उद्धव-कृष्ण संवाद-6
उद्धव बोले- "कान्हा आपका स्पष्टीकरण प्रभावशाली अवश्य है, किन्तु मुझे अभी भी पूर्ण संतुष्टि नहीं हुई है | क्या मैं एक और प्रश्न पूछ सकता हूँ?"
भगवान श्रीकृष्ण की अनुमति से उद्धव ने पूछा-
"इसका अर्थ यह हुआ कि आप तभी आओगे, जब आपको बुलाया जाएगा? क्या संकट से घिरे अपने भक्त की मदद करने आप स्वतः नहीं आओगे?"
कृष्ण मुस्कुराए- "उद्धव इस सृष्टि में प्रत्येक का जीवन उसके स्वयं के कर्मफल के आधार पर संचालित होता है | न तो मैं इसे चलाता हूँ, और न ही इसमें कोई हस्तक्षेप करता हूँ | मैं तो केवल एक 'साक्षी' हूँ | मैं सदैव तुम्हारे नजदीक रहकर जो हो रहा है उसे देखता हूँ | यही ईश्वर का धर्म है |"
"वाह-वाह, बहुत अच्छा कृष्ण | तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप हमारे नजदीक खड़े रहकर हमारे सभी दुष्कर्मों का निरीक्षण करते रहेंगे? हम पाप पर पाप करते रहेंगे, और आप हमें साक्षी बनकर देखते रहेंगे?आप क्या चाहते हैं कि हम भूल पर भूल करते रहें? पाप की गठरी बाँधते रहें और उसका फल भुगतते रहें?" उलाहना देते हुए उद्धव ने पूछा |
तब कृष्ण बोले-"उद्धव, तुम मेरे शब्दों में छिपे गहरे अर्थ को समझो | जब तुम समझकर अनुभव कर लोगे कि मैं तुम्हारे नजदीक 'साक्षी' के रूप में हर पल हूँ, तो क्या तुम फिर कुछ भी अनुचित या बुरा कर सकोगे? मैं कहता हूँ कि तब तुम निश्चित रूप से कुछ भी बुरा नहीं कर सकोगे | जब तुम यह भूल जाते हो और यह समझने लगते हो कि मुझसे छुपकर कुछ भी कर सकते हो, तब ही तुम मुसीबत में फँसते हो।धर्मराज का अज्ञान यह था कि उसने माना कि वह मेरी जानकारी के बिना जुआ खेल सकता है | अगर उसने यह समझ लिया होता कि मैं प्रत्येक के साथ हर समय साक्षी रूप में उपस्थित हूँ तो क्या खेल का रूप कुछ और नहीं होता?"
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||
उद्धव बोले- "कान्हा आपका स्पष्टीकरण प्रभावशाली अवश्य है, किन्तु मुझे अभी भी पूर्ण संतुष्टि नहीं हुई है | क्या मैं एक और प्रश्न पूछ सकता हूँ?"
भगवान श्रीकृष्ण की अनुमति से उद्धव ने पूछा-
"इसका अर्थ यह हुआ कि आप तभी आओगे, जब आपको बुलाया जाएगा? क्या संकट से घिरे अपने भक्त की मदद करने आप स्वतः नहीं आओगे?"
कृष्ण मुस्कुराए- "उद्धव इस सृष्टि में प्रत्येक का जीवन उसके स्वयं के कर्मफल के आधार पर संचालित होता है | न तो मैं इसे चलाता हूँ, और न ही इसमें कोई हस्तक्षेप करता हूँ | मैं तो केवल एक 'साक्षी' हूँ | मैं सदैव तुम्हारे नजदीक रहकर जो हो रहा है उसे देखता हूँ | यही ईश्वर का धर्म है |"
"वाह-वाह, बहुत अच्छा कृष्ण | तो इसका अर्थ यह हुआ कि आप हमारे नजदीक खड़े रहकर हमारे सभी दुष्कर्मों का निरीक्षण करते रहेंगे? हम पाप पर पाप करते रहेंगे, और आप हमें साक्षी बनकर देखते रहेंगे?आप क्या चाहते हैं कि हम भूल पर भूल करते रहें? पाप की गठरी बाँधते रहें और उसका फल भुगतते रहें?" उलाहना देते हुए उद्धव ने पूछा |
तब कृष्ण बोले-"उद्धव, तुम मेरे शब्दों में छिपे गहरे अर्थ को समझो | जब तुम समझकर अनुभव कर लोगे कि मैं तुम्हारे नजदीक 'साक्षी' के रूप में हर पल हूँ, तो क्या तुम फिर कुछ भी अनुचित या बुरा कर सकोगे? मैं कहता हूँ कि तब तुम निश्चित रूप से कुछ भी बुरा नहीं कर सकोगे | जब तुम यह भूल जाते हो और यह समझने लगते हो कि मुझसे छुपकर कुछ भी कर सकते हो, तब ही तुम मुसीबत में फँसते हो।धर्मराज का अज्ञान यह था कि उसने माना कि वह मेरी जानकारी के बिना जुआ खेल सकता है | अगर उसने यह समझ लिया होता कि मैं प्रत्येक के साथ हर समय साक्षी रूप में उपस्थित हूँ तो क्या खेल का रूप कुछ और नहीं होता?"
क्रमशः
प्रस्तुति-डॉ.प्रकाश काछवाल
||हरिः शरणम्||
No comments:
Post a Comment