Sunday, May 10, 2020

शरीर -17


शरीर-17
               आइये ! समाधि और उससे पूर्व की अवस्थाओं को समझने के लिए चलते हैं, अध्यात्म रामायण की ओर | अध्यात्म रामायण और माण्डुक्योपनिषद् दोनों में ही ओंकार (ॐ) को उद्घृत करते हुए समाधि और समाधि पूर्व की तीनों अवस्थाओं को स्पष्ट किया गया है | आज अध्यात्म रामायण में वर्णित प्रसंग की चर्चा करूँगा | माण्डुक्योपनिषद् को समझने के लिए अध्यात्म रामायण का यह प्रसंग एक आधार तैयार करता है | इस आधार से माण्डुक्योपनिषद् को समझना सरल होगा |
        अध्यात्म रामायण के उत्तरकाण्ड का पंचम सर्ग है ‘राम-गीता’, जिसमें भगवान श्रीराम अपने अनुज लक्ष्मण को उनके आग्रह पर ज्ञान देते हैं | वे समाधि की अवस्था को उपलब्ध होने के लिए पूर्व में क्या और किस प्रकार करना है उसको स्पष्ट करते हुए कह रहे हैं-
     पूर्वं समाधेरखिलं विचिंतेय-
           दोंकारमात्रं सचराचरं जगत् |
    तदेव वाच्यं प्रणवो हि वाचको
           विभाव्यते ज्ञानवशान्न बोधतः ||अध्यात्म./उत्तर./5/48||
            अर्थात समाधि प्राप्त होने के पूर्व ऐसा चिंतन करें कि सम्पूर्ण चराचर जगत केवल ओंकार मात्र है | यह संसार वाच्य है और ओंकार इसका वाचक है | अज्ञान के कारण ही इसकी प्रतीति हो रही है, ज्ञान हो जाने पर कुछ भी नहीं होता |
        समाधि अवस्था को प्राप्त करने के लिए साधक को क्या प्रयास करना चाहिए इसको स्पष्ट करते हुए भगवान श्रीराम कहते हैं कि ओंकार में ‘अ’, ‘उ’ और ‘म’ ये तीन वर्ण हैं | अकार (अ) विश्व का वाचक है, उकार (उ) तैजस का वाचक है और मकार (म) प्राज्ञ को कहते हैं | अकार जाग्रत अवस्था, उकार स्वप्नावस्था और मकार सुषुप्ति अवस्था के प्रतीक हैं | ये व्यवस्थाएं समाधि लाभ से पहले की है, तत्व की दृष्टि से ऐसा कोई भेद नहीं है | विविध रूप से स्थित ‘अकार’ रुप विश्व को ‘उकार’ में लीन करें और ओंकार के द्वितीय वर्ण तैजस रूप ‘उकार’ को उसके अंतिम रूप ‘मकार’ में लीन करे | फिर कारण आत्मा प्राज्ञ रूप ‘मकार’ को भी चिदानंद रूप परमात्मा में लीन करे; और ऐसी भावना करे कि वह नित्य मुक्त विज्ञान स्वरूप उपाधि हीन निर्मल पर ब्रह्म मैं ही हूँ |
         हालाँकि ॐ अविभाजित है फिर भी इसमें तीन अक्षर है | ॐ के उच्चारण में सर्वप्रथम ‘अ’ का उच्चारण किया जाता है जिसमें हमारा मुख खुलता है, यह हमरी सामान्य जाग्रत अवस्था का प्रतीक है | इस स्थिति में हमारी सारी चेतना बाहर की तरफ अर्थात संसार की ओर होती है | फिर ‘उ’ का उच्चारण करते समय हमारा मुख द्वार गोलाकार हो जाता है, यह हमारी स्वप्नावस्था है | यह मनुष्य की मानसिक स्थिति है | अंत में ‘म’ के उच्चारण में हमारा मुख बंद हो जाता है, यह हमारी गाढ निद्रा (सुषुप्ति) की अवस्था है | यह मनुष्य की विश्राम और आनंद की अवस्था है | फिर ‘म’ के उच्चारण की समाप्ति के पश्चात् की जो अवस्था है वह समाधि की तुरीय अवस्था है | यह न तो जानने की स्थिति है और न ही नहीं जानने कि स्थिति है | इसे परम जाग्रत अवस्था भी कहा जाता है | यहाँ आकर जीव ब्रह्म के साथ एकाकार हो जाता है | इस प्रकार ॐ ही आत्मा है, परम आत्मा है | इस प्रकार कहा जा सकता है कि ॐ भूत से पहले भी है और भविष्य के बाद भी है |
कल समापन कड़ी
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

No comments:

Post a Comment