उद्धव-कृष्ण संवाद-7(समापन कड़ी)-
भक्ति से अभिभूत उद्धव मंत्रमुग्ध हो गये और बोले- “प्रभु कितना गहरा दर्शन है | कितना महान सत्य | 'प्रार्थना' और 'पूजा-पाठ' से, ईश्वर को अपनी मदद के लिए बुलाना तो केवल हमारी 'पर-भावना' है परन्तु जैसे ही हम यह विश्वास करना शुरू करते हैं कि 'ईश्वर' के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, तब हमें साक्षी के रूप में उनकी उपस्थिति का अनुभव होने लगता है | समस्या तो तब पैदा होती है, जब हम इसे भूलकर सांसारिकता में डूब जाते हैं।“
सम्पूर्ण श्रीमद् भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसी जीवन-दर्शन का ज्ञान दिया है | सारथी का अर्थ है- मार्गदर्शक | अर्जुन के लिए सारथी बने श्रीकृष्ण वस्तुतः उसके मार्गदर्शक ही थे | वह स्वयं की सामर्थ्य से युद्ध नहीं कर पा रहा था, लेकिन जैसे ही अर्जुन को परम साक्षी के रूप में भगवान कृष्ण का अनुभव हुआ, वह उस परम तत्व की चेतना में विलीन हो गया | यह एक अनुभूति थी-शुद्ध, पवित्र, प्रेममय, आनंदित परम चेतना की |तत्वमसि यानि तत-त्वम-असि | अर्थात वह परम तत्व तुम ही हो |
इसके बाद श्री कृष्ण ने उद्धव को जो उपदेश दिया वह “उद्धव गीता” नाम से प्रसिद्ध है | श्री मद्भागवत महापुराण के ग्यारहवें स्कंध में वह उपदेश संकलित है, जो भगवान श्रीकृष्ण ने अपने परम सखा उद्धव को दिया था। उपदेश लेने के उपरांत भगवान श्रीकृष्ण के आदेशानुसार उद्धव बद्रिकाश्रम चले गए, वहीँ तपस्या में लीन होकर उन्होंने अपनी जीवन लीला समाप्त की और परमात्मा के धाम गमन कर गए|
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||
भक्ति से अभिभूत उद्धव मंत्रमुग्ध हो गये और बोले- “प्रभु कितना गहरा दर्शन है | कितना महान सत्य | 'प्रार्थना' और 'पूजा-पाठ' से, ईश्वर को अपनी मदद के लिए बुलाना तो केवल हमारी 'पर-भावना' है परन्तु जैसे ही हम यह विश्वास करना शुरू करते हैं कि 'ईश्वर' के बिना पत्ता भी नहीं हिलता, तब हमें साक्षी के रूप में उनकी उपस्थिति का अनुभव होने लगता है | समस्या तो तब पैदा होती है, जब हम इसे भूलकर सांसारिकता में डूब जाते हैं।“
सम्पूर्ण श्रीमद् भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इसी जीवन-दर्शन का ज्ञान दिया है | सारथी का अर्थ है- मार्गदर्शक | अर्जुन के लिए सारथी बने श्रीकृष्ण वस्तुतः उसके मार्गदर्शक ही थे | वह स्वयं की सामर्थ्य से युद्ध नहीं कर पा रहा था, लेकिन जैसे ही अर्जुन को परम साक्षी के रूप में भगवान कृष्ण का अनुभव हुआ, वह उस परम तत्व की चेतना में विलीन हो गया | यह एक अनुभूति थी-शुद्ध, पवित्र, प्रेममय, आनंदित परम चेतना की |तत्वमसि यानि तत-त्वम-असि | अर्थात वह परम तत्व तुम ही हो |
इसके बाद श्री कृष्ण ने उद्धव को जो उपदेश दिया वह “उद्धव गीता” नाम से प्रसिद्ध है | श्री मद्भागवत महापुराण के ग्यारहवें स्कंध में वह उपदेश संकलित है, जो भगवान श्रीकृष्ण ने अपने परम सखा उद्धव को दिया था। उपदेश लेने के उपरांत भगवान श्रीकृष्ण के आदेशानुसार उद्धव बद्रिकाश्रम चले गए, वहीँ तपस्या में लीन होकर उन्होंने अपनी जीवन लीला समाप्त की और परमात्मा के धाम गमन कर गए|
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||
हरि शरणं
ReplyDeleteसादर सहृदय_/\_प्रणाम मेरे प्यारे भाइयों, बहनों।
ReplyDeleteजय जय श्री राधेकृष्णा।
"समर्पण का एक संकल्प बदल सकती है आपके मन और जीवन की दशा और दिशा"
क्यों कि जिसे भगवद् शरण मिल जाए
उसका जीवन सर्वब्यापी परमात्मा के द्वारा आरछित-सुरछित हो जाता है
अनहोनी से बचाव और होनी में मंगल छिपा होता है।
तथा मायापति की माया से भी अभयता मिलती है
क्यों कि माया का मूल स्वरूप हमारे मन में स्थित भावनाऐं है
जिन्हें हम भवसागर कहते हैं
भगवद कृपाओं से हमें इसमें तैरना आ जाता है
जिसके कारण हमारा मन विपरीत विषम् परिस्थितियों में भी शान्ति,प्रेम, और आनन्दमयी रहना सीख लेता है।
"हमारे व हमारे अपनों के जीवन के लिए अति कल्याणकारी और महत्वपूर्ण, सद्गुण प्रदायिनी,भवतार
िणी,शान्ति, भक्ति(प्रेम) और मोछप्रदायिनी भावना(प्रार्थना)"
(जिसे स्वयँ के साथ बच्चों से भी किसी शुद्ध स्थान अथवा शिवलिँग पर कम से कम एक बार तो एक लोटा जल चढ़ाते हुए अवश्य करेँ और करवाऐँ) -
1 ."हे जगतपिता", "हे जगदीश्वर" ये जीवन आपको सौँपता हूँ
इस जीवन नैया की पतवार अब आप ही सँभालिए।
2 ."हे करूणासागर" मैँ जैसा भी हूँ खोटा-खरा अब आपके ही शरण मेँ हूँ नाथ,
मेरे लिए क्या अच्छा है क्या बुरा , अब सब आपकी जिम्मेदारी है।"
शरणागति का अर्थ है - "अपने मन का अहँ-अहँकार ,अपनी समस्त कामनाऐँ भी परमात्मा के श्री चरणोँ मे अर्पण कर देना
अर्थात
अपने जीवन की बागडोर परमात्मा को सौँप देना
अतः
समर्पण की प्रार्थना निष्पछ भाव से ही करेँ
प्रभु जी रिश्ते भी निभातेँ है यदि पूर्ण श्रद्धा और विश्वास हो तो गुरू का भी।
इस पोस्ट को प्रर्दशन ना समझेँ
ये मेरे अनुभवोँ और भागवद गीता का सार है
जिसे भगवद प्रेरणा से ही जनसेवार्थ बाँट रहा हूँ।
☆समर्पण की प्रार्थना कम से कम एक बार एक लोटा या एक अंजलि जल अर्पण करते हुए अवश्य करें ।
एसा करने से हमारा परमात्मा के प्रति समर्पण का सँकल्प हो जाता है
जो कि निश्चय ही फलदायिनी सिद्ध होती है ।☆
साथ ही
ये पूर्ण विश्वास रखें कि अब आपकी जीवन नैइया प्रभु जी के हाथों में है
वो जो भी करेंगे
उससे बेहतर आपके जीवन के लिए कुछ और नही हो सकता ।
_/\_
।।जय श्री हरि।।