आत्म-अवस्थाएं – 3
हमारी आत्मा की एक शरीर में रहते हुए सात
अवस्थाएं हो सकती है, जिनकी एक एक कर हम चर्चा करेंगे | इस शरीर की जाग्रत अवस्था को
प्रायः हम सभी जानते हैं | फिर आती है, स्वप्न अवस्था और अंत में सुषुप्ति अवस्था |
यह क्रम इस प्रकार चलता है - जागा हुआ व्यक्ति जब पलंग पर सोता है तो पहले स्वप्न
अवस्था में चला जाता है फिर जब नींद गहरी होती है तब वह सुषुप्ति अवस्था में होता
है | इसी के उल्टे क्रम में वह सवेरा होने पर पुन: जागृत हो जाता है | व्यक्ति एक
ही समय में उक्त तीनों अवस्था में भी रह सकता है | कुछ लोग जागते हुए भी स्वप्न
देख लेते हैं अर्थात वे गहरी कल्पना में चले जाते हैं | चलिए, थोडा विस्तार से इन
अवस्थाओं को जान ही लेते हैं |
प्रथम अवस्था – जाग्रत-
प्रथम अवस्था – जाग्रत-
जाग्रत अवस्था में व्यक्ति को
सांसारिक अनुभव होता है | उसकी समस्त इन्द्रियाँ और मन सक्रिय अवस्था में रहते हैं
| यह जो लेख आप अभी पढ़ रहें है वह आप अपनी जाग्रत अवस्था में ही पढ़ रहे हैं | कहने
का अर्थ है कि सजग रूप से जाग्रत अवस्था में रहना ही वास्तव में शरीर की जाग्रत अवस्था
है | जाग्रत अवस्था में सजगता का होना अति आवश्यक है | यदि हम जागते हुए भी
वर्तमान से बाहर निकल जाते हैं तो फिर यह हमारी स्वप्न की अवस्था होगी | प्रायः हम
देखते हैं कि कई व्यक्ति जाग्रत अवस्था में होते हुए भी भविष्य की कल्पना में खो
जाते हैं | उनकी यह अवस्था शारीरिक रूप से जागते हुए भी जाग्रत अवस्था नहीं है
बल्कि स्वप्न अवस्था है | जब हम भविष्य की कोई योजना बना रहे होते हैं, तो वर्तमान में नहीं रहकर कल्पना-लोक
में चले जाते हैं | कल्पना का यह लोक यथार्थ नहीं एक प्रकार का स्वप्न-लोक होता है
| जब हम अतीत अर्थात भूतकाल की किसी याद में खो जाते हैं, तो
हम स्मृति-लोक में चले जाते हैं | यह भी एक-दूसरे प्रकार का स्वप्न-लोक ही है |
अधिकतर व्यक्ति स्वप्न-लोक में ही जीकर मर जाते हैं केवल कुछ लोग ही जाग्रत अवस्था
को वास्तव में जी पाते हैं अर्थात वर्तमान में बहुत कम लोग जीते हैं, प्रायः तो
लोग भूत की स्मृति अथवा भविष्य की कल्पना में ही जीवन खो देते हैं | मेरे कहने का अर्थ
है कि ठीक-ठीक वर्तमान में रहना ही आत्मा की जाग्रत अवस्था है |
क्रमशः
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.प्रकाश
काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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