Saturday, September 21, 2013

पुनर्जन्म-कब और कहाँ ?-८

क्रमश:
पुनर्जन्म प्रक्रिया की वैज्ञानिक अवधारणा ---
                                     जब शरीर का विद्युत क्षेत्र निष्प्रभावी हो जाता है,तब आत्मा चित्त के साथ चुम्बकीय तरंगों के रूप में शरीर से अलग होकर वायुमंडल में भ्रमण करती रहती है |इस दौरान चित्त में अंकित कामनाएं व् इच्छाओं के लिए किये गए कर्मों के आधार पर आत्मा गणना करती है |यह गणना गणित के आधार पर होती है |जैसे गणित में दो और दो चार ही होते हैं,पांच या तीन नहीं |उसी प्रकार किये गए कर्मों के गुणों के आधार पर भावी शरीर  की एक संभावित प्रतिलिपि बना ली जाती है |उस शरीर में किस प्रकार कर्म फलों को कैसे और कब कब भोगना होता है ,वह सब समयानुसार चुम्बकीय तरंगों के रूप में अंकित कर दिया जाता है |यह सब उसी प्रकार होता है ,जैसे एक कंप्यूटर सी.डी.तैयार करता है |जैसे सी.डी. तैयार हो जाने के बाद उसमे कोई भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता ,उसी प्रकार आत्मा के द्वारा तैयार इस चुम्बकीय तरंगों को भी परिवर्तित नहीं किया जा सकता|ये चुम्बकीय तरंगे शरीर के साथ संयुक्त होकर समय समय पर वह सभी कार्य संपन्न करती है जैसे उसको पूर्व में ही निर्देशित कर दिया गया है |
                                          इस प्रकार भावी जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु तक जो जो और जब जब घटित होना है वह सब तैयार हो जाता है |यह सब तैयार हो जाने के बाद आत्मा उसी के अनुसार शरीर और परिवेश की तलाश करती है |जब उसकी तलाश पूरी हो जाती है तब शरीर में प्रवेश की तैयारी में आत्मा संलग्न हो जाती है |इसके लिए समय समय पर वह उस चयनित शरीर का निरीक्षण भी करती रहती है |जब शरीर उसके पूर्ण रूप से अनुकूल तैयार हो जाता है,तब जन्म के दौरान आत्मा उसमे प्रवेश करती है |
                                शरीर का आत्मा की तरफ का ध्रुव ,आत्मा के ध्रुव से विपरीत होता है |जन्म के समय आत्मा आकर्षित होकर शरीर के साथ संयोग कर लेती है |अब शरीर और आत्मा दोनों एक इकाई के रूप में कार्य करने लगते हैं |जब दो चुम्बकों के दो विपरीत ध्रुव एक दूसरे को आकर्षित कर के संयुक्त हो जाते हैं तब वे सिर्फ एक चुमबक की तरह ही व्यवहार करने लगते हैं |प्रश्न उठता है कि आत्मा जब शरीर का चयन कर लेती है और उसका चुम्बकीय व्यवहार होता है तो दूसरे का शरीर उसे भी तो आकर्षित कर सकता है,फिर वह अपने चयन किये हुए शरीर की और ही क्यों जाती है ? जिस प्रकार सब रेडियो स्टेशन की तरंगों की अपनी अपनी  तरंग दैर्ध्य ( Wave length ) होती है ,उसी प्रकार सब आत्माओं की चुम्बकीय तरंगों की तरंग दैर्ध्य भी अलग अलग होती है |इस कारण से आत्मा केवल अपने चयनित शरीर की तरफ ही अग्रसर होती है,अन्य की तरफ नहीं |
    आत्मा के द्वारा की जाने वाली गणना में कितना समय लगता है,यह निश्चित नहीं है |जब गणना तुरन्त हो जाती है तो पुनर्जन्म भी तत्काल हो सकता है |अगर गणना में ज्यादा समय लगने की सम्भावना हो तो पुनर्जन्म में भी समय लग जाता है |अतः यह सब कुछ मानव योनि के दौरान अपूर्ण रही इच्छाओं और कामनाओं  तथा किये गए कर्मों की जटिलता पर ही निर्भर होता है |
        अगर किसी व्यक्ति के कर्म चित्त में अंकित ही न हो ,ऐसा कभी भी होने की सम्भावना न के बराबर है,क्योंकि मानव जीवन में कभी भी कोई व्यक्ति कर्म किये बिना नहीं रह सकता |गीता में भगवन श्री कृष्ण कहते हैं-
                          न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् |
                          कार्यते   ह्यवशः   कर्म   सर्वः   प्रकृतिजैर्गुणे: || गीता ३/५ ||
अर्थात्,निःसंदेह कोई भी मनुष्य किसी भी काल में बिना कर्म किये नहीं रहता;क्योंकि सारा मानव समुदाय प्रकृतिजनित गुणों द्वारा परवश हुआ कर्म करने के लिए बाध्य किया जाता है |
                          अतः यह स्पष्ट है कि मनुष्य अपने जीवन में कभी भी एक पल के लिए भी कर्म किये बिना नहीं रह सकता है |और अगर कर्म होते हैं तो फिर उनका कर्मफल भी मिलना निश्चित होता है |चित्त में कर्म प्रत्येक व्यक्ति के अपने जीवन काल में अंकित होते रहते हैं और आगे उसे उनका फल भी मिलना निश्चित होता है |सब कुछ इसी बात पर निर्भर करता है कि कर्म के पीछे की भावना क्या थी |मुख्य रूप से कर्म करने के पीछे की  इच्छा,भावना और कर्म करने की विधि पर ही उस कर्म का फल मिलना निश्चित होता है |कर्म तो त्रिगुणी व्यवस्था के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति करता है ,परन्तु कर्मफल ,कर्मों के गुणों के अनुसार ही तय होता है |गुणातीत व्यक्ति बिना गुणों का संग किये कर्म करता है ,अतः उसके कर्मफल नहीं के बराबर या नहीं भी होते है | ऐसी स्थिति में आत्मा की गणनानुसार उसे कोई भी योनि उपलब्ध नहीं होगी|इस कारण आत्मा के अतिरिक्त किसी का भी चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र विकसित नहीं होगा|चूँकि आत्मा मूल रूप से परमात्मा का ही अंश है |अतः अब आत्मा केवल परमात्मा की तरफ ही आकर्षित होगी और उस परम चुम्बकीय क्षेत्र यानि परमब्रह्म परमात्मा से संयोग कर लेगी |इसी अवस्था को परमात्मा की प्राप्ति या जन्म-मरण से मुक्ति या मोक्ष होना कह सकते हैं |पढने सुनने में गुणातीत होना बड़ा आसान लगता है परन्तु व्यावहारिक रूप से गुणातीत होना असंभव नहीं तो बहुत ही कठिन अवश्य है |
क्रमश:
                           || हरिः शरणम् ||

No comments:

Post a Comment