आत्म-अवस्थाएं – 4
पहली अवस्था जिसे आत्मा की जाग्रत
अवस्था अवस्था कहा गया है, वह जाग्रति संसार के प्रति है, परमात्मा के प्रति नहीं |
आत्मा इस शरीर में प्रवेश कर प्रकृति के गुणों की ओर आकर्षित हो जाती है और अपना वास्तविक
स्वरुप भूल जाती है | अतः इस बात का स्मरण रखें कि प्रथम अवस्था केवल संसार के
प्रति जाग्रति है |
दूसरी अवस्था –
स्वप्न –
जागृति और निद्रा के बीच की अवस्था को
स्वप्न अवस्था कहते हैं | निद्रा में डूब जाना सुषुप्ति अवस्था कहलाती है | स्वप्न
में व्यक्ति थोड़ा जागा और थोड़ा सोया रहता है | शरीर विज्ञान की भाषा में इसे REM
(Rapid eye movement) sleep कहा जाता है | इसमें अस्पष्ट अनुभवों और भावों का मिश्रण
रहता है इसलिए व्यक्ति कब और किस प्रकार का स्वप्न देख ले, कुछ कहा नहीं जा सकता |
अभी वह इस धरा पर सोया हुआ है और स्वप्न में अन्तरिक्ष और ग्रहों-नक्षत्रों तक की
यात्रा तक कर आता है | प्रायः स्वप्न दिन भर के हमारे जीवन, विचार, भाव और
सुख-दुख पर आधारित होते हैं | हम स्वप्न में किसी भी तरह का संसार रच सकते हैं | यह
सब कुछ केवल मन और इन्द्रियों का खेल मात्र है | इसका यथार्थ से किसी भी प्रकार का
कोई सम्बन्ध नहीं है | इस अवस्था में स्थूल शरीर तो सोया रहता है परन्तु मन और
इन्द्रियाँ सक्रिय रहते हुए अपना प्रभाव दिखाती रहती है | इस अवस्था में सुख-दुःख
का अनुभव भी होता है और कई बार तो कर्मेन्द्रियाँ तक सक्रिय हो जाती है | इसीलिए
कई बार व्यक्ति रोने अथवा हंसने तक लगता है | वास्तविक सांसारिक जीवन से इस अवस्था
का कोई सम्बन्ध नहीं होता सिवाय इसके कि मनुष्य दिन भर जाग्रत अवस्था में पूरी न हो
सकने वाली अपनी कामनाओं की जो जो कल्पना करता है, वे सभी कामनाएं स्वप्न अवस्था
में उसे साकार होती प्रतीत होती है |
तीसरी अवस्था-
सुषुप्ति-
गहन निद्रा को सुषुप्ति कहते हैं। इस अवस्था में पांच ज्ञानेंद्रियां और पांच कर्मेंद्रियां सहित चेतना/आत्मा (हम स्वयं) विश्राम करते हैं | पांच ज्ञानेंद्रियां- चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण और त्वचा | पांच कर्मेंन्द्रियां- वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ और पायु |
सुषुप्ति की अवस्था चेतना की निष्क्रिय अवस्था है | यह अवस्था सुख-दुःख के अनुभवों से मुक्त होती है | इस अवस्था में हमें किसी प्रकार के कष्ट या किसी प्रकार की पीड़ा का अनुभव नहीं होता | इस अवस्था में व्यक्ति के द्वारा न तो कोई क्रिया होती है, न क्रिया की संभावना | मृत्यु काल में अधिकतर लोग इससे और अधिक गहरी अवस्था में चले जाते हैं | जब तक संसार से मुक्ति नहीं होती तब तक यह गाढ़ निद्रा मृत्यु के समय और अधिक गहरी हो जाती है | जब पुनः नया शरीर मिलता है, तब व्यक्ति इस सुषुप्ति अवस्था से वापिस जाग्रत अवस्था को प्राप्त कर लेता है | एक शरीर में ही सुषुप्ति से जाग्रत अवस्था में आने पर उसकी स्मृति लोप नहीं होती जबकि शरीर की मृत्यु के बाद नया शरीर मिलने के उपरांत उसे किसी एक-दो अपवाद को छोड़कर पूर्व जन्म की स्मृति का पूर्णतया लोप हो जाता है |
गहन निद्रा को सुषुप्ति कहते हैं। इस अवस्था में पांच ज्ञानेंद्रियां और पांच कर्मेंद्रियां सहित चेतना/आत्मा (हम स्वयं) विश्राम करते हैं | पांच ज्ञानेंद्रियां- चक्षु, श्रोत्र, रसना, घ्राण और त्वचा | पांच कर्मेंन्द्रियां- वाक्, हस्त, पैर, उपस्थ और पायु |
सुषुप्ति की अवस्था चेतना की निष्क्रिय अवस्था है | यह अवस्था सुख-दुःख के अनुभवों से मुक्त होती है | इस अवस्था में हमें किसी प्रकार के कष्ट या किसी प्रकार की पीड़ा का अनुभव नहीं होता | इस अवस्था में व्यक्ति के द्वारा न तो कोई क्रिया होती है, न क्रिया की संभावना | मृत्यु काल में अधिकतर लोग इससे और अधिक गहरी अवस्था में चले जाते हैं | जब तक संसार से मुक्ति नहीं होती तब तक यह गाढ़ निद्रा मृत्यु के समय और अधिक गहरी हो जाती है | जब पुनः नया शरीर मिलता है, तब व्यक्ति इस सुषुप्ति अवस्था से वापिस जाग्रत अवस्था को प्राप्त कर लेता है | एक शरीर में ही सुषुप्ति से जाग्रत अवस्था में आने पर उसकी स्मृति लोप नहीं होती जबकि शरीर की मृत्यु के बाद नया शरीर मिलने के उपरांत उसे किसी एक-दो अपवाद को छोड़कर पूर्व जन्म की स्मृति का पूर्णतया लोप हो जाता है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम् ||
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