Tuesday, May 19, 2020

आत्म-अवस्थाएं-8


भगवत चेतना – कल से आगे
                कहा जाता है कि स्वामी विवेकानंद को एक दिन इस अवस्था की उपलब्धि होने का अनुभव हुआ, तब उन्होंने पास के कमरे में बैठे अपने साथी को एक सन्देश प्रक्षेपित किया | इस बात का जब ठाकुर रामकृष्ण परमहंस को पता चला तो उन्होंने विवेकानंदजी को इस सिद्धि के उपयोग करने को लेकर चेतावनी दी | साथ ही उन्होंने कहा कि अब भविष्य में तुम इन सिद्धियों का उपयोग नहीं कर पाओगे | हाँ, देह त्यागने से दो दिन पूर्व ये सिद्धियाँ तुम्हारे पास पुनः आ जाएगी | एक दिन जब स्वामी विवेकानंद को इन सिद्धियों के लौटने का अनुभव हुआ तो वे समझ गए कि अब उनका देह त्यागने का समय आ गया है और सत्य है कि दो दिन बाद उनका देहावसान हो गया |
             भगवत चेतन अवस्था में स्थित सिद्ध पुरुष अपनी भावनाएं अथवा अपने किसी सन्देश का प्रक्षेपण संसार में किसी भी व्यक्ति को कर सकता है | इसी प्रकार संसार में किसी भी स्थान पर होने वाली घटना को जान सकता है और सूक्ष्म शरीर के रूप में कहीं पर भी घूम फिर आ सकता है | ये सिद्धियाँ उपयोग में लेनी नहीं चाहिए क्योंकि मनुष्य जीवन का उद्देश्य ब्राह्मी चेतन अवस्था तक पहुँचाने का होना चाहिए न कि सिद्धियों के उपयोग करते रहने का | सिद्धियाँ व्यक्ति को अहंकारित कर सकती है, जिससे उसका पतन हो सकता है | अतः सिद्ध पुरुष को इन सिद्धियों की उपेक्षा करनी चाहिए |
सातवीं और अंतिम अवस्था - ब्राह्मी चेतना –
          समस्त सिद्धियों की उपेक्षा करके ही सिद्ध सर्वोच्च अवस्था को प्राप्त कर सकता है | भगवत चेतना के बाद सिद्ध पुरुष में ब्राह्मी चेतना का उदय होता है अर्थात कमल के फूल का पूर्ण रूप से खिल जाना | इस अवस्था में भक्त और भगवान के मध्य का भेद मिट जाता है | अहम् ब्रह्मास्मि और तत्वमसि अर्थात मैं ही ब्रह्म हूं और यह संपूर्ण जगत ही मुझे ब्रह्म नजर आता है | इस अवस्था में “मैं” की पूर्ण समाप्ति हो जाती है | यह व्यक्ति की परम जाग्रत अवस्था है | इस अवस्था को ही योग में समाधि की अवस्था कहा गया है अर्थात जीते-जी मोक्ष |
               इस अवस्था को उपलब्ध हो जाने के पश्चात् व्यक्ति की देह नाम मात्र की ही रह जाती है और अंततः प्रारब्ध के समाप्त हो जाने पर देह का भी विसर्जन हो जाता है | फिर उसको नई देह नहीं मिलती अर्थात उसका संसार से आवागमन मिट जाता है | यह निर्विकल्प समाधि है | इसी को ब्रह्म में स्थित हो जाना कहा जाता है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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