Thursday, May 7, 2020

शरीर-14


शरीर-14
         यदि कोष भी शरीर के ही विभाग हैं, तो स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीर और पञ्च कोषों में भेद क्यों किया गया है ? इसका विश्लेषण करते हुए, हम एक बात स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि विज्ञानमय कोष में ज्ञानेन्द्रिय हैं, जो कि पूर्व के मनोमय कोष के मन और अहंकार से अधिक स्थूल है | इसलिए कोषों का विभाग पूर्णतया सूक्ष्मता के अनुसार नहीं है, जबकि तीन शरीरों का विभाजन सूक्ष्मता के अनुसार निर्धारित है | इससे यह प्रतीत होता है कि ये कोष हमारी अनुभूति के अनुसार हैं | हम शरीर को इन रूपों में अनुभव करते हैं, इसलिए ये कोष योगी के ध्यान करने में सहायता के लिए हैं | ध्यान करते समय हमें पहले अपने अन्नमय कोष पर चित्त को स्थिर करना चाहिए,  जैसे भौंहों के बीच में, नाभि पर आदि | इसके उपरान्त हमें प्राणमय कोष पर अर्थात  अपनी श्वास-प्रश्वास प्रक्रिया पर ध्यान लगाना चाहिए | यहां स्थिर हो जाने पर,  हमें मनोमय कोष, जो हिलने-डुलने, देखने-सुनने, आदि का संकल्प करता है, उसको अनुभव करना चाहिए | इसके बाद भी हमारी बुद्धि पर, जिसमें विचार आ रहे होंगे, उसको अनुभव करना चाहिए जोकि विज्ञानमय कोष है | विचारों के स्थिर हो जाने पर  हम अपने-आप आनन्द का अनुभव करने लगेंगे | यही आनन्दमय कोष है।
       जीव इन सभी शरीरों और कोषों से भिन्न है, और स्वतन्त्र सत्ता वाला है। सूक्ष्म और कारण शरीर सृष्टि के प्रारम्भ में ही आत्मा से चिपक जाते हैं, फिर सर्ग के अन्त में ही जाकर अलग होते हैं। मुक्तात्मा का भौतिक सूक्ष्म-शरीर तो छूट जाता है, परन्तु स्वाभाविक (कारण) शरीर बना रहता है, जो सर्ग के अन्त में ही छूटता है। परन्तु इस विषय में भी विद्वानों में मतभेद रहा है। कुछ का मानना है कि मुक्तात्मा प्रकृति से सर्वथा रहित हो जाता है।
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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