Wednesday, May 20, 2020

आत्म-अवस्थाएं -9 - समापन कड़ी


आत्म-अवस्थाएं – 9
             इतने विवेचन के उपरांत एक व्यक्ति के जीवन की संभावित सभी अवस्थाएं पूर्ण रूप से स्पष्ट हो गयी होंगी | इस श्रृंखला का समापन करने के पूर्व एक महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर देना चाहूँगा | प्रश्न है कि सर्वोच्च ब्राहमी-चेतन अवस्था को प्राप्त करने के लिए हमें क्या करना होगा ? इसका उत्तर जानना आवश्यक है |
          प्रारम्भ में हमें अपने संसार को पूर्णतया त्यागना होगा और ऐसी अवस्था को प्राप्त करना होगा जहाँ हम संसार में भले ही रहें परन्तु हमारे भीतर के संसार का पूर्णतया लोप हो जाए | हमें तुरीय अवस्था के लिए प्रयास करते हुए ही संतुष्ट नहीं होंना है बल्कि ब्राह्मी-चेतना की अवस्था तक पहुँचाना होगा | प्रायः साधक तुरीय अवस्था तक पहुंचकर ही संतुष्ट हो जाते है और वे परम जाग्रत अवस्था तक नहीं पहुँच पाते | इसके लिए मध्य में आकर रूकें नहीं बल्कि सतत प्रयास करते रहें और समय-समय पर अपने गुरु से मार्गदर्शन लेते रहें | शनैः-शनैः आध्यात्मिक पथ पर आपकी प्रगति होती रहेगी | गीता में भगवान् श्री कृष्ण कह रहे हैं –
      शनैः शनैरूपरमेद्बुद्ध्या धृतिगृहीतया |
      आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किंचिदपि चिन्तयेत् ||6/25||
              अर्थात धीरे-धीरे क्रम से अभ्यास करते हुए उपरति को प्राप्त होओ तथा धैर्ययुक्त बुद्धि के द्वारा मन को परमात्मा में स्थित करके परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कुछ भी चिंतन न करें |
             ध्यान में विचार मुक्त हो जाना इतना सरल नहीं है | विचार भी आयेंगे और भूतकाल की स्मृति और भविष्य की कल्पनाएँ भी आएँगी | हरिः शरणम् आश्रम बेलडा, हरिद्वार के आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा कहते हैं कि “ ध्यान करते समय इस प्रकार के विचार, लौट जाने के लिए ही आते हैं | इनमें से किसी एक को भी पकड़ कर बैठना उचित नहीं है, किसी एक का भी चिंतन नहीं करना है बल्कि ऐसे सब विचारों और कल्पनाओं की उपेक्षा करनी है | धीरे-धीरे इन सबका एक-एक कर लोप होता जायेगा और अंततः आप विचार मुक्त अवस्था को प्राप्त हो जाओगे |”
          व्यक्ति की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह थोड़े से अभ्यास के उपरांत ही अपनी प्रगति की समीक्षा करने लगता है | ऐसा करने से उसकी प्रगति रूक जाती है और व्यक्ति तुरीय अवस्था को भी उपलब्ध नहीं हो सकता | जबकि निरंतर अभ्यास करते हुए एक दिन तुरीय अवस्था ही नहीं बल्कि उससे आगे छलांग लगाकर व्यक्ति ब्राह्मी-चेतन की अवस्था को भी प्राप्त कर लेगा, यह निश्चित है |
       इसी के साथ आत्म-अवस्थाओं को स्पष्ट करने के लिए शुरू की गयी इस श्रृंखला का समापन होता है | आप सभी का साथ बने रहने का आभार | कल ॐ पर पूछे गए एक प्रश्न को लेंगे, फिर किसी अन्य विषय पर चिंतन करने के लिए नई श्रृंखला प्रारम्भ करेंगे |
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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