आत्म-अवस्थाएं – 5
इस प्रकार हमने अब तक पूर्व
श्रृंखला में वर्णित तीनों अवस्थाओं का स्मरण किया है | अब आते हैं, आत्मा की आगे
की चार महत्वपूर्ण अवस्थाओं पर |
जो व्यक्ति उक्त तीनों अवस्थाओं (जाग्रत,
स्वप्न और सुषुप्ति) से बाहर निकलकर स्वयं के अस्तित्व अर्थात स्वयं के होने को निश्चित
कर लेता है वही मोक्ष के, मुक्ति
के और परमात्मा के सच्चे मार्ग पर है | संसार से बाहर निकलने और आत्म-ज्ञान
प्राप्त करने की छटपटाहट ही व्यक्ति के आगे की अवस्थाओं में जाने का संकेत करती है
| उक्त तीन अवस्थाओं से क्रमश: ही बाहर निकला जा सकता है | इसके लिए निरंतर ध्यान
करते हुए सदैव साक्षी भाव में रहना पड़ता है, तभी हमें आगे की चार अवस्थायें
प्राप्त होती है | ये चार अवस्थाएं हैं - तुरीय अवस्था, तुरीयातीत
अवस्था, भगवत चेतना और ब्राह्मी चेतना | अब हम इन चारों
अवस्थाओं पर चर्चा प्रारम्भ करते हैं |
चौथी अवस्था - तुरीय अवस्था-
चौथी अवस्था - तुरीय अवस्था-
आत्मा की चौथी अवस्था को तुरीय अवस्था कहते हैं
| यह अवस्था व्यक्ति के स्वयं के प्रयासों से ही प्राप्त होती है | चेतना की इस
अवस्था का न तो कोई गुण है, न
ही कोई रूप | यह अवस्था निर्गुण है, निराकार है | इसमें न
जागृति है, न स्वप्न और न ही सुषुप्ति | यह निर्विचार और
अतीत की स्मृति व भविष्य की कल्पना से परे की जागृति है | हालाँकि यह अवस्था भी
जाग्रत अवस्था है परन्तु इस अवस्था में संसार पीछे छूट जाता है और भविष्य की कोई
कल्पना भी नहीं रहती | एक प्रकार से इस अवस्था को मध्य अवस्था कहा जा सकता है,
जिसमें न तो संसार की ओर अवलम्बन दृष्टिगत है और न ही ब्रह्म की ओर | इसी अवस्था
से व्यक्ति की आगे की यात्रा प्रारम्भ होती है | जिस प्रकार दौड़ रहे वाहन को पुनः पीछे
की ओर ले जाने के लिए सर्वप्रथम उसकी गति को शून्य करना पड़ता है अर्थात वाहन को पूर्ण
रूप से रोकना पड़ता है और फिर उसे पीछे ले जाने को गति देनी पड़ती है, उसी प्रकार
संसार को छोड़कर परमात्मा की ओर जाने से पहले की यह गति शून्य अवस्था है |
यह उस साफ और शांत जल की तरह है जिसका तल दिखाई देता है | तुरीय का अर्थ होता है चतुर्थ | इसके बारे में कुछ कहने की सुविधा के लिए इसे संख्या से संबोधित करते हैं | यह पारदर्शी कांच या सिनेमा के सफेद पर्दे की तरह है जिसके ऊपर कुछ भी चित्र नहीं बन रहा | जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति आदि चेतना की अवस्थाएं तुरीय के पर्दे पर ही घटित होती हैं और जैसी घटित होती हैं, तुरीय चेतना उन्हें वैसी की वैसी हमारे अनुभव को प्रक्षेपित कर देती है | यह आधार-चेतना है | आधार चेतना से ही ब्राह्मी-चेतना की ओर जाना संभव होता है |
यह उस साफ और शांत जल की तरह है जिसका तल दिखाई देता है | तुरीय का अर्थ होता है चतुर्थ | इसके बारे में कुछ कहने की सुविधा के लिए इसे संख्या से संबोधित करते हैं | यह पारदर्शी कांच या सिनेमा के सफेद पर्दे की तरह है जिसके ऊपर कुछ भी चित्र नहीं बन रहा | जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति आदि चेतना की अवस्थाएं तुरीय के पर्दे पर ही घटित होती हैं और जैसी घटित होती हैं, तुरीय चेतना उन्हें वैसी की वैसी हमारे अनुभव को प्रक्षेपित कर देती है | यह आधार-चेतना है | आधार चेतना से ही ब्राह्मी-चेतना की ओर जाना संभव होता है |
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ.
प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||
No comments:
Post a Comment