प्रणव -1
“शरीर” श्रृंखला से ही
सम्बंधित एक प्रश्न और आया है कि ध्यान लगाने में ‘ॐ’ का उच्चारण ही क्यों आवश्यक
है, बिना किसी शब्द के उच्चारण के भी तो ध्यान में जाया जा सकता है ?
हाँ, बिना किसी शब्द के
उच्चारण के भी ध्यान में जाया जा सकता है और ॐ के अतिरिक्त अन्य किसी मन्त्र को
उच्चारित करते हुए भी | एक बार इस प्रकार का प्रयास करने में कोई हानि नहीं है | न
ही आप पर इस बात का दबाव है कि ध्यान के लिए केवल ‘ॐ’ का उच्चारण ही करना होगा |
आपको जानते हैं कि नदी में धारा के प्रवाह की दिशा में तैरना सरल है, धारा की
विपरीत दिशा की तुलना में | फिर भी आप धारा की विपरीत दिशा में ही तैर कर अपना
श्रम और समय व्यर्थ ही नष्ट करना चाहते हैं तो भला आपको कोई कैसे रोक सकता है ?
हमें सनातन धर्म में अपने
पूर्वजों से कई सिद्ध सत्य मिले हैं, उनमें ही एक है यह “ॐ” | ॐ का उच्चारण सुगमता
से हमें अपनी सांसारिक जाग्रति, स्वप्न और सुषुप्ति अवस्था से बाहर निकाल सकता है और
यह ॐ हमें परम जाग्रत अवस्था तक ले जा सकने में भी सक्षम है | सनातन हिन्दू धर्म
में देव उपासना, शास्त्र वचन, मांगलिक
कार्य, ग्रंथ पाठ या भजन-कीर्तन के
दौरान ॐ का उच्चारण करना जरूरी होता है | इसका उच्चारण कई प्रकार से और बार-बार
किया जाता है | ॐ की ध्वनि तीन अक्षरों से मिलकर बनी है- अ, उ और म | ये
मूल ध्वनियां हैं, जो हमारे चारों तरफ हर समय
उच्चारित होती रहती हैं | अब तो विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि सूर्य से हमारे
सौर मंडल में सदैव ॐ की ध्वनियाँ प्रसारित होती रहती है | इस बात की सत्यता परखने
के लिए आप NASA की रिपोर्ट देख सकते हैं |
जब हमारे चारों ओर ॐ की
ध्वनि से यह ब्रह्मांड ओतप्रोत है, तो ऐसे में हम सहज ही इस प्रणव ॐ का उच्चारण कर
ध्यान में जा सकते हैं और ब्राह्मी चेतना की अवस्था तक तक पहुँच सकते है | शिव
पुराण में इस प्रणव के बारे में विस्तार से लिखा गया है | शिव पुराण में सूतजी
ऋषियों को प्रणव के बारे में विस्तार से बतलाते हैं | कल आगे इस बात की चर्चा
करेंगे |
कल समापन
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
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