शरीर-15
इतने विवेचन के उपरांत स्पष्ट है कि सांख्य
के प्राकृतिक तत्त्वों और शरीर की संरचना में सीधा-सीधा सम्बन्ध है। विभिन्न
शास्त्रों में जो भिन्नताएं प्रतीत होती हैं, वे
विश्लेषण करने पर नहीं रहतीं | शास्त्रों के सार को समझने के लिए, यह मेल करना बड़ा आवश्यक है |
आत्मा तो वस्तुतः एक ही है। लेकिन शरीर दो
प्रकार के है। एक शरीर जिसे हम स्थूल शरीर कहते है, जो हमें दिखाई देता है। एक शरीर जो सूक्ष्म शरीर है जो हमें दिखाई
नहीं पड़ता है। एक शरीर की जब मृत्यु होती है, तो
स्थूल शरीर तो गिर जाता है। लेकिन जो सूक्ष्म शरीर है वह जो subtle body है, वह नहीं मरती है। आत्मा इन दो शरीरों
के भीतर निवास कर रही है। एक सूक्ष्म और दूसरा स्थूल शरीर। मृत्यु के समय स्थूल
शरीर गिर जाता है। यह जो मिट्टी पानी से बना हुआ शरीर है यह जो हड्डी मांस मज्जा
की देह है, यह गिर जाती है। फिर अत्यंत सूक्ष्म विचारों का, सूक्ष्म संवेदनाओं का, सूक्ष्म कम्पन (Vibrations) का शरीर
शेष रह जाता है, सूक्ष्म तंतुओं का।
वह तंतुओं से घिरा हुआ शरीर आत्मा के
साथ फिर से यात्रा शुरू करता है और नए जन्म में नया स्थूल शरीर पाकर उसमें प्रवेश
करता है। तब जाकर एक मां के पेट में एक आत्मा का प्रवेश होता है, तो उसका अर्थ है सूक्ष्म शरीर का
प्रवेश | मृत्यु के समय सिर्फ स्थूल शरीर गिरता है, सूक्ष्म शरीर नहीं। लेकिन परम मृत्यु के समय, जिसे हम मोक्ष कहते है, उस परम मृत्यु के समय स्थूल शरीर के
साथ ही सूक्ष्म शरीर भी गिर जाता है। फिर आत्मा का कोई जन्म नहीं होता अर्थात फिर
आत्मा को किसी स्थूल शरीर में प्रवेश करने की आवश्यकता नहीं होती । फिर वह आत्मा
विराट (परमात्मा) में लीन हो जाती है। वह जो विराट में लीन होता है, वह एक ही है, जैसे एक बूंद सागर में
गिर जाती है।
क्रमशः
प्रस्तुति-
डॉ. प्रकाश काछवाल
||
हरिः शरणम् ||
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