शरीर-12
अब चर्चा करेंगे चौथे शरीर की जिसे तुरीय
शरीर कहा जाता है |
4) तुरीय शरीर- यह चौथा शरीर समाधि अवस्था
में जीव को उपलब्ध होता है | इस शरीर से वह परमात्मा की अनुभूति कर पाता है | जिस
प्रकार श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन को अपना रूप दिखाने के लिए दिव्य
चक्षु देते हैं-
“न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा ।
दिव्यं
ददामि ते चक्षुः पश्य मे योगमैश्वरम् ।।गीता 11/8।।
अर्थात अर्जुन ! तुम
मुझे अपने इन प्राकृत नेत्रों से नहीं देख सकोगे | इसके लिए मैं तुम्हें दिव्य-दृष्टि यानि अलौकिक
चक्षु देता हूँ | इससे तू मेरी ईश्वरीय शक्ति को देख |
जिस
अवस्था में परमात्मा की अनुभूति होती है, कुछ उसी प्रकार का यह तुरीय शरीर होता है | इसे
प्रकृति का बना हुआ नहीं मानना चाहिए | इस शरीर को कई ज्ञानीजन शरीर न कहकर तुरीय
अवस्था भी कहते हैं |
इस प्रकार समझा जा सकता है कि तुरीय शरीर को छोड़ भी दें तो
हम सभी 3 शरीरों के पुंज हैं | यदि हम सृष्टि-तत्त्वों से इनकी तुलना करें, तो इस प्रकार का चित्र बनकर हमारे
समक्ष उपस्थित होता है-
सृष्टि-तत्त्व
और शरीर
स्थूल
शरीर- यह पञ्च स्थूल भूतों का बना हुआ है | ये पाँच तत्व हैं- पृथ्वी, जल, वायु,
अग्नि और आकाश |
सूक्ष्म
शरीर- पञ्च सूक्ष्म भूतों (शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध), 5 ज्ञानेन्द्रियों ( श्रोतेंद्रिय, स्पर्शेन्द्रिय, दर्शनेंद्रिय, स्वादेंद्रिय और
घ्रानेंद्रिय); 5 कर्मेन्द्रियों (वाक्, हस्त, पाद, पायु और उपस्थ) मन, अहंकार और बुद्धि का बना हुआ अर्थात् ऊपर दिये विवरण में हमें 5 कर्मेन्द्रियों और अहंकार को जोड़ना है
| अहंकार तो बहुत बार मन में ही गिना जाता है, इसलिए
कोई कठिनाई नहीं है, परन्तु कर्मेन्द्रियों को ऊपर से
मिलाना कठिन है | ऊपर सूक्ष्म शरीर के
भौतिक विभाग में पञ्च प्राण गिने गये हैं, जो
सूक्ष्म तत्त्वों में नहीं गिनाये गये हैं । इनका भी मेल करना कठिन है । सम्भव है
कि प्राण-वायु वायु-तन्मात्र के अवयव हों । परन्तु इससे प्रश्न उठता है कि फिर
कर्मेन्द्रियां क्यों नहीं गिनाई गईं ? इसके
उत्तर में एक सम्भावना उत्पन्न होती है- क्या प्राणों और कर्मेन्द्रियों में कुछ
सम्बन्ध है ? हम जानते हैं कि अपान वायु का पायु और
उपस्थ कर्मेन्द्रियों से सम्बन्ध है और वाणी और उदान का भी सम्बन्ध बताया गया है, परन्तु अन्य प्राण कर्मेन्द्रियों से
सम्बन्धित नहीं बताये गये हैं बल्कि पाचन-क्रिया से सम्बंधित बताये गये हैं । किस
प्रकार ’वायु’ इन पाचन-क्रियाओं से सम्बंधित है, यह
भी स्पष्ट नहीं है | दूसरी ओर हम यह अनुभव करते हैं कि जब हमें बल लगाना होता है, तब हम अपान-वायु अन्दर लेते हैं और बल
लगाते हुए उसे प्राण-वायु के रूप में छोड़ते हैं । एक और कठिनाई यह है कि
कर्मेन्द्रियों के सूक्ष्म-रूप समझ में नहीं आते- हाथ और पैरों के क्या
सूक्ष्म-रूप हो सकते हैं ? ये तो मन के संकेतों पर नाचने वाले अंग
हैं । इन सब तथ्यों से प्रतीत होता है कि 5 कर्मेन्द्रियों
और 5 प्राणों का भिन्न होते हुए भी आपस में
कुछ घनिष्ठ सम्बन्ध अवश्य है |
कारण
शरीर - कारण प्रकृति का बना हुआ । यह मूल प्रकृति है |
क्रमशः
प्रस्तुति-
डॉ. प्रकाश काछवाल
||
हरिः शरणम् ||
No comments:
Post a Comment