Monday, May 18, 2020

आत्म-अवस्थाएं - 7


आत्म-अवस्थाएं - 7
छठी अवस्था - भगवत चेतना-
           तुरीयातीत की अवस्था में रहते-रहते भगवत चेतना की अवस्था बिना किसी सघन प्रयास के ही प्राप्त हो जाती है | यह ठीक ऐसा ही है जैसे सुषुप्ति अवस्था से स्वप्नावस्था में जाने के लिए किसी भी प्रकार का अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ता है | अतः कहा जा सकता है कि यह अवस्था संसार की ओर से सुषुप्त हो जाने के बाद उससे आगे की स्वप्न की अवस्था है | इसके बाद का विकास सहज, स्वाभाविक और बिना किसी प्रयास के हो जाता है | किसी भी प्रकार का प्रयास करना तो इससे पूर्व की तुरीय अवस्था में पहले ही छूट चूका होता है | इस भगवत अवस्था में व्यक्ति से कुछ भी छुपा नहीं रहता और वह संपूर्ण जगत को भगवान की सत्ता मानने लगता है | यह एक महान सि‍द्ध योगी की अवस्था है |
                 यह अवस्था साधक से सिद्ध हो जाने की अवस्था है | इस अवस्था में व्यक्ति को सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती है और संसार में कहीं पर भी घटित होने वाली घटनाएँ उससे छुपी नहीं रह सकती | यह ठीक वैसे ही होता है, जैसे शरीर की स्वप्न अवस्था में होता है | शरीर की स्वप्न अवस्था में दिखाई पड़ने वाली घटनाएँ केवल मानसिक प्रपंच होती है परन्तु इस स्वप्निल अवस्था में वास्तविक जीवन में भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पूर्वाभास होता है | जब सिद्ध पुरुष इस अवस्था को प्राप्त कर लेता है, तब उसको जो स्वप्निल अनुभव होते हैं, वे सभी स्वप्न न होकर सत्य होते हैं | कहा जाता है कि ऐसे सिद्ध पुरुषों को भोर में दिखलाई पड़ने वाले स्वप्न प्रायः सत्य सिद्ध होते हैं | एक सिद्ध को साधारण अवस्था में बैठे-बैठे अचानक ही इस प्रकार के अनुभव होते हैं, जिनका उस स्थान अथवा वर्त्तमान परिस्थिति से किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं होता | प्रायः इस अवस्था में आकर व्यक्ति को सावधान रहना आवश्यक है | अगर वह इन सिद्धियों को सब के समक्ष प्रकट करने लग जाता है अथवा उनका दुरूपयोग करने लग जाता है, तो फिर उसकी आगे की प्रगति नहीं हो सकती बल्कि इसके उलट पतन होने की सम्भावना बढ़ जाती है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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