ब्रह्मविद्
ब्रह्मणि स्थितः(ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म में स्थित है)-13
सृष्टि
-(Creation)-
इतना ज्ञान हो जाने के बाद यह स्पष्ट हो
जाता है कि ईश्वर से यह जगत किस प्रकार बना | आइये, अब जानें कि ईश्वर से क्या क्या
उत्पन्न हुआ है ? ईश्वर से उत्पन्न सभी ईश्वर के ही रूप
हैं। ये रूप हैंः ईश (अंतर्यामी), हिरण्यगर्भ, विराट, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्र, अग्नि, गणेश, यक्ष, राक्षस, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, गौ, घोड़ा, मृग, पक्षी, जलचर, उभयचर, पीपल
आदि वृक्ष, जौ आदि अन्न, धान, तिनके, औषधियां आदि, जल, पाषाण, मिट्टी, काठ, कुदाल आदि सभी ईश्वर हैं। जो कोई भी इनकी पूजा करता है, वे उन्हें फल देते हैं। जैसी जिसकी पूजा वैसा
ही उसको फल क्योंकि पूज्यों और पूजन के सात्विक, राजस
अथवा तामस आदि होने से फल भी उन्हीं के अनुरूप मिलते हैं। इस बात को भगवान श्री
कृष्ण अर्जुन को गीता में स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि -
काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवता।
काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवता।
क्षिप्रं
हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवतिकर्मजा।। 4/12।।
अर्थात
कर्मों की सिद्धि (फल) चाहने वाले मनुष्य देवताओं की उपासना किया करते हैं, क्योंकि इस मनुष्य लोक में कर्मों से उत्पन्न
होने वाली सिद्धि शीघ्र ही मिल जाती है।
ऐसी उपासना से हमें संसार के सुख की
वस्तुएं तो मिल सकती हैं परन्तु ब्रह्म की स्थिति तक नहीं पहुंच सकेंगे। ब्रह्म
में स्थित होने के लिए तो अनन्य भाव से केवल ब्रह्म की ही उपासना करनी होगी।गीता
में भगवान कहते हैं-
यान्ति देवव्रता देवान्पितृन्यान्ति
पितृव्रताः।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति
मद्याजिनोपि माम् ।। 9/25।।
अर्थात
देवताओं को पूजने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं, पितरों को पूजने वाले पितरों को और भूत प्रेतों को पूजने वाले भूत
प्रेतों को प्राप्त होते हैं। परन्तु मेरा पूजन करने वाले मुझे ही प्राप्त होते
हैं।
क्रमशः
प्रस्तुति-
डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः
शरणम् ||
No comments:
Post a Comment