ब्रह्मविद्
ब्रह्मणि स्थितः(ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म में स्थित है)-18
शास्त्र के सिद्धांत तो यह है कि “वैराग्य“, “बोध“ और “उपरम“ अथवा “उपरति“ ये तीनों
ब्रह्मतत्त्व बोध के लिए सहायक हैं। ये तीनों प्रायः एक साथ ही रहते हैं। हाँ, कभी कभी अलग अलग भी पाए जाते हैं। इन तीनों में
बोध ही प्रधान है क्योंकि यही साक्षात मोक्ष देने वाला है। वैराग्य और उपरति तो
तत्त्व-बोध में सहायक हैं। इन तीनों के कारण, स्वरूप
और कार्य/फल भिन्न भिन्न हैं जो निम्न प्रकार हैं -
वैराग्य--(Detachment)--
वैराग्य का कारण-विषयों में दोष दृष्टि ।
वैराग्य का स्वरूप-विषयों को त्यागने की
अभिलाषा।
वैराग्य का कार्य/फल-भोगों के प्रति दीनता
का अभाव।
बोध--(Realization)--
बोध का कारण-श्रवण,मनन और निदिध्यासन।
बोध का स्वरूप-सत और असत का विवेक।
बोध का कार्य/फल-ग्रंथि का फिर कभी भी न
बनना।
उपरति--(Diapause)--
उपरति का कारण-यम नियम आदि।
उपरति का स्वरूप-मन और बुद्धि का निरोध।
उपरति का कार्य/फल-व्यवहार का समाप्त हो
जाना।
क्रमशः
प्रस्तुति-
डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः
शरणम् ||
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