शरीर-11
अभी तक इस लेख में हमने सूक्ष्म रूप से
स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीर की चर्चा की | इन शरीरों के अतिरिक्त एक शरीर और होता
है, तुरीय शरीर | कई ज्ञानीजन इसको साधक की तुरीय अवस्था भी कहते हैं | तुरीय का
अर्थ है तीन से परे अर्थात तीन शरीरों से अलग | इन शरीरों को विस्तार से जानने के
पूर्व हमें सृष्टि के तत्व और उसके द्वारा निर्मित शरीर की संरचना को समझना होगा |
सृष्टि-तत्त्व
और शरीर-संरचना
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण
अर्जुन को सृष्टि-तत्व व शरीर संरचना के बारे में बताते हुए कह रहे हैं कि-
महाभूतान्यहंकारो बुद्धिरव्यक्तमेव च
|
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः
||गीता-13/5||
मूल प्रकृति सबसे पहले बुद्धि, फिर अहंकार, फिर 5 तन्मात्राओं (सूक्ष्म भूतों), 5 ज्ञानेन्द्रियों, 5
कर्मेन्द्रियों और मन, फिर तन्मात्राओं से 5 स्थूल भूतों (आकाश, वायु, तेज, जल और पृथ्वी) में परिवर्तित होती है |
आइये ! अब इन तत्त्वों से हम शरीर की रचना को
समझते हैं, जिससे हमें स्पष्ट होगा कि प्रकृति के कौन से तत्व किस किस शरीर कि
रचना करते हैं |
शरीर
के प्रकार
जीव के 4 प्रकार के शरीर होते हैं । वे इस प्रकार हैं-
1) स्थूल शरीर (Gross body) - जो शरीर
हमें साक्षात् दिखाई देता है | आंखों से दिखता (रूप) है, कानों से सुनाई पड़ता (शब्द) है, नाक से सूंघने में (गंध) आता है, जिह्वा से स्वाद लेने में आता है और
त्वचा से छूने में (स्पर्श) आता है | इसी शरीर को शल्य चिकित्सक यानी सर्जन काटकर
देख सकता है | यह हमारी जाग्रत अवस्था है |
2) सूक्ष्म शरीर (subtle body) - यह शरीर सूक्ष्म-तत्त्वों
से बना होता है | इसलिए इन्द्रिय गोचर नहीं होता अर्थात जो इन्द्रियों से अनुभव
में नहीं आता । इसके दो विभाग होते हैं-
क)
भौतिक विभाग - यह शरीर पञ्च सूक्ष्म भूतों और पञ्च प्राणों (प्राण, अपान, समान, व्यान और उदान) का बना होता है |
ख)
स्वाभाविक विभाग - यह शरीर पञ्च ज्ञानेन्द्रियों, मन और बुद्धि का बना होता है | इनकी चेष्टा जीव की प्रवृत्ति के
अनुसार होती है | इसलिए यह शरीर वस्तुतः जीव के स्वभाव को क्रियान्वित करता है |
इसी के कारण, स्थूल शरीर-रचना एक समान होने पर भी, सभी जीव स्वभाव से भिन्न होते हैं | इस
स्वभाव-भेद से ही इस शरीर का अनुमान भी होता है | सूक्ष्म शरीर हमारी स्वप्न
अवस्था कहलाती है |
3) कारण शरीर (Causal body) - यह शरीर मूल
प्रकृति का बना होता है | वस्तुतः यह
आकाश की तरह सर्वत्र व्यापक है। आकाश के ही समान, जितने भाग में हमारा शरीर स्थित है, उतने भाग को हम अपने शरीर का अंश मान सकते हैं | विकार-रहित प्रकृति
का बना होने के कारण, इसमें पूर्णतया ज्ञान का अभाव होता है
| महर्षियों ने इस अवस्था को गाढ़ निद्रा (Deep sleep) अर्थात सुषुप्ति अवस्था कहा
है |
क्रमशःप्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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