Tuesday, May 12, 2020

आत्म-अवस्थाएं - 1


आत्म-अवस्थाएं -1
           कल समाप्त हुई “शरीर” श्रृंखला पर कई प्रतिक्रियाएं और प्रश्न मिले हैं | कुछ प्रश्न शरीर की जो तीन अवस्थाएं बतलाई गयी थी, उनको लेकर थे | वैसे इस शरीर की अवस्थाओं को लेकर जो भी शंकाएं की गयी है उनको देखते हुए मैं यह आवश्यक समझता हूँ कि विषय को और अधिक स्पष्ट किया जाये, जिससे किसी भी प्रकार का भ्रम न रहे | कई बार हम लेख के माध्यम से कोई बात कहते हैं, उसको पाठक किस प्रकार लेते हैं, यह लेखक नहीं जान सकता | लेखक सोचता है कि विषय इतनी सी बात कहने से शायद स्पष्ट हो गया होगा, परन्तु वास्तव में ऐसा होता नहीं है | स्पष्ट होने के स्थान पर कई बार पाठक भ्रमित हो जाता है | यह भ्रम भाषा की अस्पष्टता अथवा विषय को अल्प रूप से स्पष्ट करने से भी हो सकता है | हो सकता है, इसमें मेरे स्तर पर ही कोई त्रुटि रह गयी हो, इस कारण से मैंने उचित समझा कि क्यों न इस सम्बन्ध में उठी प्रत्येक शंका का समाधान थोडा विस्तार से कर दिया जाय |
           शरीर की तीन अवस्थाओं को जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति अवस्था बताया गया था | इनके अतिरिक्त एक चौथी अवस्था बताई गयी थी, जिसे तुरीय अवस्था कहा जाता है | प्रथम तीनों अवस्थाएं सांसारिक अवस्थाएं है, स्थूल शरीर की अवस्थाएं है | तुरीय का अर्थ ही चार होता है इसीलिए चौथी अवस्था को तुरीय अवस्था कहा गया है | यह शरीर की वह अवस्था है, जब मनुष्य परमात्मा को पाने अर्थात स्वयं के ब्रह्म हो जाने की (वैसे वह ब्रह्म ही है, केवल उस स्वरुप को वह विस्मृत कर चूका है) तैयारी करता है | शरीर की इन अवस्थाओं को हम स्पष्ट रूप से नहीं समझ सके हैं क्योंकि तुरीय अवस्था को ही बहुधा पाठक व्यक्ति अपने जीवन की अंतिम अवस्था समझ लेते हैं | वास्तव में तुरीय अवस्था शरीर की एक मध्यम् अर्थात बीच की अवस्था है, जहाँ से व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक यात्रा की शरुआत करता है | तुरीय अवस्था से व्यक्ति की यह यात्रा किस प्रकार प्रारम्भ होती है और इस संसार में रहते हुए अंतिम अवस्था जिसे व्यक्ति के जीवन की सर्वोच्च अवस्था कहा जा सकता है, वह क्या होती है ? इसी को जानने के लिए एक लघु श्रृंखला आपके समक्ष प्रस्तुत है |
क्रमशः
प्रस्तुति – डॉ. प्रकाश काछवाल 
|| हरिः शरणम् ||

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