Wednesday, May 13, 2020

आत्म-अवस्थाएं - 2


आत्म-अवस्थाएं – 2
            स्थूल शरीर की तीनों अवस्थाओं के अतिरिक्त चौथी अवस्था है, तुरीय अवस्था; जिसकी चर्चा हमने गत श्रृंखला में की थी | वास्तव में देखा जाये तो इस शरीर की कुल सात अवस्थाएं होती है | शरीर एक ही है, परन्तु अवस्थाएं सात, यह कैसे हो सकता है ? वास्तव में देखा जाये तो शरीर का जिस स्थान से आगमन हुआ है, वह परम ब्रह्म अर्थात परमात्मा कहलाता है | हमारा शरीर वैसे तो स्थूल होने से जड़ ही है परन्तु उसको संचालित करने वाली चेतना उस परम ब्रह्म की ही होती है, जिसे समझाने की दृष्टि से आत्मा कहा जाता है | यह आत्मा ही वास्तव में ब्रह्म है | उस ब्रह्म की अवस्था को पाना ही इस मानव जीवन का उद्देश्य है | इस प्रकार शरीर की अवस्थाओं को आत्मा की अवस्थाएं भी कहा जा सकता है क्योंकि शरीर का तभी तक मूल्य है, जब तक वह चेतन है | इसलिए आत्मा की अवस्थाओं को समझाने की दृष्टि से शरीर की अवस्थाएं कह सकते हैं | चूँकि ये अवस्थाएं व्यक्ति की निजी अवस्थाएं होती हैं इसलिए इनको आत्म अवस्थाएं भी कहा जा सकता है | आइये ! अब हम इस शरीर की विभिन्न अवस्थाओं अर्थात आत्म अवस्थाओं को एक –एक कर जान लेते हैं |
             वेद के अनुसार शरीर के जन्म और मृत्यु तथा पुनः मृत्यु से जन्म के बीच तीन अवस्थाएं ऐसी हैं, जो अनवरत चलती रहती है | वे तीन अवस्थाएं हैं- जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति | इन तीनों अवस्थाओं से बाहर निकलने की विधि का नाम है सनातन धर्म | सनातन धर्म को विधि बताने का अर्थ है कि हमारा यह धर्म किसी एक सीमा में सिमटा हुआ नहीं है | यह असीम और सदा के लिए है | इस धर्म में व्यक्ति को यह स्वतंत्रता है कि वह स्वयं के अनुसार किसी भी मार्ग को पकड़ कर उस ब्रह्म तक पहुँच सकता है, जहाँ तक पहुंचना ही इस जीवन का उद्देश्य है | अन्य धर्मों में केवल एक ही निश्चित मार्ग निर्धारित है, उस परम तक जाने का परन्तु यहाँ पर तो भिन्न-भिन्न मार्ग है उस तक पहुँचने के | प्रथम तीनों अवस्थाओं से तो प्राणी अपने जीवन में गुजरता ही है, महत्वपूर्ण तो इन तीनों अवस्थाओं से बाहर निकल जाना ही है | सर्वप्रथम हम इन तीन अवस्थाओं का पुनः स्मरण कर लेते हैं | मनुष्य की यह सबसे बड़ी विडम्बना है कि उसकी स्मृति सांसारिक कार्यों में तो बड़ी तीव्र होती है परन्तु शास्त्रों और गुरु की बातों को वह शीघ्र ही विस्मृत कर देता है | हमें सांसारिक बातों को किसी को पुनः याद दिलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती परन्तु परमात्मा की बातों को बार-बार याद दिलाना पड़ता है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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