Monday, March 30, 2020

ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः -20


ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः(ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म में स्थित है)-20
        गीता के पन्द्रहवें अध्याय के इस पांचवें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने ब्रह्म की स्थिति को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति में कितनी विशेषताएं होनी चाहिए, का वर्णन किया है। ये विशेषताएं हैं-
-मान-अपमान में सम रहना।
-मोह (अज्ञान) से रहित होना।
-अनासक्त हो जाना।
-कामना रहित हो जाना।
-इन्द्रिय-जनित दोषों (विकारों) पर विजय प्राप्त कर लेना।
-निर्द्वंद्वता की स्थिति को उपलब्ध हो जाना।
           इन सभी विशेषताओं को आत्मसात कर लेने वाला व्यक्ति ब्रह्म की स्थिति को उपलब्ध हो जाता है। ऐसी स्थिति को उपलब्ध हो जाने पर ही हमें ब्रह्मतत्त्व का बोध हो सकेगा। ब्रह्म तत्व को जान लेने का क्या परिणाम होता है, इस बात को मुण्डकोपनिषद में स्पष्ट किया गया है-
स यो ह वै तत्परं ब्रह्म वेद ब्रह्मैव भवति नास्याब्रह्मवित्कुले भवति। तरति शोकं तरति पाप्मानं गुहाग्रन्थिभ्यो विमुक्तोऽमृतो भवति।। तृतीयमुण्डक-2/9।।”
अर्थात निश्चय ही जो कोई भी उस परम ब्रह्म को जान लेता है; वह महात्मा ब्रह्म ही हो जाता है; इसके कुल में ब्रह्म को न जानने वाला नहीं होता। वह शोक से पार हो जाता है; पाप समुदाय से तर जाता है; हृदय की गांठों से सर्वथा छूटकर अमर हो जाता है।
गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को यही बात इस प्रकार से स्पष्ट करते हैं-
यः एवं वेत्ति पुरुषं प्रकृतिं च गुणैः सह।
सर्वथावर्तमानोऽपि न स भूयोऽभिजायते।। 13/23।।
अर्थात इस प्रकार पुरुष को और गुणों के सहित प्रकृति को जो मनुष्य अलग अलग जानता है, वह सब तरह का बर्ताव करते हुए भी पुनःजन्म (Rebirth) नहीं लेता।
कल अंतिम कड़ी 
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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