क्रमश:८
ज्ञान-योग -क्रमश:
गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
ज्ञानयज्ञेन चाप्यन्ये यजन्तो मामुपासते |
एकत्वेन पृथक्त्वेन बहुधा विश्वतोमुखम् || गीता ९/१५ ||
अर्थात्,दूसरे ज्ञानयोगी मुझ निर्गुण-निराकार का ज्ञानयज्ञ के द्वारा अभिन्न भाव से मेरी उपासना करते हैं और अन्य बहुत प्रकार से स्थित मुझ विराट्स्वरूप परमेश्वर की पृथक-भाव से उपासना करते हैं |यहाँ पर भगवान श्री कृष्ण ज्ञानमार्ग के विषय में बता रहे हैं |
ज्ञान योग के बारे में चर्चा करते हुए तीन प्रश्न मन में उठते हैं-ज्ञान क्या है ? ज्ञेय क्या है ?और ज्ञाता कौन है ?
पहला प्रश्न है कि ज्ञान क्या है ?ज्ञान के सम्बन्ध में गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम् |
पहला प्रश्न है कि ज्ञान क्या है ?ज्ञान के सम्बन्ध में गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं-
अध्यात्मज्ञाननित्यत्वं तत्त्वज्ञानार्थदर्शनम् |
एतज्ज्ञानमिति प्रोक्तमज्ञानं यदतोSन्यथा || गीता १३/११ ||
अर्थात्,अध्यात्मज्ञान में नित्य स्थिति और तत्वज्ञान के अर्थ रूप में परमात्मा को देखना -यह सब ही ज्ञान है और जो इससे विपरीत है वह अज्ञान है |
यहाँ ज्ञान केवल उसे ही बताया गया है जिसमें व्यक्ति को तत्वज्ञान हो जाता है |तत्व ज्ञान का अर्थ होता है कि जो भी यहाँ पर हो रहा है उसका मूल कारण क्या है ?जब तक आप वास्तविकता से दूर रहेंगे तब तक केवल मात्र शब्दों में ही भटकते रहेंगे |विज्ञानं के बारे में यही कहा जाता है कि जो बात विज्ञानं साबित कर दे वही मान्य होती है |लेकिन जब आप विज्ञानं से मूल तक पहुँचने का प्रश्न करते हैं तब अंत में आकर विज्ञानं भी मौन हो जाता है और हाथ ऊपर करके परम सत्ता को स्वीकार करता है | विज्ञानं ने चाहे कितनी ही प्रगति कर ली हो परन्तु मुख्य कारण जानने में वह भी विफल है |ब्रह्माण्ड के निर्माण को जानने के अभी तक कितने ही प्रयोग हो चुके है-कहते है कि God-particle खोज लिया गया है |परन्तु वास्तव में मुख्य कर्ता कौन है,वह अभी भी खोज नहीं पाया है |ब्रह्माण्ड के निर्माण का कारण है तो कोई कर्ता भी होगा | जीव विज्ञानं में भ्रूण निर्माण से लेकर मृत्यु पर्यंत सब जानकारी विज्ञानं हासिल कर चूका है परन्तु इस पूर्ण चक्र का कर्ता कौन है,विज्ञानं यहाँ पर भी मौन है |यह मौन ही परमात्मा के अस्तित्व की स्वीकृति है |
जितनी भी व्याधियाँ है उन सब की कोई न कोई दवा खोज ली गयी है |परन्तु एक भी दवा ऐसी नहीं है जो किसी बीमारी में शतप्रतिशत कार्य करती हो |ऐसा क्यों?विज्ञानं यहाँ पर भी मौन है |जब एक दवा किसी एक बीमारी में पूरा आराम देती है ,तो फिर उस दवा के देने के बाद भी कुछ व्यक्ति उस बीमारी से क्यों मर जाते है ?विज्ञानं यहाँ पर भी निरुत्तर है |अंतरिक्ष के इतने सफल अभियानों के बाद भी कल्पना चावला की मौत एक असफल अभियान में क्यों हो गयी थी ?कारण जरूर बताती है विज्ञानं,परन्तु फिर भी इशारा परम सत्ता की और ही होता है |इसीलिए परमात्मा को अज्ञेय कहा गया है |जिसे जानना असंभव नहीं तो मुश्किल अवश्य है |कहा जा सकता है कि जहाँ ज्ञान समाप्त होता है,आध्यात्मिकता की शुरुआत वहीँ से होती है |सभी ज्ञान परमात्मा में आकर समाप्त हो जाते हैं |
अतः कहा जा सकता है कि परम पिता परमात्मा ही सब कुछ है यह मानना ही ज्ञान है |इससे अलग अगर कुछ माना जाता है ,तो वह अज्ञान है |
दूसर प्रश्न है कि ज्ञेय क्या है ?अर्थात् जानने योग्य क्या है ?गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं -
यहाँ ज्ञान केवल उसे ही बताया गया है जिसमें व्यक्ति को तत्वज्ञान हो जाता है |तत्व ज्ञान का अर्थ होता है कि जो भी यहाँ पर हो रहा है उसका मूल कारण क्या है ?जब तक आप वास्तविकता से दूर रहेंगे तब तक केवल मात्र शब्दों में ही भटकते रहेंगे |विज्ञानं के बारे में यही कहा जाता है कि जो बात विज्ञानं साबित कर दे वही मान्य होती है |लेकिन जब आप विज्ञानं से मूल तक पहुँचने का प्रश्न करते हैं तब अंत में आकर विज्ञानं भी मौन हो जाता है और हाथ ऊपर करके परम सत्ता को स्वीकार करता है | विज्ञानं ने चाहे कितनी ही प्रगति कर ली हो परन्तु मुख्य कारण जानने में वह भी विफल है |ब्रह्माण्ड के निर्माण को जानने के अभी तक कितने ही प्रयोग हो चुके है-कहते है कि God-particle खोज लिया गया है |परन्तु वास्तव में मुख्य कर्ता कौन है,वह अभी भी खोज नहीं पाया है |ब्रह्माण्ड के निर्माण का कारण है तो कोई कर्ता भी होगा | जीव विज्ञानं में भ्रूण निर्माण से लेकर मृत्यु पर्यंत सब जानकारी विज्ञानं हासिल कर चूका है परन्तु इस पूर्ण चक्र का कर्ता कौन है,विज्ञानं यहाँ पर भी मौन है |यह मौन ही परमात्मा के अस्तित्व की स्वीकृति है |
जितनी भी व्याधियाँ है उन सब की कोई न कोई दवा खोज ली गयी है |परन्तु एक भी दवा ऐसी नहीं है जो किसी बीमारी में शतप्रतिशत कार्य करती हो |ऐसा क्यों?विज्ञानं यहाँ पर भी मौन है |जब एक दवा किसी एक बीमारी में पूरा आराम देती है ,तो फिर उस दवा के देने के बाद भी कुछ व्यक्ति उस बीमारी से क्यों मर जाते है ?विज्ञानं यहाँ पर भी निरुत्तर है |अंतरिक्ष के इतने सफल अभियानों के बाद भी कल्पना चावला की मौत एक असफल अभियान में क्यों हो गयी थी ?कारण जरूर बताती है विज्ञानं,परन्तु फिर भी इशारा परम सत्ता की और ही होता है |इसीलिए परमात्मा को अज्ञेय कहा गया है |जिसे जानना असंभव नहीं तो मुश्किल अवश्य है |कहा जा सकता है कि जहाँ ज्ञान समाप्त होता है,आध्यात्मिकता की शुरुआत वहीँ से होती है |सभी ज्ञान परमात्मा में आकर समाप्त हो जाते हैं |
अतः कहा जा सकता है कि परम पिता परमात्मा ही सब कुछ है यह मानना ही ज्ञान है |इससे अलग अगर कुछ माना जाता है ,तो वह अज्ञान है |
दूसर प्रश्न है कि ज्ञेय क्या है ?अर्थात् जानने योग्य क्या है ?गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं -
ज्ञेयं यत्ततप्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वामृतमश्नुते |
अनादिमत्परं ब्रह्म न सत्तन्नासदुच्यते || गीता १३/१२ ||
अर्थात्,जो जानने योग्य है (ज्ञेय )तथा जिसको जानकर परमानन्द को प्राप्त होता है उसको भली भांति कहूँगा |वह अनादि परम ब्रह्म हैजिसे न तो सत् और न ही असत् कहा जा सकता है |
संसार असीमित और अनगिनत साहित्य से भरा पडा है |परन्तु कोई भी साहित्य ,कोई भी पुस्तक आपको क्या जानना चाहिए ;यह बताने में असमर्थ है |भगवान कहते हैं कि जानने योग्य वही है,जिसको जानने के बाद आपको परमानंद की अनुभूति हो |और वह एक मात्र परम ब्रह्म यानि परम पिता परमात्मा ही है |जिसका न तो कोई आदि है और न अंत |जो न तो सत् है और न ही असत् |जानने योग्य केवल एक मात्र यही परम ब्रह्म है | वह सब ओर हाथ ,पैर,मुख ,सिर,कानऔर नेत्र वाला है|सब इन्द्रियों को जानते हुए भी सब इन्द्रियों से रहित है |वह आसक्ति रहित है फिर भी सबका भरण-पोषण करने वाला है |निर्गुण होते हुए भी गुणों को भोगने वाला है |विभाग रहित होने के बावजूद वह सभी भूतों में व्याप्त होने के कारण विभक्त भी प्रतीत होता है |वह ब्रह्मा के रूप में सबको उत्पन्न करने वाला,विष्णु रूप में सब भूतों का भरण-पोषण करने वाला तथा रूद्र रूप में संहार करने वाला है |वह परम ब्रह्म ज्योतियों का भी ज्योति है और माया से अत्यंत ही परे है |वही जानने योग्य है और तत्वज्ञान से प्राप्त किया जा सकता है |वह वास्तव में सबके ह्रदय में विशेष रूप से स्थित है |कबीर इस बात को बड़े ही साधारण तरीके से समझते हैं-
ज्यूँ तिल मांहीं तेल है, ज्यूँ चकमक में आग |
तेरा सांई तुझी में है, जाग सके तो जाग ||
अतः कहा जा सकता है कि ज्ञेय केवल मात्र परम ब्रह्म है ,जिसे जानने के बाद किसी और को जानने की आवश्यकता नहीं रह जाती है |ज्ञान भी इसी को जानने को कहते है |
तीसरा प्रश्न है कि ज्ञाता कौन है ?ज्ञेय और ज्ञान को जानने के बाद स्पष्ट है कि ज्ञाता किसे कहते हैं ?ज्ञाता वही होता है या कहलाता है जिसे ज्ञेय का ज्ञान हो जाये | परन्तु यह सबसे बड़ी भूल है कि पुस्तकीय ज्ञान से ओतप्रोत व्यक्ति ज्ञाता हो जाता है |यह व्यक्ति वास्तविकता में ज्ञान से कोसों दूर है |
क्रमश:
|| हरिः शरणम् ||
संसार असीमित और अनगिनत साहित्य से भरा पडा है |परन्तु कोई भी साहित्य ,कोई भी पुस्तक आपको क्या जानना चाहिए ;यह बताने में असमर्थ है |भगवान कहते हैं कि जानने योग्य वही है,जिसको जानने के बाद आपको परमानंद की अनुभूति हो |और वह एक मात्र परम ब्रह्म यानि परम पिता परमात्मा ही है |जिसका न तो कोई आदि है और न अंत |जो न तो सत् है और न ही असत् |जानने योग्य केवल एक मात्र यही परम ब्रह्म है | वह सब ओर हाथ ,पैर,मुख ,सिर,कानऔर नेत्र वाला है|सब इन्द्रियों को जानते हुए भी सब इन्द्रियों से रहित है |वह आसक्ति रहित है फिर भी सबका भरण-पोषण करने वाला है |निर्गुण होते हुए भी गुणों को भोगने वाला है |विभाग रहित होने के बावजूद वह सभी भूतों में व्याप्त होने के कारण विभक्त भी प्रतीत होता है |वह ब्रह्मा के रूप में सबको उत्पन्न करने वाला,विष्णु रूप में सब भूतों का भरण-पोषण करने वाला तथा रूद्र रूप में संहार करने वाला है |वह परम ब्रह्म ज्योतियों का भी ज्योति है और माया से अत्यंत ही परे है |वही जानने योग्य है और तत्वज्ञान से प्राप्त किया जा सकता है |वह वास्तव में सबके ह्रदय में विशेष रूप से स्थित है |कबीर इस बात को बड़े ही साधारण तरीके से समझते हैं-
ज्यूँ तिल मांहीं तेल है, ज्यूँ चकमक में आग |
तेरा सांई तुझी में है, जाग सके तो जाग ||
अतः कहा जा सकता है कि ज्ञेय केवल मात्र परम ब्रह्म है ,जिसे जानने के बाद किसी और को जानने की आवश्यकता नहीं रह जाती है |ज्ञान भी इसी को जानने को कहते है |
तीसरा प्रश्न है कि ज्ञाता कौन है ?ज्ञेय और ज्ञान को जानने के बाद स्पष्ट है कि ज्ञाता किसे कहते हैं ?ज्ञाता वही होता है या कहलाता है जिसे ज्ञेय का ज्ञान हो जाये | परन्तु यह सबसे बड़ी भूल है कि पुस्तकीय ज्ञान से ओतप्रोत व्यक्ति ज्ञाता हो जाता है |यह व्यक्ति वास्तविकता में ज्ञान से कोसों दूर है |
क्रमश:
|| हरिः शरणम् ||