Saturday, March 21, 2020

ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः -11


ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः(ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म में स्थित है)-11
      ईश्वर का एक रुप हमारे भीतर रहता है - अर्न्तयामी के रुप में और दूसरा रुप हमारे शरीर से बाहर रहकर समस्त संसार का ध्यान रखता है-सर्वेश्वर अर्थात जो सब जगह रहते हुए सबका नियामक है।
2;सर्वेश्वर-(Omnipresent)---
         जिसने बाह्य जगत (outer world) पर अपना आधिपत्य जमा (Possession) रखा है। वायु को बहने का, अग्नि को जलने का, सूर्य को चक्कर काटते रहने का और मृत्यु को मारने का जो आदेश दिया करता है, वही सर्वेश्वर है। यही सर्वेश्वर शरीरों के अंदर रहकर उनका नियमन करने वाला अंतर्यामी कहा जाता है अर्थात बाह्य नियामक सर्वेश्वर और अंदर बैठा नियामक अंतर्यामी कहलाते हैं, ये दोनों एक ही है, जिसे ईश्वर कहा जाता है।
                ईश्वर आनंदमयी है। यही ईश्वर अपने जड़ अंश से तो अचेतनों (Non conscious) का उपादान है (Ingredient/matter) तथा वही अपने चिदाभास अंश से जीवों (Conscious) का कारण (Cause) हो जाता है। भावना (संस्कार), ज्ञान तथा कर्मों के निमित्त से ईश्वर जब तमः प्रधान हो जाता है, तब क्षेत्र अर्थात शरीर आदि का कारण हो जाता है तथा जब चित प्रधान होता है तो चिदात्माओं का कारण बन जाता है। मनुष्य जीवन के रहते हुए हमें अंर्तयामी को जानकर सर्वेश्वर को जानना होगा, तभी हम ब्रह्म तक पहुंच सकते हैं। यही बात आचार्य श्री गोविन्द राम शर्मा कहते हैं कि पहले स्वयं के भीतर बैठे ईश्वर को जानो और फिर समस्त संसार में ईश्वर को।
      प्रायः हम ईश्वर और ब्रह्म (परमात्मा) को एक ही समझ बैठते हैं। वास्तव में ब्रह्म तो असंग है, वह कुछ करता धरता नहीं है। जगत का सृजन तो केवल मायापति अर्थात मायावी महेश्वर ही किया करता है। श्वेताश्वर उपनिषद में कहा गया है : ’अस्मान्मायी सृजते विश्वमेतत् तस्मिंंश्चान्यो मायया संनिरुद्धः।‘ (4/9) अर्थात मायी (ईश्वर) तो इस जगत को बनाता है परंतु जीव माया के वश होकर इसमें कैद हो कर रह गया है।
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

No comments:

Post a Comment