Saturday, May 2, 2020

शरीर - 9


शरीर -9   
       अब आते हैं राग और द्वेष की बात पर | राग और द्वेष भी जीवात्मा की शक्ति है। राग और द्वेष दो प्रकार का है - एक स्वाभाविक (Natural) और दूसरा नैमित्तिक (Invited) | जो स्वाभाविक राग-द्वेष है, वो जीवात्मा से कभी भी नहीं छूटेगा | वो मुक्ति में भी जीवात्मा में रहेगा | कहने का अर्थ है कि स्वाभाविक राग-द्वेष के रहते-रहते ही मुक्ति हो जायेगी | इसमें किसी भी प्रकार का संशय नहीं है,  कोई बाधा नहीं है। जो नैमित्तिक राग-द्वेष है, वो बाधक (Obstruction) है | मुक्ति के लिए उसे हमें हटाना (Remove) ही पड़ेगा | तभी मुक्ति होना संभव होगा अन्यथा नहीं |
          अब प्रश्न उठता है कि स्वाभाविक राग-द्वेष क्या है और नैमित्तिक राग-द्वेष क्या है ?  इसका उत्तर यह है कि इस जीवात्मा को सदैव सुख ही चाहिये, यही उसका सूक्ष्म राग ही स्वाभाविक राग (Natural love) है | यह राग मुक्ति में किसी भी प्रकार से बाधक नहीं है | जीवात्मा को जीवन में दुःख कभी भी नहीं चाहिये | दुःख से उसको यह स्वाभाविक द्वेष (Natural hate) हुआ | ये भी मुक्ति में बाधक नहीं है | ये स्वाभाविक राग और द्वेष रहेंगे तो भी मुक्ति हो जायेगी। अतः स्वाभाविक राग-द्वेष की चिन्ता न करें |
      किसी एक व्यक्ति ने मेरी बहुत बड़ी हानि कर दी,  मैं उसको मार डालूँगा, ये सोचना नैमित्तिक द्वेष है |  मुझे प्रतिदिन भोजन में खीर,  पूड़ी,  लड्डू मिलने ही चाहिये और केवल मुझे ही सबसे अधिक मिलना चाहिये  दूसरों को कम, इस प्रकार की सोच रखना ही हमारा नैमित्तिक राग है | यह राग-द्वेष मुक्ति में बाधक है | जब ये राग-द्वेष हट जाएंगे, तब ही मुक्ति होगी अन्यथा नहीं | इस नैमित्तिक राग-द्वेष के रहते मुक्ति कभी भी संभव नहीं होगी | इन दोनों को छोड़ देंगे तो मुक्ति हो जायेगी |
             हरिः शरणम् आश्रम बेलडा, हरिद्वार के आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा प्रायः अपने प्रवचनों में नैमेत्तिक राग-द्वेष के बारे में श्रोताओं को आगाह करते रहते हैं | वे कहते हैं कि अगर आपके भीतर इस संसार में किसी के भी प्रति राग-द्वेष की भावना है, तो आपकी मुक्ति नहीं हो सकती | सत्य कहते हैं, वे | अतः आवश्यक है कि इस शरीर के छूटने से पहले-पहले हम प्रत्येक प्रकार के राग-द्वेष से मुक्त हो जाएँ |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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