Wednesday, March 11, 2020

ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः -1


ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः(ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म में स्थित है)-1
        संसार में विभिन्न प्रकार के जीव हैं। कुछ जीव ऐसे हैं जिनमें सोचने, समझने और करने की क्षमता का पूर्णतया अभाव है और कई ऐसे जीव भी है,ं जिनमें यह क्षमता क्रमशः विकसित होती गई है। मनुष्य एक मात्र ऐसा जीव है जिसमें सोचने, समझने और करने की क्षमता पूर्ण रूप से विकसित है। यही कारण है कि मनुष्य अपने जीवन में कुछ करने से पहले बहुत सोच-विचार करता है। सोच-विचार करके ही कुछ करने के कारण ही उसके कर्मों का फल उसे भुगतना पड़ता है। अन्य जीव, जिनमें इस क्षमता का अभाव है वे जीव केवल अपने पूर्व मनुष्य जीवन में किये हुए कर्मों का फल भोगने के लिए ही कुछ क्रियाएं करते रहते हैं। इसीलिए उनके द्वारा की गई क्रियाओं को कर्म करना नहीं कहा जा सकता। कर्म केवल वे ही क्रियाएं कही जाती है जिन क्रियाओं को भली भांति सोच समझकर किया जाता है और इन्हीं कर्मों का फल मनुष्य को फिर प्राप्त होता है। कर्म कभी भी नष्ट नहीं होते, चाहे सहस्रों वर्ष बीत जाएँ। कर्म तो केवल ज्ञान के द्वारा ही नष्ट हो सकते हैं, अन्य किसी साधन से नहीं। गीता में भी कहा गया है- “ज्ञानाग्निदग्धकर्माणम्” (3/19) तथा “ज्ञानाग्नि सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा” (3/37)
              किसी कर्म को करने से पहले जो सोच-विचार किया जाता है वह मनुष्य में उस कर्म के फल को निश्चित करता है। इस निश्चित मिल सकने वाले फल के लिए किये जाने वाले कर्म को करने के लिए जो निश्चय किया जाता है, उसे मनुष्य का संकल्प कहा जाता है। संकल्प से किये गए कर्म ही हमारे लिए भोग का कारण बनते हैं और अगर एक मनुष्य जीवन में वह संकल्प पूरा नहीं हुआ तो फिर मनुष्य को उसे पूरा करने के लिए विभिन्न जीव योनियों में भटकना पड़ता है। पुनर्जन्म के सिद्धांत का मूल आधार ही यह कर्मों को करने का संकल्प ही है। संकल्प तभी किया जाता है जब मन में किसी प्रकार की कोई कामना उठे और यह कामना बिना किसी कर्म के और उस कर्म को करने के संकल्प के बिना पूरी नहीं हो सकती।
क्रमशः
प्रसतुति - डॉ.प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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