Sunday, May 17, 2020

आत्म-अवस्थाएं-6


आत्म-अवस्थाएं -6
चौथी अवस्था- तुरीय अवस्था- कल से आगे
              हमारी इसी अवस्था से शुरू होती है आध्यात्मिक यात्रा, क्योंकि तुरीय के इस पार संसार के दुःख है तो तुरीय के उस पार मोक्ष का आनंद होता है | हम संसार और परमात्मा के मध्य में स्थिर होकर खड़े हैं; बस आगे अब पूरे मन से एक छलांग लगाने की आवश्यकता है | जो व्यक्ति दिखावे के लिए ध्यान करता है, उससे यह छलांग नहीं लग सकती | संसार से ध्यान हटाना ही इस अवस्था को प्राप्त करने की प्रथम आवश्यकता है | चेतना की इस अवस्था में कोई भी विचार, ज्ञान आदि कुछ भी नहीं रहता | संसार के सारे प्रपंच का लोप हो जाता है | यह ध्यान की अवस्था है | इस अवस्था का अनुभव किसी विरले को ही अनुभव होता है, साधारण सांसारिक व्यक्ति को इस अवस्था का अनुभव हो ही नहीं सकता |
पांचवीं अवस्था - तुरीयातीत अवस्था-
         तुरीय अवस्था के पार पहला कदम है तुरीयातीत अवस्था के अनुभव का | यह संसार से सुषुप्ति की अवस्था है अर्थात इस अवस्था में व्यक्ति की दृष्टि में संसार उपेक्षित हो जाता है | तुरीयातीत का अर्थ है, तुरीय अवस्था से आगे निकल जाना अर्थात तुरीय अवस्था को पीछे छोड़ देना | यह अवस्था तुरीय का अनुभव स्थाई हो जाने के बाद ही आती है | चेतना की इस अवस्था को प्राप्त व्यक्ति को योगी या योगस्थ कहा जाता है |
             इस अवस्था को उपलब्ध हो जाने के उपरांत व्यक्ति निरंतर कर्म करते हुए भी थकता नहीं है | इस अवस्था में काम और आराम, दोनों एक ही बिंदु पर आकर मिल जाते हैं | काम को वह बोझ नहीं समझता और विश्राम की अवस्था में भी वह बौधिक स्तर पर सतत परमात्मा का स्मरण करता रहता है | दूसरे शब्दों में कहूँ तो कहा जा सकता है कि ऐसा योगी कुछ न करते हुए भी बहुत कुछ करता रहता है और सब कुछ करते हुए भी कुछ भी नहीं करता | इस अवस्था को जिसने प्राप्त कर लिया, वह हो गया इस जीवन के रहते हुए ही जीवन-मुक्त | राजा जनक इसके उदाहरण हैं | इस अवस्था में व्यक्ति को स्थूल शरीर या इंद्रियों की आवश्यकता तक नहीं रहती | इनके बिना भी वह सब कुछ कर सकता है | चेतना की तुरीयातीत अवस्था को सहज-समाधि भी कहते हैं |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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