरिः शरणम् ||

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