Sunday, March 29, 2020

ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः -19


ब्रह्मविद् ब्रह्मणि स्थितः(ब्रह्म को जानने वाला ब्रह्म में स्थित है)-19
   यदि वैराग्य, उपरति और बोध तीनों पक्के हो जाएं तो यह करोड़ों पूर्वजन्मों के पुण्यों का फल ही माना जायेगा। अगर वैराग्य और उपरति पूर्ण हो चुके हों तो भी मोक्ष होना असंभव है। उसको तो किसी उच्च-लोक की प्राप्ति अवश्य हो जाएगी। अगर किसी को बोध हो जाये और वैराग्य तथा उपरति न हो तो मोक्ष तो हो जाएगा परंतु उसके जीवन में दृष्ट दुःखों का नाश नहीं हो पायेगा अर्थात वह जीवन-मुक्ति का आनंद नहीं ले पायेगा। नित्य-अनित्य वस्तु विवेक, शम-दम आदि साधन, वैराग्य और मुमुक्षु का केवल भाव रहने पर ही ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। ज्ञान हो जाये और वैराग्य तथा उपरति न हो, तो यह एक काल्पनिक और असाधारण अवस्था बनती है। हाँ, किसी का प्रारब्ध (Destiny) ही ऐसा हो कि वह आत्मबोध को पहले उपलब्ध हो गया हो और जीवन के अंतिम भाग में वैराग्य और उपरति को भी प्राप्त कर लिया हो, केवल इसी स्थिति में वह मोक्ष को उपलब्ध हो सकता है। वरना तो, बिना वैराग्य और उपरति के केवल आत्मबोध (Realization)को उपलब्ध हो जाना और मोक्ष को पा जाना कल्पना के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। अतः यह समझा जा सकता है कि वैराग्य और उपरति को धारण करके ही ब्रह्मतत्त्व के बोध प्राप्त कर लेने की अवस्था तक पहुंचा का सकता है। बिना वैराग्य अथवा उपरति के  आत्म-ज्ञान को उपलब्ध होना असंभव नहीं तो इतना सरल भी नहीं है।
भगवान् श्री कृष्ण गीता में अर्जुन को कहते हैं कि-
निर्मानमोहा जितसंगदोषा-
        अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।
द्वंद्वेर्विमुक्ताः सुखदुःखसञ्ज्ञै-
      र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।। 15/5।।
अर्थात जो मान और मोह से रहित हो गए हैं, जिन्होंने आसक्ति से होने वाले दोषों को जीत लिया है, जो नित्य निरंतर परमात्मा में ही लगे हुए हैं, जो सम्पूर्ण कामनाओं से रहित हो गए हैं, जो सुख-दुःख आदि द्वंद्वों से मुक्त हो गए हैं ऐसे मोहरहित भक्त ही उस अविनाशी परम-पद (परमात्मा, ब्रह्म) को प्राप्त होते हैं।
क्रमशः
प्रस्तुति- डॉ. प्रकाश काछवाल
|| हरिः शरणम् ||

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