Saturday, September 21, 2019

उद्धव-कृष्ण संवाद-1

उद्धव-कृष्ण संवाद-1 
       महाभारत काव्य के एक पात्र हैं, उद्धव | उद्धव भगवान श्री कृष्ण के चचेरे भाई थे | गुरुकुल में उनके साथ पढ़े भी थे और उससे भी बड़ी बात कि वे भगवान के परम सखा थे | जब भगवान श्री कृष्ण मथुरा में कंस का वध कर चुके थे, तब उद्धव को उन्होंने अपना सारथी बनाया था | उद्धव ज्ञान को भक्ति पर अधिक महत्त्व देते थे | उनका कहना था कि ज्ञान से परमात्मा को तत्व रूप से जानना ही मानव जीवन का एक मात्र उद्देश्य है | भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हाँ, तात्विक ज्ञान आवश्यक है परन्तु सर्वोपरि तो प्रेम और भक्ति है | उद्धव ने इस बात को सहजता से स्वीकार नहीं किया क्योंकि वे ज्ञान को अधिक महत्वपूर्ण समझ रहे थे | तब भगवान ने उन्हें समझाने के लिए अपना सन्देश देकर व्रज में भेजा | भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि प्रेम के प्रभाव को ज्ञान से दबाना कितना कठिन है ?
        उद्धव जी अपने ज्ञान की गठरी बांधे चल देते हैं, व्रज की ओर | उनका एक ही उद्देश्य है कि वे जाकर गोपियों को समझाए कि वे क्यों कृष्ण के विरह में इतनी व्याकुल हैं ? जब वे गोकुल पहुंचते हैं तो यह देख कर दंग रह जाते हैं कि केवल गोपियाँ ही नहीं बल्कि सभी निवासी, गायें, यमुनाजी,  यहाँ तक कि पेड़ पौधे तक सभी मुरझाये हुए से हैं | जब उद्धव ने यह दृश्य देखा तो वे सभी को अपने ज्ञान के प्रकाश में समझाने लगे कि कृष्ण एक साधारण मनुष्य और मेरे मित्र से अधिक कुछ भी नहीं है | तुम उसके वियोग में इतना क्यों पगला रही हो ? इस पर गोपियाँ कहती हैं कि हे उधो, यह मन एक ही है, कोई दस बीस तो है नहीं | उस कृष्ण के बिना एक पल के लिए जीना हमारे लिए संभव ही नहीं है | उस एक के बिना सब कुछ सूना है | उद्धव फिर भी अपने ज्ञान से उन्हें समझाने का अंतिम प्रयास करते हैं परन्तु वे कुछ भी सुनने से इनकार कर देती है | अंततः उद्धव जी को अपनी ज्ञान की गठरी समेट कर वापिस लौटना पड़ा | उन गोपिकाओं पर उद्धव जी के ज्ञान का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा | लाख ज्ञान देकर भी वे उन गोपिकाओं के श्री कृष्ण के विरह में बह रहे आंसुओं को रोक नहीं पाए | महान कवि सूरदासजी ने इस पर एक काव्य लिखा है, “भ्रमर गीत” | भ्रमर गीत में गोपिकाएं उद्धव को कहती हैं –
उधौ मन ना भये दस-बीस
एक हतो सो गयौ स्याम संग, कौ आराधे ईस |
    भ्रमर गीत में सूरदासजी ने उन पदों को समाहित किया है जिनमें मथुरा से कृष्ण द्वारा उद्धव को व्रज सन्देश देकर भेजा जाता है और उद्धव जो हैं, योग और ब्रह्म के ज्ञाता, प्रेम से दूर तक उनका कोई सरोकार नहीं है | जब वे गोपिकाओं से योग और ब्रह्म की बातें करते हैं, तब वे बातें उन्हें रास नहीं आती और गोपिकाएं उन्हें काले भंवरे की उपमा दे देती है | भ्रमर गीत में 100 से अधिक पदों का संकलन है |
क्रमशः
प्रस्तुति-प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||

No comments:

Post a Comment