Tuesday, September 3, 2013

पुनर्जन्म-कैसे?-प्रकिया-३|

क्रमश:
                        जब शरीर का क्षरण प्रारंभ होता है तो आत्मा जो कि शरीर में मन के साथ संयुक्तरूप से रहती  है ,का शरीर छोड़ कर जाना अवश्यम्भावी हो जाता है|उम्र बढ़ने के साथ साथ कोशिकाओं का क्षरण भी शुरू हो जाता है जिसके कारण उनमे स्थित उर्जा यानि विद्युत की तीव्रता में भी कमी आने लगती है ,जिससे शरीर का विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र का प्रभाव कमजोर पड़ने लगता है|एक स्थिति ऐसी आती है जब शरीर के चुम्बकत्व से अधिक तीव्रता आत्मा के चुमबकत्व की हो जाती है|इस स्थिति में आत्मा के शरीर से अलग होने की प्रकिया शुरू हो जाती है|शरीर में जब आत्मा रहती है तब तक इन दोनों का साथ मिलकर एक चुम्बक की तरह व्यवहार होता है|शरीर की विद्युत शक्ति के क्षीण होने पर धीरे धीरे आत्मा  का अपना स्वतंत्र चुम्बकीय  व्यवहार बनने लगता है|ज्योंही दोनों में जरा सा भी विभाजन होता है,  शरीर और आत्मा के अलग हुये सिरे चुम्बक के एक समान ध्रुव की तरह व्यवहार करने लगते है,जिसके कारण उनमे आपस में प्रतिकर्षण पैदा होता है और आत्मा शरीर छोड़ देती है|इसी को शरीर की मृत्यु होंना कहते हैं|यह स्थिति तभी आती है जब शरीर की विद्युत उर्जा लगभग समाप्त हो जाती है|विद्युत उर्जा के समाप्त होते ही शरीर का विद्युत क्षेत्र भी कमजोर पड़कर समाप्त होने लगता है|लेकिन शरीर के चुम्बकीय क्षेत्र के समाप्त होने से पहले ही आत्मा शरीर से दूर जा चुकी होती है|क्योंकि चुम्बकीय क्षेत्र का अस्तित्व शीघ्र समाप्त नहीं होता है|जब आत्मा शरीर को छोड़ देती है ,उसको ही व्यक्त का पुनः अव्यक्त होना कहते है|गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
                                             अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत |
                                             अव्यक्तनिधनान्येव   तत्र   का    परिवेदना || गीता२/२८ ||      
अर्थात्,हे अर्जुन!सम्पूर्ण प्राणी जन्म सेपहले अप्रकट थे यानि अव्यक्त थे और मरने के बाद भी अप्रकट या अव्यक्त हो जाने वाले है,केवल बीच में ही प्रकट या व्यक्त है|ऐसी स्थिति में क्या शोक करना है?    
                                         यह स्थिति साधारण परिस्थिति है|प्रश्न उठता है कि जब किसी दुर्घटना वश किसी की मृत्यु हो जाती है ,तब क्या और कैसे होता है?ऐसी स्थिति में भी शरीर का क्षरण ही होता है|अंतर केवल मात्र यही होता है कि दुर्घटनावश हुई अकाल मृत्य में शरीर का क्षरण तीव्र गति के साथ होता है|जिसे शरीर की विद्युत   उर्जा तेजी के साथ समाप्त हो जाती है और आत्मा तुरंत ही शरीर का त्याग कर देती है|परन्तु शरीर का चुम्बकीय क्षेत्र काफी समय तक बना रहता है|ऐसी स्थिति में तत्काल मृत्यु हो जाती है|
                                        आत्मा शरीर से जब अलग हो जाती है तब वह चित्त जो कि आत्मा से लगे हुये मन को कहते हैं,को भी अपने साथ ले जाती है|चित्त मन का वह भाग होता है जो आत्मा के साथ संयुक्त होता है और जिसमे बुद्धि का अंश भी संलग्न होता है|चित्त में ही व्यक्ति की अधूरी ईच्छाएं और कामनाएं तथा उनको प्राप्त करने के लिए किये गए सभी कर्म अंकित होते हैं|इन्ही को आप सम्बंधित व्यक्ति के संस्कार कह सकते है|                                                काम,क्रोध,मद्,लोभ और मोह ये सभी व्यक्ति को अपनी ईछाये और कामनाये पूरी करने के लिए किसी भी प्रकार के कर्म करने को प्रेरित करते है|इसी कारण से इन पांचो को नरक का रास्ता बताया गया है|गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने रामचरित मानस में लिखा है-
                                "काम क्रोध मद् लोभ सब,नाथ नरक के पंथ||"
                                            इस भौतिक जीवन में जो कुछ भी हम करते हैं वे हमारे संस्कार का निर्माण करते हैं ,जो चित्त के साथ संलग्न होकर मृत्यु के समय आत्मा के साथ शरीर को छोड़ देते हैं|तथा जो भी इन कर्मों को करने के दौरान या अन्य कारण से हमारे साथ जो कुछ भी घटित होता है वह मन के हिस्से में स्मृति के रूप में अंकित होता है,जो मृत्यु के समय चित्त व आत्मा के साथ शरीर नहीं छोड़ पाता|अतः इससे यह प्रमाणित होता है कि आत्मा केवल हमारे शरीर से संस्कार ही लेकर जाती है,स्मृति नहीं|इसी कारण से पुनर्जन्म में किसी को भी अपने पूर्व जन्म की स्मृति नहीं रहती|लेकिन अपवाद स्वरुप जब मृत्यु तत्काल होती है जैसे हत्या,आत्महत्या या दुर्घटना आदि की स्थिति में,तब संस्कारों के साथ कुछ स्मृतियाँ भी आत्मा के साथ शरीर छोड़ कर चली जाती है|ऐसी स्थिति में व्यक्ति को अपने पूर्व जन्म की स्मृति कई दिनों तक बनी रहती है,जो समय के साथ साथ धूमिल पड़ते हुये समाप्त हो जाती है|
क्रमश:
                                 || हरि शरणम् ||

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